वर्तमान युग के मनीषी - महायोगी पायलट बाबा
0
टिप्पणियाँ
भारतीय सेना के विंग कमांडर कपिल सिंह राजपूत ने 1962 में चीन, 1965 में पाकिस्तान और 1971 के बंगलादेश युद्ध में अपने शौर्य का परिचय दिया। देश ने उन्हें वीर चक्र और सेना मैडल से भी सम्मानित किया । लेकिन विधाता ने तो उनकी भूमिका कुछ और ही तय कर रखी थी। सन 1996 में जब वह भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में मिग विमान उड़ा रहे थे, तभी विमान में कोई तकनीकी खराबी आ गई और अचानक विमान नियंत्रण से बाहर हो गया। विमान हादसे का शिकार होते ही रहते हैं, उन्होंने भी मान लिया कि बचना नामुमकिन है। मृत्यु सामने खड़ी थी कि तभी चमत्कार हो गया। उन्हें लगा कि कॉकपिट में उनके गुरु हरि बाबा खड़े हैं। उसके बाद विमान सुरक्षित बेस कैंप पर उतार लिया गया। बेस कैम्प पर उनके अधिकारी व साथी चिंतित मुद्रा में स्थिति पर नजर रखे हुए थे। उन्होंने भी मान लिया था कि दुर्घटना होने ही बाली है। इसलिए जब विमान ने सुरक्षित भूमि को स्पर्श किया, तो सभी हैरत में आ गए। जिस समय कपिल सिंह साथियों से वधाई व शाबासी ले रहे थे, तभी पास की झाडिओं में से हरी बाबा बाहर आये और हाथ फैलाकर कपिल सिंह से दो रुपये मांगे। कपिल ने सादर दो रुपये उन्हें दिये और बाबा वापस घूमकर झाड़ियों में गुम हो गए। आश्चर्य से अधिकारी ने पूछा कौन थे ये, कहाँ से आये और कहाँ चले गए। कपिल ने जबाब दिया, मुझे बचाने आये थे, मुझे बचाकर चले गए।
लेकिन उस घटना के बाद उन्होंने तय किया कि अब वह सेना की लड़ाई से दूर शांति और आध्यात्म का जीवन बिताएंगे । सेना की नौकरी छोड़ने के बाद अपने गुरु के निर्देश पर हिमालय की नंदा देवी घाटी में 16 साल तक तपस्या, ध्यान व योग किया। जब वापस लौटे तो पूरी तरह रूपांतरित हो चुके थे। लोगों ने उन्हें नाम दिया पायलट बाबा। आईये उनके जीवन पर एक विहंगम दृष्टि डालें -
15 जुलाई 1936 को रोहतास जिला सासाराम में कपिल सिंह का जन्म हुआ। घर वालों ने प्यार से 'ललन' कह कर पुकारा। दार्जलिंग से स्कूली शिक्षा पूर्ण कर सन 1957 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से जैविक रसायन विज्ञान में मास्टर डिग्री प्राप्त की। और उसके बाद देश भक्ति की भावना से ओतप्रोत कपिल सिंह ने भारतीय वायु सेना में प्रवेश किया और जैसा कि पूर्व में ही वर्णन किया अपने शौर्य व राष्ट्र प्रेम का परिचय दिया।
विंग कमांडर से पायलट बाबा बनने के बाद उन्होंने आम जन के कल्याण व उन्हें सत्य के मार्ग पर ले जाने हेतु ‘विश्व शांति अभियान’ के तहत विभिन्न राष्ट्रों की आध्यात्मिक यात्रा की जिनमें –जापान ,अमेरिका,रूस ,युक्रेन ,ब्रिटेन ,फ्रांस व जर्मनी और अन्य यूरोपियन राष्ट्र प्रमुख है | इन देशों की यात्रा द्वारा 'योग' ,'ध्यान' और 'क्रिया योग' को माध्यम बना समूचे विश्व को भारतीय संस्कृति से एक बार पुनः परिचय कराने में पायलट बाबा की महत्वपूर्ण भूमिका रहीं |
भारत में भी 'दस महाविद्या' और 'महामृत्युंजय यज्ञ 'यज्ञ सहित १०८ से अधिक यज्ञ कराये। वह अब तक 100 से भी अधिक बार समाधि ले चुके हैं। इसमें सबसे लम्बी समाधि 30 दिनों की थी। जबकि 9 दिन तक जल समाधि और एक दिन तक बिना ऑक्सीजन वाले कमरे में रहे हैं। कहा जा सकता है कि यज्ञ व समाधि के माध्यम से पूरे देश को उन्होंने आध्यात्मिक उर्जा व शक्ति से मथ डाला | आज भी जब वे आयु के छियासी वर्ष पूर्ण कर चुके हैं, अस्वस्थ भी हैं, अहर्निश चिंतन व मनन के साथ मानव कल्याण और विश्व शांति हेतु निरंतर प्रयास रत हैं। प्रेम और भक्ति ही उनके अंदर वास करती है और वह अधिक से अधिक जन कल्याण के लिए संकल्प बद्ध हैं।
Tags :
महापुरुष जीवन गाथा
एक टिप्पणी भेजें