क्या बालासोर रेल दुर्घटना के पीछे कोई षडयंत्र है ?
बालासोर में हुई रेल दुर्घटना ह्रदय द्रावक है। दो सैंकड़ा से अधिक बहुमूल्य जिंदगियां असमय समाप्त हुई हैं। घायलों की संख्या भी एक हजार से अधिक है। पूरे देश की सहानुभूति दुर्घटना से प्रभावित पीड़ितों के साथ है। ऐसे में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी का यह प्रारंभिक बयान सुकून देने वाला था कि यह समय आपदा से निबटने, पीड़ितों को राहत पहुँचाने का है, राजनीति का नहीं है। दुर्घटना की उच्च स्तरीय जांच होना चाहिए।
लेकिन जबआम आदमी पार्टी ने रेल मंत्री और प्रधान मंत्री के स्तीफे की मांग कर लाशों पर राजनीति शुरू कर दी, तो उन्होंने भी केजरीवाल के सुर में सुर मिला दिया। बिना इस बात का विचार किये कि रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने उन्हीं तथाकथित बदनाम 'सरकारी' रेलवे कर्मचारियों के साथ आश्चर्यजनक परिणाम दिए हैं। ना केवल भारतीय रेल का कायाकल्प हुआ है, बल्कि माल ढुलाई से प्राप्त होने वाला राजस्व भी अब तक की रिकॉर्ड ऊंचाई को छू रहा है।इसलिए पिछले दो साल से वे विरोधी आंखों की किरकिरी बन गए थे। यह देखते हुए इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस दुर्घटना के पीछे कोई षडयंत्र हो।
मुझे याद आ रही है 10 सितम्बर 2002 को हुई रफीगंज रेल दुर्घटना की, जिसमें भी लगभग 200 जानें गई थीं तथा इतने ही घायल हुए थे। बाद में रेलवे बोर्ड के चेयरमेन एम एस राणा ने इस घटना के पीछे स्थानीय माओवादी नक्सलियों अथवा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई एस आई का हाथ होने का संदेह जताया था। रेलवे अधिकारियों के अनुसार भी धावे नदी पर बने पुल पर फिश प्लेट उखाड़ दी गई थीं, जिसके कारण राजधानी एक्सप्रेस ट्रैन पटरी से उतर गई थी। उस समय भी स्व. अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार थी तथा तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार थे।
जो भी हो आशा की जानी चाहिए कि जल्द ही दुर्घटना के दोषियों का पता चलेगा और उन्हें उनके किये का दंड भी मिलेगा।
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