वैगनर ग्रुप बनाम अग्निपथ योजना - भारत के लिए दिशानिर्देशक निहितार्थ - पुष्कर प्रियदर्शी (शोधकर्ता)
वैगनर ग्रुप, एक निजी सैन्य समूह जिसके अचानक रूस विरोधी विद्रोही कृत्य ने पूरी दुनिया को चौंका दिया और अचानक बड़ी शक्तियों की नजर रूसी राष्ट्रपति के अगले कदम पर टिक गई। वैगनर समूह का नेतृत्व येवगेनी प्रिगोझिन कर रहे हैं जो पेशेवर योद्धा हैं और राष्ट्रपति पुतिन के साथ उनके करीबी संबंध भी हैं। इसकी अनुमानित निजी सेना 2000-6000 है और यह सीरियाई गृहयुद्ध और लीबियाई गृहयुद्ध सहित कई संघर्षों में भाग लेने के बाद वर्तमान में रूसी पक्ष से यूक्रेनी युद्ध में उलझी हुई है।
विचारणीय मुद्दा यह है कि वैगनर ने रूसी सरकार के खिलाफ विद्रोह क्यों किया?
प्रिगोझिन लड़ाई के रूसी सैन्य तरीकों से रुष्ट गए और उन्होंने रूसी रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु पर भी आरोप लगाया है कि रूसी सैनिकों ने यूक्रेनी बेस कैंप में उनके सैनिकों पर हमला किया । प्रिगोझिन ने सेना का प्रतिनिधित्व करने में अक्षम नेता होने के लिए शोइगु की आलोचना की है और कई यूक्रेनी नागरिकों को मार डाला जिनका युद्ध से कोई लेना-देना नहीं था। वैगनर ग्रुप की विद्रोही गतिविधि के विभिन्न कारण सामने आए हैं। उनमें से एक यह है कि वे रूसी सरकार से स्वतंत्रता चाहते हैं, हालांकि अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि वैगनर प्राइवेट आर्मी पर रूसी सरकार का कितना नियंत्रण है।
दूसरी बात यह है कि येवगेनी प्रिगोझिन किसी भी तरह से रूसी सैन्य बल को मजबूत करने के लिए रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु के आदेश पालन करने के अनुबंध पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे।
वैगनर समूह के इस विद्रोही कृत्य और रूसी-यूक्रेन संकट का भारत पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
युद्ध छिड़ने के बाद से दुनिया की निगाहें नई दिल्ली पर टिकी हैं, जिसने फिर से यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की सार्वजनिक रूप से निंदा करने से परहेज किया है, क्योंकि भारत को रूस और उसके बाजार के साथ अपने संबंधों की रक्षा भी करनी है।
भारतीय कंपनियां और बैंक अपनी प्रतिष्ठा को जोखिम में नहीं डालना चाहते, क्योंकि चीन इसे एक अवसर हथियाने के रूप में देखता है और उसने प्रतिबंधों के कारण यूरोपीय कंपनियों द्वारा खाली की गई रूसी बाजार की हर छोटी-बड़ी दुकान पर लगभग कब्जा कर लिया है। इससे पहले, चीन केवल व्यापार और वाणिज्य के माध्यम से रूस के साथ जुड़ा हुआ था लेकिन अब चीन रूस के लोगों और संस्कृति से जुड़ रहा है जिसका भारत-रूस संबंधों पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है। क्योंकि भारत नृत्य, गीत, भोजन आदि सांस्कृतिक लोकाचार के माध्यम से रूस के साथ मजबूत संबंध रखने पर गर्व महसूस करता है। यदि चीन रूसी लोगों के साथ घुलने-मिलने में सफल हो जाता है, तो उसे भारत-रूस विदेश नीति में हेरफेर करने का अवसर मिल सकता है। इसलिए, ऐसा होने से पहले भारत को भी इस दिशा में काम करना चाहिए, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।
भारत सरकार की अग्निपथ योजना भी किसी न किसी तरह वैगनर ग्रुप से जुड़ी हुई है। इस योजना ने उन नेपाली गोरखाओं को हतोत्साहित कर दिया है जो पहले भारतीय सेना में स्थायी नौकरी का अवसर देखते थे। इस 4-वर्षीय भर्ती योजना का नेपाल की युवा आबादी पर भी बड़ा प्रभाव पड़ेगा जो भारतीय सेना में भर्ती होते थे। नेपाली गोरखाओं के पास ऊंचे इलाकों में लड़ने का विशेष कौशल है जो चीनी और पाकिस्तानी सशस्त्र बलों से लड़ने में मदद करता है। भारतीय सेना में भर्ती के अवसरों की कमी होते देख नेपाली गोरखा वैगनर समूह की निजी सेना में शामिल होने को मजबूर हो सकते है।
आगे क्या किया जाना चाहिए ?
जब कोई सरकार निजी सेना के साथ युद्ध लड़ने का निर्णय लेती है, तो अनेक आशंकायें तो रहती ही है। लेकिन वैगनर के विद्रोह जैसी घटना ने भारत सरकार को आंतरिक खतरों पर गौर करने के लिए जगा दिया। वर्तमान वैगनर घटना ने न केवल पूरी दुनिया को रोमांचित कर दिया है, बल्कि विभिन्न राज्यों की सरकारों को निजी सेनाओं का पोषण करने की नीति पर पुनर्विचार करने के लिए भी मजबूर कर दिया है। पुतिन पर रूस के नागरिकों के अविश्वास ने राष्ट्रपति पुतिन को अपने स्वभाव के विपरीत जाकर लोगों से मिलने पर मजबूर कर दिया है. उनका लोगों से हाथ मिलाना और उनके साथ तस्वीरें लेना रूसी लोगों के राष्ट्रपति में विश्वास और विश्वास को फिर से हासिल करने का संकेत है।
इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, भारत को अपनी अग्निपथ योजना के बारे में पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि नेपाली गोरखा पहाड़ी इलाकों में किसी भी अन्य सेना के जवानों की तुलना में कहीं बेहतर हैं। भारत न केवल उन अच्छे सैनिकों को खो सकता है बल्कि यह अल्पकालिक योजना एक प्रशिक्षित किन्तु निर्बंध निजी सेना भी तैयार कर रही है जिसे अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा उनके लिए काम पर भी रखा जा सकता है।
एक टिप्पणी भेजें