कुण्डलिनी जागरण अनुभव - 2 - स्व. महात्मा नारायणदास जी एक परिचय
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जैसा कि हमने पिछले एपीसोड में वर्णन किया कि गोपाल कृष्ण जी पौराणिक ने शिवपुरी श्योपुर व ग्वालियर पोहरी के चौराहे पर एक झोंपड़ी बनाई और नाम दिया कल्याण कुटी। यही था अंचल का पहला खादी भण्डार, जिसकी व्यवस्था के लिए अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर श्री नारायण दास जी त्रिवेदी दिल्ली से शिवपुरी आ गए। वे घर घर घूमकर पहले पिछड़े समुदाय और जरूरत मंद लोगों को रुई बांटते, फिर किसी से पाव भर, किसी से आधा सेर कता हुआ सूत वापस एकत्रित करते। उसके बाद वह सूत गाँव के इकलौते बुनकर को देकर उससे आग्रह करते कि भाई आठ गिरह के अर्ज की जगह बारह गिरह का रखना। वह सुनी अनसुनी कर अपने काम में लगा रहता, तो देर तक उसकी स्वीकृति का इंतज़ार करते। मेहनत का परिणाम निकला और अल्प समय में ही कार्य को प्रसिद्धि भी मिल गई। ग्वालियर व्यापार मेले की प्रदर्शनी में पुरष्कार भी मिले। उसी साल जब आदर्श विद्यालय के छात्र मिडिल की परीक्षा देने शिवपुरी गए, तो पोहरी में बनी खादी के वस्त्र पहिनकर ही गए। यह बात अलग है कि उस समय की खादी आज की तरह सफ़ेद झकपक नहीं थी, एकदम सादा गंजी भर थी। धीरे धीरे नारायणदास जी की देखरेख में कागज़ व दियासलाई निर्माण का काम भी शुरू हो गया व इसके लिए कला मंदिर की स्थापना हो गई।
आइये अब नारायणदास जी के विषय में कुछ और जानते हैं। नरवर में दिनांक 5 दिसंबर 1905 को एक गौड़ ब्राह्मण परिवार में जन्मे नारायण दास जी के पिता श्री शिवदयाल जी त्रिवेदी मूलतः आज के हरियाणा में नारनौल जिले के ग्राम मढाना के निवासी थे, जो पोस्ट एंड टेलीग्राफ विभाग की सेवा के चलते शिवपुरी आये थे। बीस वर्ष की आयु में नारायण दास जी का श्रीमती भगवान देवी से विवाह हुआ, किन्तु आठ वर्ष बाद ही 1928 में पत्नी और पिता दोनों ने संसार से विदा ले ली और बाईस वर्षीय तरुण नारायणदास जी ने अपना जीवन लक्ष्य बना लिया – आत्मनो मोक्षार्थ, जगद्धिताय च। सबका भला करते हुए स्वयं का कल्याण।
1929 से 1943 तक आचार्य गोपाल कृष्ण पौराणिक जी के निर्देश पर आदर्श विद्यालय के प्रधानाचार्य व ग्राम कला केंद्र के व्यवस्थापक रहते हुए राष्ट्रसेवा में जुटे रहे । उसके बाद गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित होने वाली कल्याण पत्रिका को पढ़ते पढ़ते मन में आया कि भगवान हैं या नहीं, यह अनुभव से जानना चाहिए। तो बिना जेब में एक पैसा लिए 1 जून 1943 को निकल पड़े पोहरी से। शरीर पर महज एक जोडी वस्त्र। संकल्प लिया कि एक महीने तक किसी से कुछ मांगूंगा भी नहीं, ईश्वर है तो स्वयं कुछ व्यवस्था होगी, अन्यथा तो शरीर छूट ही जाएगा आश्चर्य जनक है कि 30 जून 1943 को नारायण दास जी सकुशल सीतापुर पहुँच गए। यहाँ आते आते ईश्वर पर आस्था और विश्वास दृढ होता गया। उसे और सुद्रढ़ करने का निर्णय लिया और यात्रा का नया लक्ष्य बद्रीनाथ धाम बना लिया। प्रभु कृपा से यह सत्यसंकल्प भी पूर्ण हुआ और उसके साथ ही यह विश्वास भी अटल हो गया कि प्रभु अपने शरणागत की चिंता करते ही हैं। किसी से याचना की आवश्यकता ही नहीं होती, यहाँ तक कि उस परमपिता परमेश्वर से भी नहीं। वह करुणा सागर तो बिना मांगे सब कुछ देता है। कभी किसी रूप में तो कभी किसी रूप में।
इस यात्रा के बाद शिवपुरी आकर एकांत और निर्जन स्थान में एक वृक्ष के नीचे बैठ गए। उसी स्थान पर तीन बालक शिक्षा प्राप्त करने आ गए, इसे प्रभु इच्छा मानकर उन्होंने उन बालकों को पढ़ाना शुरू कर दिया। शनैः शनैः यह तीन बालकों की संस्था बढ़कर “भारतीय विद्यालय” में रूपांतरित हो गई। अनूठी आश्रम पद्धति का शिवपुरी का प्रथम आवासीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय। इसे देखकर तत्कालीन केन्द्रीय शिक्षा मंत्री श्री के एल श्रीमाली की प्रतिक्रिया थी – यह संस्था अन्य संस्थाओं के लिए अनुकरणीय है।
समय के साथ नारायण दास जी आध्यात्मिक उन्नति के सोपान चढ़ते गए। लोग उन्हें महात्मा जी कहने लगे और जिस झोंपड़ी में उनका आवास था, वहां आज भी प्रति गुरूपूर्णिमा को उनके अनुयाई एकत्रित होकर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। जिसे कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है, उसे महात्मा नारायण दास जी ने नया नाम दिया स्वशक्ति साधना। उन्होंने पुस्तकों द्वारा अपने आध्यात्मिक ज्ञान व अनुभवों को जगत के कल्याण हेतु सुरक्षित व संरक्षित कर दिया। उनके द्वारा लिखित पुस्तकें, गीतामृत, रामचरित मानस के दस प्रसंग, साधक शंका समाधान, साधक प्रश्नोत्तर शतक, साधक विचार प्रगति, साधक साधना, जैसे मैंने सीखा, कुण्डलिनी, आत्मबोध, रिअलाईजेशन ऑफ़ सेल्फ, साधना, स्वशक्ति साधना का संक्षिप्त परिचय, दिव्यशक्ति बोध, वचनामृत, बुद्धि विकास, बापू के एकादश वृत, ईसावास्योपनिषद, मानव विकास की पूर्णता, कुण्डलिनी का जीवन में उपयोग, रामचरित मानस में कुण्डलिनी, “मैं” पन का विवेचन आदि उनकी आध्यात्मिक ऊंचाई को दर्शाती हैं।
तो अगले अंक में उनकी पुस्तकों पर आधारित कुंडली जागरण के अनुभवों को साझा करेंगे।
Tags :
धर्म और अध्यात्म
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