विचार नवनीत के अंश भाग (3) - श्री माधव सदाशिव राव गोलवलकर "गुरूजी"


· स्वतंत्रता संग्राम के काल में मौलाना मुहम्मद अली महात्मा गांधी के दाहिने हाथ थे | उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह घोषणा की थी कि बुरे से बुरा, पापी और भ्रष्ट मुसलमान भी महात्मा गांधी से भी बहुत अधिक श्रेष्ठ है |

एक सूफी विद्वान् ने चर्चा में कहा कि कम्यूनिज्म के अनीश्वरवादी दर्शन की चुनौती का सामना करने का एक ही मार्ग है कि ईश्वर में विश्वास करने वाले सभी मनुष्य एकजुट हो जाएँ | चाहे वे किसी भी सम्प्रदाय अथवा धर्म के क्यों न हों | जब उनसे पूछा गया कि वह आधार कौनसा हो सकता है, तो उन्होंने बिना किसी संकोच के तुरंत उत्तर दिया – ‘इस्लाम’ | तथाकथित विद्वान् और दार्शनिक के मस्तिष्क भी इसी प्रकार काम करते हैं |
हमारे समय के महानतम ‘राष्ट्रीय मुसलमान’ मौलाना आजाद ने भी अपने अंतिम समय में ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ में गांधी तथा नेहरू को अपनी क्षुद्र बुद्धि से समाविष्ट करते हुए पटेल को साम्प्रदायिक निरूपित किया | कोलकाता और नोआखाली आदि अनेक स्थानों पर मुसलमानों द्वारा किये गए हिन्दू नरसंहार की निंदा के लिए उनके पास एक शव्द भी नहीं था | पाकिस्तान के निर्माण का विरोध भी वे केवल इस आधार पर कर रहे थे, क्योंकि उनकी नजर में वह मुस्लिम हितों के प्रतिकूल था | उनके अनुसार जिन्ना का अनुशरण करना मुसलमानों की मूर्खता थी क्यों कि उसके कारण मुसलमानों को देश का केवल एक टुकड़ा मिला | जबकि मौलाना आजाद की बात मानी गई होती तो सम्पूर्ण देश के कार्यकलापों में मुसलमानों की आवाज निर्णायक होती | सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश श्री मेहरचंद महाजन ने उक्त पुस्तक की आलोचना करते हुए लिखा – मौलाना जिन्ना से अधिक धूर्त थे | यदि उन पर छोड़ दिया जाता तो भारत वस्तुतः मुसलमानी वर्चस्व का देश हो जाता |
· प्रथम विश्व युद्ध के समय मित्र राष्ट्रों की सेना ने दृढ निश्चय के साथ जर्मनी सैन्य बल का मुकावला किया तथा युद्ध में विजय प्राप्त की | उन्होंने जर्मनी का एक बड़ा भूभाग भी अपने कब्जे में ले लिया | परन्तु विजय के पश्चात फ्रांसीसी लोग इन्द्रियलोलुपता तथा सुखोपभोग के शिकार हो गए | वे मद्यपान तथा नाचगाने में लिप्त हो गए, जिसके कारण अपने विशाल सैनिक बल तथा अपनी भीषण “मीजोन रेखा” के होते हुए भी द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मन आक्रमण के १५ दिवस के अन्दर फ्रांस का पतन हो गया | युद्ध के पश्चात वृद्ध फ्रांसीसी जनरल मार्शल पेतां ने कहा – “फ्रांस की पराजय युद्ध क्षेत्र में नहीं, बल्कि पेरिस के नृत्य गृहों में हुई |” हमारे देश में भी परिस्थिति भिन्न नहीं है | हमारे दैनंदिन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आधुनिकता का अर्थ हो गया है स्वच्छंदता, स्त्रैणता, इन्द्रियलोलुपता | यौन हमारे आधुनिक साहित्य का सर्वव्यापी विषय बन गया है | राष्ट्रीय जीवन का यह आतंरिक चित्र खतरे का संकेत है, जिसके प्रति हम दुर्लक्ष्य नहीं कर सकते | इन परिस्थितियों में केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही एकमात्र ऐसा संगठन है जिसने समाज को शुद्ध, पवित्र, कल्याणकारी तथा संगठित जीवन में सूत्रवद्ध करने का निश्चय किया हुआ है | यही संघ के निरंतर विकास के पीछे की प्रेरक शक्ति है |
· विगत कुछ वर्षों से हमारे देश में शक्ति को पापपूर्ण और गर्हित माना जाने लगा है | “अहिंसा” के गलत अर्थ ने यह भ्रान्ति पैदा की है | हम लोग शक्ति को हिंसा मानने लगे हैं तथा अपनी दुर्बलता को गौरवास्पद समझने लगे हैं | जो हिंसा करने में पर्याप्त समर्थ है, परन्तु संयम, विवेक और दया के कारण ऐसा नहीं करता, केवल उसी व्यक्ति के लिए कहा जा सकता है कि वह अहिंसा का आचरण करता है | यदि कोई दुबला पतला मच्छर जैसा व्यक्ति जा रहा है, तथा कोई उसके कान खींच लेता है, तब वह ‘मच्छर’ सर से पैर तक कांपते हुए कहे कि महाशय मैंने तुम्हे क्षमा किया, तो उसका क्या अर्थ है | कौन कहेगा कि वह अहिंसा का पालन कर रहा है ? डाकुओं को अपना घर लूटने से रोकने में असमर्थ होने पर यदि कोई “वसुधैव कुटुम्बकम” का नारा लगाए, तो लोग उसे ढोंगी और कायर ही कहेंगे | हमारे देश का वायुमंडल इसी प्रकार की भ्रांतियों और सदुक्तियों से भरा हुआ है | प्रत्येक राष्ट्रीय अपमान को ‘शान्ति’ के आवरण में ढँक दिया जाता है | पंडित नेहरू के जन्मदिन पर चीन ग्यारह सैनिकों के शव भेंट में देता है | हम यह कहकर कि हम शान्ति के पुजारी हैं, यह सब निगल जाते हैं | महाभारत में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपमान निगल जाता है, वह न पुरुष है, न स्त्री है |
एतावानेव पुरुषो यदमर्शी यदक्षमी |
क्षमावान निरमर्षश्च नैव स्त्री न पुनः पुमान ||
(वही पुरुष है, जो न सहन करता है और न क्षमा करता है | क्षमा करने वाला तथा सहन करने वाला न तो स्त्री है और ना ही पुरुष |)
श्री कृष्ण हमारे आदर्श हैं, जिन्होंने बचपन से ही एक के पश्चात एक राक्षसों को समाप्त किया | अंत में कंस का वध किया, उग्रसेन को गद्दी पर पुनः प्रतिष्ठित किया | परन्तु स्वयं अतिथि राजाओं का स्वागत करते हुए द्वारपाल बने रहे | उन्होंने ही युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भोजन के पश्चात पत्तल उठाने का छोटा सा सेवा कार्य भी स्वयं स्वीकार किया, जबकि उन्हें अग्रपूजा का सम्मान दिया गया था | हमारे दर्शन का ऐसा ही सन्देश है |
वास्तव में बह बकरा जिसे बलिवेदी पर शांतिपूर्वक ले जाया जाता है, अप्रतिकार की मूर्ती है | तनिक सा भी विरोध प्रगट न करते हुए वह चुपचाप कसाई के छुरे के नीचे अपना सर रख देता है | कसाई भी एक क्षण को यह अनुभव नहीं करता की ऐसे अहिंसक जीव को नहीं मारना चाहिए | किन्तु कोई भी व्यक्ति व्याघ्र की बलि देने का साहस नहीं कर सकता –
अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च नैव च |
अजा पुत्रं बलिंदध्यात देवो दुर्बल घातकः ||
एक श्रेष्ठ जैन साधू ने अहिंसा का महत्व बताते हुए कहा – ‘यदि तुम्हें नष्ट करने पर उतारू किसी पाशविक शक्ति से तुम्हारा सामना हो और अहिंसा के नाम पर तुम अपने संरक्षण का प्रयत्न ना करो, तो तुमने उस पाशविक शक्ति को हिंसा में प्रवृत्त होने के लिए प्रोत्साहित किया है | इस प्रकार तुम उस अपराध के प्रोत्साहन कर्ता बन गए हो | प्रोत्साहक भी अपराध का उतना ही दोषी है, जितना वास्तविक अपराधी |
श्री कृष्ण ने सुस्पष्ट रूप से तथा सदा के लिए घोषित किया है कि धर्म की स्थापना का अर्थ है, दुष्टों का विनाश (विनाशाय च दुष्कृताम) | श्री कृष्ण जब युद्ध को टालने तथा शान्ति प्रस्थापित करने दुर्योधन के पास शान्ति प्रस्ताव लेकर जाने लगे. तब उनकी सुरक्षा को लेकर धर्मराज युधिष्ठिर चिंतित हो गए | तब श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि यदि दुर्योधन इस प्रकार की कोई मूर्खता करेगा तो तुम बिना युद्ध के ही विजई हो जाओगे, क्योंकि ऐसी स्थिति में वे स्वयं ही कौरवदल को समाप्त कर देंगे |
इस संसार की कठोर वास्तविकताओं को समझकर महान व्यक्तियों ने जैसा सन्देश दिया है उसे हमें ठीक से समझना चाहिए | आज का संसार एक ही भाषा समझता है – शक्ति की भाषा | शक्ति के दृढ आधार पर ही राष्ट्र का उत्कर्ष होता है | राष्ट्रीय शक्ति का वास्तविक तथा अक्षय स्त्रोत है सम्पूर्ण समाज का सुगठित, समर्पित तथा अनुशासित जीवन | अतः हमारे सम्पूर्ण प्रयत्न हमारे लोगों में राष्ट्रीय चेतना जागृत कर सुसंगठित राष्ट्रनिर्माण करने की दिशा में होना चाहिए |
एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें