एक ऐसा बुंदेली भोजनालय जहां इस कलयुग मे मिलता है सतयुग का भोजन

 

भारतीय भोजन इसकी विविधताओं के लिए जाना जाता है, जो हर क्षेत्र, राज्य, समुदाय, संस्कृति और यहां तक कि धर्म के साथ बदल जाती हैं, भारत में भोजन अनंत व्यंजनों का एक जीवंत वर्गीकरण है। विशेष रूप से यह उन मसाले, अनाज, फल और सब्जियों के हल्के और परिष्कृत उपयोग की विशेषता है, जो देश में उगाए जाते हैं। यह कई धर्मों के लोगों के लिए एक घर है, जो सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की अधिकता से आते हैं, देश की खाद्य संस्कृति विदेशियों सहित उन सभी से प्रभावित हुई है। भारत में बहुजातीय संस्कृति होने के कारण यहां के भोजन की एक विशाल और वृहद श्रृंखला है। भारत के स्वादिष्ट और आकर्षक व्यंजनों की खासियत इसमें होने वाला मसालों और जड़ी बूटियों का सूक्ष्म इस्तेमाल है। भारत में भोजन एक क्षेत्र से लेकर दूसरे क्षेत्र तक व्यापक रुप से भिन्न है। विभिन्न क्षेत्रों ने अलग अलग भोजन को अपनाया है। पूरी दुनिया में सबसे विविध व्यंजन परोसने का गौरव भारत को प्राप्त है। हर क्षेत्र की अपनी अलग विशेषताएं और खाना पकाने का अपना अलग तरीका है। परिदृश्य के हिसाब से खाना पकाने, स्वाद और उनकी विशेषताएं बदलती हैं। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे है एक ऐसे बुन्देली भोजनालय के बारे में जहां आज कलयुग में सतयुग का भोजन मिलता है।

क्या आप जानते हैब कि भारत का अनोखा राज्य उत्तर प्रदेश यूरोप के कई देशों से भी बड़ा है। विविधताओं से परिपूर्ण उत्तर प्रदेश का एक क्षेत्र बुंदेलखंड यूपी के साथ-साथ मध्य प्रदेश में भी फैला हुआ है। वैसे तो बुन्देलखण्ड की पहचान इसके ऊबड़-खाबड़ इलाके, चट्टानी पहाड़ियाँ और उपजाऊ मैदान हैं, पर्यंत यह क्षेत्र अपनी अद्वितीय प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। इन सभी के अतिरिक्त बुंदेलखंड आज भी अपने विशेष देसी भोजन के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। बुन्देलखण्डी व्यंजन अपने अनूठे और उत्कृष्ट स्वाद के लिए भी प्रसिद्ध हैं, जो बुन्देलखण्ड क्षेत्र की समृद्ध पाक विरासत को प्रदर्शित करता है। बुन्देलखण्ड का भोजन क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और कृषि पृष्ठभूमि को दर्शाता है।

आज हम आपको जिस बुंदेली भोजनालय के बारे में जानकारी देने जा रहे है, उसका नाम हैं गोकृपा बुंदेली भोजनालय। यह एक आइस भोजनालय है जो झांसी से महज लगभग 40 किमो की दूरी पर स्थित है और यहाँ आने के साथ ही आपको कलयुग में सतयुग में आने का आभास होने लगेगा। इस भोजनालय की विशेषता यह है कि इसे पूरी तरह एक गांव की तरह बनाया गया है। झांसी से 40 किमी दूर तालबेहट में स्थित इस रेस्टोरेंट में सबकुछ आर्गेनिक मिलता है। यहाँ के फर्श और दीवार गाय के गोबर से लीपे जाते हैं तो वहीँ यह रेस्टोरेंट भी झोपडी में बनाया गया है। यहाँ पर आपको खाना भी पत्तल में ही मिलता है।

इस भोजनालय के मालिक का नाम है महेंद्र सिंह यादव। यादव जी का कहना है कि आज आधुनिकता के दौर में हम सब प्रकृति को छोड़ कर प्रगति की तरफ भाग रहे हैं। ऐसे में हम तकनीकी रूप से तो एडवांस हो रहे हैं लेकिन शारीरिक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं। उनका कहना है कि पुराने समय में हमारे पूर्वज दीर्घ अवस्था तक बिना किसी दवा के स्वस्थ रहते थे क्योंकि वो प्रकृति से जुड़े रहते थे। इस भोजनालय के माध्यम से वह लोगों को प्रकृति से जोड़ने का ही प्रयास कर रहे है। इस भोजनालय में अंदर जाने से पहले आपको जूते, चप्पल यहाँ तक की मोज़े भी उतार देने होते हैं। प्रवेश करने से पहले एक व्यक्ति आपका हाथ साफ़ पानी से धुलवाता है। यहाँ पर आपको जमीन पर बैठ कर पालथी मार कर पंक्ति में खाने की व्यवस्था की जाती है। जो लोग जमीन पर नहीं बैठ सकते उनके लिए कुर्सी-टेबल की भी व्यवस्था इस भोजनालय में की जाती है। 

इस भोजनालय में आपको भोजन के रूप में कढ़ी, भात(चावल), फुल्का(रोटी,चपाती), बर्रा (उरद की दाल), चने की दाल, बरा बुरो, गौरस, भर्वा, लहसुन की चटनी, गकारिया (लिट्टी या बाटी) गराईया जैसे बुंदेली व्यंजन मिलते हैं। यहाँ पर बनी हुई रोटी का आटा वहीँ सील पर पीसा जाता है। मट्ठा भी वहीँ मिट्टी की मटकियों में महिलाएं द्वारा बनाया जाता है। यहाँ की एक और विशे बात यह है कि यहाँ पर छोटे बच्चों के लिए भी पुराने ज़माने के मनोरंजन के साधन मिल जायेंगे। छोटे छोटे दुधमुहें बच्चों के लिए यहाँ एक पालना भी है जिसमे बच्चों को सुला और झुला कर माताएं आसानी से भोजन का आनंद ले सकती हैं।

इस भोजनालय पर आपको पारम्परिक तरीकों से तैयार किया हुआ भोजन ही मिलेगा। बुंदेलखंड में चूल्हे का एक रूप होता हो तेओ। जिसमे बड़े बड़े लक्कड़ दाल कर खाना पकाया जाता है। तेओ पर ही मिट्टी की मटकी में कढ़ी, दाल और चावल पकाया जाता है। दाल पकाते समय उसके झाग को निकाल दिया जाता है जिससे की यूरिक एसिड बनने की संभावना खत्म हो जाती है। चूल्हे पर ही आलू, टमाटर और बैगन को भुना जाता है और उसके बाद उसका भर्ता बनाया जाता है। इसके साथ ही चूल्हे पर ही गाकारिया यानी लिट्टी बनती है। यहाँ पर मसाले, चटनी सील-बट्टे पर ही पीस कर परोसी जाती है तथा कढ़ी को तैयार करने हेतु अनेकों तले रहित मटकों को एक के ऊपर एक रखा जाता है, इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण यह है कि कढ़ी के वेग को कभी रोका नहीं जाता है। 

इस भोजनालय के भोजन में इस्तेमाल होने वाले दाल, चावल और सब्जियों को भोजनालय के पीछे ही आर्गेनिक तारीके के साथ उगाया जाता है। आर्गेनिक फार्मिंग के कारण ही यहाँ का भोजन स्वादिष्ट होने के साथ-साथ सेहतमंद भी होता है। भोजनालय के अलावा यहाँ मड हाउस भी बनाये गए हैं, जहाँ गर्मी में सर्दी और सर्दी में आपको गर्मी का अहसास होगा। यहाँ पर दो-चार घंटे विश्राम करने के कोई भी पैसे नहीं लिए जाते है। हाँ यदि इस मड हाउस में आप रात्री विश्राम करना चाहें तो बहुत ही कम धन राशि खर्च कर आप रुक सकते हैं। 

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