विचार नवनीत के अंश भाग (5) - श्री माधव सदाशिव राव गोलवलकर "गुरूजी"
0
टिप्पणियाँ
· सन १८५७ के स्वातंत्र्य समर में क्रान्ति के महान नेताओं ने दिल्ली पर अधिकार कर अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली मुग़ल बादशाह को मुक्त कर सम्राट के रूप में पुनः सिंहासनारूढ़ किया | यह इसलिए किया गया, जिससे दिल्ली के तख़्त के प्रति वफादार लोगों का भी समर्थन व सहयोग प्राप्त हो जाए | किन्तु इस पग ने हिन्दू जनता के ह्रदय में संदेह उत्पन्न कर दिया कि वही अत्याचारी मुग़ल शासन, जो गुरू गोविन्दसिंह, छत्रसाल, शिवाजी तथा उसी प्रकार के अन्य देशभक्तों के प्रयत्नों से समाप्त हो चुका था, एक बार पुनः पुनर्जीवित कर छलपूर्वक उन पर लाद दिया जाएगा | और वह अंग्रेजी शासन से भी बड़ी दुखदाई घटना होगी | हिन्दू मस्तिष्क जो नानासाहब पेशवा, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई तथा कुंवर सिंह जैसे सेना नायकों की ओर देखकर हिन्दू स्वराज की कल्पना से स्फूर्त था, उसकी युद्ध करने की प्रेरणा समाप्त हो गई | इतिहास वेत्ताओं का कथन है कि उस क्रान्ति की अंतिम असफलता के निर्णायक कारणों में से यह भी एक कारण था |
· गुजरात के मुख्यमंत्री बलवंतराय मेहता जिस विमान द्वारा यात्रा कर रहे थे, उसे पाकिस्तान द्वारा गोली मारकर गिराया गया तथा उनकी ह्त्या कर दी गई |
· द्वितीय महायुद्ध में तत्कालीन भारत सचिव लार्ड एमरी के पुत्र ने जर्मन लोगों के लिए कार्य किया था | युद्ध के पश्चात उसपर मुकदमा चलाया गया तथा उसे मृत्युदंड दिया गया | दंड कम करवाने के लिए उसके पिता ने अपने उच्च पद के प्रभाव का उपयोग लाने का विचार भी नहीं किया | इसके विपरीत उन्होंने दया याचिका प्रस्तुत करना तक अमान्य कर दिया | मृत्युदंड के दिन उन्होंने उससे मिलना तक अस्वीकार कर दिया तथा कहा कि ऐसे व्यक्ति की शक्ल देखना भी पाप है, जो उनके परिवार की देशभक्ति की गौरवशाली परंपरा पर एक कलंक था |
इसके विपरीत अपने देश का हाल देखिये - एक राजदूत रहते जिस व्यक्ति ने भारत आने वाले शस्त्रों से भरे जहाज को पाकिस्तान के लिए मुडवा देने की चाल चली, उसे बाद में एक राज्य का राज्यपाल बना दिया गया |
· सन १९३७ में एक बार कांग्रेस शासन वाले प्रदेश में एक राजनैतिक आन्दोलन को कुचलने के लिए गोली चलाने का आदेश दिया गया था | एक व्यक्ति ने कांग्रेस अध्यक्ष को लिखा कि अहिंसा के लिए वचनबद्ध कांग्रेस द्वारा बनाई गई सरकार गोली का मार्ग कैसे अपना सकती है ? कांग्रेस अध्यक्ष प. जवाहरलाल नेहरू ने उत्तर दिया – अहिंसा की हमारी नीति केवल अंग्रेजों के विरुद्ध लागू होती है, स्वजनों के लिए नहीं | उक्त सज्जन ने यह समस्त पत्र व्यवहार समाचार पत्रों में प्रकाशित करवा दिया |
· बुरी आदतें और प्रवृत्तियाँ, जो विगत शताव्दियों से हममें बढ़ रही हैं, एक दिन में धुलकर साफ़ नहीं हो सकतीं | इसलिए नित्य के संस्कार आवश्यक हैं | हमारा मस्तिष्क जो दूषणों के लिए शरीर से अधिक ग्रहणशील है, चारों ओर के वातावरण की दुष्प्रवृत्तियों के संपर्क से सतत प्रभावित होता है | एक बार श्री रामकृष्ण ने अपने अद्वैतवादी गुरू तोतापुरी से प्रश्न किया –आप एक सिद्ध पुरुष होकर भी संस्कारों की नित्य क्रियाएं क्यों किया करते हैं ? उन्होंने उत्तर दिया कि मस्तिष्क जब तक इस संसार में रहता है, उसके नित्य शोधन की आवश्यकता ठीक उस प्रकार से है, जैसे पानी पीने के पात्र को नित्य मांजना आवश्यक है |
· भयंकरतम विष पचाना अपेक्षाकृत आसान है, किन्तु स्तुति और सम्मान पचाना सरल नहीं | भगवान शंकर सबके कल्याण के लिए हलाहल पी गए और उससे अप्रभावित रहे | पर वही शंकर भस्मासुर की स्तुति के शिकार बने और स्वयं के लिए आपत्तियों को बुला लाये |
Tags :
पुस्तक सार
एक टिप्पणी भेजें