भिंड विधानसभा - 2023 में किसके हाथ लगेगी जीत की चाबी ?
भिंड जिले के अंतर्गत 5 विधानसभा सीटें भिंड, महगाँव, गोहद, अटेर व लहार आती हैं। कभी दस्यु समस्या से ग्रस्त यह क्षेत्र आज भारतीय सेना में बड़ी संख्या में भर्ती होते सैनिकों के लिए जाना जाता है। वर्तमान 5 विधानसभा सीटों में से 3 पर भाजपा तथा 2 पर काँग्रेस काबिज है। आइए आज भिंड विधान सभा की चर्चा करें –
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बीएसपी प्रत्याशी संजीव सिंह नें भाजपा प्रत्याशी चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को 35896 मतों के अंतर से पराजित किया था। सपा के नरेंद्र सिंह कुशवाह नें 30474 मत प्राप्त कर तीसरा स्थान प्राप्त किया जबकि काँग्रेस प्रत्याशी रमेश दुबे को महज 8297 मत प्राप्त हुए और वह चौथे स्थान पर रहे। इस चुनाव में संजीव सिंह को 69107(46.72%), चौधरी राकेश सिंह को 33211(22.45%), सपा प्रत्याशी नरेंद्र सिंह को 30474(20.60%) व काँग्रेस प्रत्याशी रमेश दुबे को 8297(5.61%) मत प्राप्त हुए। बाद में विधायक संजीव सिंह बीएसपी छोड़ बीजेपी में तथा भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी भाजपा छोड़ काँग्रेस में शामिल हो गए।
यूं तो समूचे चम्बल क्षेत्र में ठाकुर और ब्राह्मण के बीच बर्चस्व की लड़ाई होती रही है। किसी समय तो स्थिति यह थी कि अगर कोई ठाकुर डाकू बना तो उसके प्रतिद्व्न्दिता में एक ब्राह्मण डकैत गिरोह भी मैदान में आ डटा। यही स्थिति आज की राजनीति में भी है। यहाँ दल गौण और जातिवाद मुख्य है। इसलिए दलबदल भी आम बात है। भाजपा ने अगर किसी ठाकुर को टिकिट दिया है तो कांग्रेस किसी ब्राह्मण को अपना प्रत्यासी बनाएगी। यह प्रयोग सफल हो या असफल, पर चुनावी रणनीति यही रहती है।
इन दिनों भिंड की राजनीति की धुरी दो लोग हैं - एक तो चौधरी राकेश सिंह और दूसरे संजीव सिंह कुशवाह।
चौधरी राकेश सिंह - कुछ रोचक तथ्य
चौधरी की उपाधि इनकी वंशानुगत है, जो इनके पूर्वजों को जयपुर राजघराने द्वारा प्रदान की गई थी। चौधरी का अर्थ तो सभी जानते हैं - मुखिया। और सच में यह परिवार अंचल में ब्राम्हण समाज के मुखिया की भूमिका निभाता भी रहा है। चौधरी राकेश सिंह के पिता स्व. दिलीप सिंह चतुर्वेदी यूं तो छात्र जीवन से ही मूलतः समाजवादी थे, किन्तु 1980 में स्व. राजमाता श्रीमंत विजयाराजे सिंधिया की प्रेरणा से भाजपा में सम्मिलित हो गए और विधायक निर्वाचित हुए। अतः कहा जा सकता है कि इस परिवार के सिंधिया राजपरिवार से मधुर सम्बन्ध रहे। अब चूंकि स्व. माधवराव सिंधिया कांग्रेस में थे, अतः चौधरी राकेश सिंह ने भी अपने भाई चौधरी मुकेशसिंह के साथ कांग्रेस की राजनीति में ही पैठ बनाई व 1990 में भिंड विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। उसी वर्ष उनके छोटे भाई चौधरी मुकेश सिंह भिंड नगरपालिका के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
एक बार विधायक बनने के बाद चौधरी राकेश सिंह का प्रभाव लगातार बढ़ता गया। वे भिंड विधानसभा से चार बार विधायक रहे। समूचे भिंड मुरैना अर्थात चम्बल अंचल के वे ब्राह्मण चेहरा माने होने लगे। वे 1998 और 2003 के बीच की कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री और 2008-2013 में विपक्ष के उप नेता बनाये गए।
लेकिन समय ने करबट बदली और 2013 में कांग्रेस द्वारा लाये गए अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध बोलते हुए उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। माना जाता है इस स्तीफे के पीछे भी मूल कारण अंचल में बढ़ता हुआ डॉ. गोबिंद सिंह का प्रभाव मुख्य कारण था। उसके बाद उनके खिलाफ कांग्रेस ने अंचल में सार्वजनिक रूप से पंचायतें कर उनको गद्दार तक कहा। स्वाभाविक ही डॉ. गोविन्द सिंह ने तो उनका जमकर विरोध किया। भाजपा ने हवा को भांप कर 2013 के चुनाव में सारे पूर्वानुमानों को ध्वस्त करते हुए भिंड से चौधरी राकेश सिंह के स्थान पर नरेंद्र सिंह कुशवाह को अपना प्रत्यासी बनाया। चौधरी राकेश सिंह का भी सम्मान बना रहे, इसलिए भिंड जिले की मेहगांव विधानसभा सीट से इनके छोटे भाई चौधरी मुकेश सिंह को टिकिट दिया। और मजे की बात यह कि दोनों ही प्रयोग सफल रहे और दोनों ही सीटों पर कमल खिल गया, भाजपा को विजय मिली।
जैसा कि हमने पहले वर्णित किया 2018 के चुनाव में भाजपा ने भिंड से चौधरी राकेश सिंह को तो मेहगांव से उनके भाई व पूर्व विधायक चौधरी मुकेश सिंह को अपना प्रत्यासी घोषित किया। किन्तु इस बार केवल मेहगांव में ही सफलता मिली, जबकि भिंड से चौधरी राकेश सिंह बीएसपी प्रत्याशी संजीव सिंह से 35896 मतों के विशाल अंतर से पराजित हो गए। लेकिन जानकारों के अनुसार इसका मुख्य कारण बसपा प्रत्यासी संजीव सिंह कुशवाह के प्रति उपजी सहानुभूति की लहार थी, क्योंकि वे 2013 में भी चुनाव लड़कर महज 5993 मतों के सम्मानजनक अंतर से पराजित हुए थे।
इस करारी हार के बाद चौधरी राकेश सिंह चौधरी ने 20 अप्रैल, 2019 को कांग्रेस के तत्कालीन पार्टी महासचिव ज्योतिरादित्य जी सिंधिया की उपस्थिति में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पुनः सदस्यता ले ली। किन्तु मजे की बात देखिये कि आज वे ज्योतिरादित्य जी सिंधिया तो भाजपा में आ गए किन्तु एक बार दलबदल की लानत झेल चुके चौधरी राकेश सिंह ने कांग्रेस नहीं छोड़ी।
वर्ष 2023 विधानसभा चुनाव की संभावित स्थिति –
वर्ष 2023 विधानसभा चुनाव में इस सीट से बीजेपी की ओर से वर्तमान विधायक संजीव कुशवाह, पूर्व विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह के नाम ही प्रमुख रूप से सामने है। भिंड के वर्त्तमान विधायक संजीव सिंह संजू का भी भाजपा से पुराना नाता है। संजीव सिंह के पिता डा. रामलखन सिंह भिंड-दतिया लोकसभा क्षेत्र से लगातार चार बार भाजपा से सांसद और भिंड से एक बार विधायक रहे हैं। संजीव सिंह भी भारतीय जनता युवा मोर्चा में प्रदेश पदाधिकारी और जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके हैं।
काँग्रेस की ओर से इस सीट पर चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी (भिंड के साथ अटेर व मेहँगाँव में भी सक्रिय), राधेश्याम शर्मा, शांतिदेवी कुशवाह (प्रदेशाध्यक्ष महिला इंटक काँग्रेस), राहुल भदौरिया के नाम चर्चा में हैं।
साथ ही बीएसपी इस बार भी अपना प्रत्याशी मैदान में उतारेगी ही, पर उसका प्रत्याशी कौन होगा(?) यह आने वाली राजनैतिक परिस्थितियाँ तय करेंगी।
भिंड सीट के जातिगत समीकरण –
भिंड विधानसभा सीट पर 35% क्षत्रिय, 26% ब्राह्मण, 12% जैन निर्णायक स्थिति में हैं।
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