देश से गद्दारी करने के झूठे आरोप से लेकर पद्म भूषण तक की रोमांचक यात्रा - भारतीय वैज्ञानिक नंबी नारायणन

 


सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को 1994 में फर्जी जासूसी के मामले में फंसाने वाले जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश देते ही, यह पुराना मामला एक बार फिर सुर्ख़ियों में आ गया।

12 दिसंबर 1941 को तमिलनाडु में जन्में भारतीय वैज्ञानिक नंबी नारायणन की कहानी देश के प्रत्येक व्यक्ति को जाननी चाहिए, क्योंकि याह भारतीय राजनीति के विद्रूप चेहरे को उजागर करती है। जानकर ही हैरत होती है कि कैसे एक प्रतिभाशाली देशभक्त को राजनीतिक साजिश में फंसाकर देश का गद्दार घोषित कर दिया जाता है । किसी फिल्मी कथानक से कम नहीं है इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नांबी नारायणन की कहानी, जो दर्शाती है कि भारत में प्रतिभाओं का दमन किस प्रकार से होता रहा है । तो आइये जानते है इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन की कहानी जिसमें षडयंत्र, आरोप, गिरफ्तारी और फिर कोर्ट की तारीख दर तारीख के बाद सालों गुजरने के बाद पद्म भूषण से सम्मान पाने तक की लम्बी संघर्ष गाथा है ।

सुप्रीम कोर्ट ने भले ही नारायणन को बेदाग घोषित कर दिया लेकिन वर्षों पूर्व एक इंजेलिजेंस ऑफिसर द्वारा कही हुई एक बात जरूर नारायण के कान में गूंज रही होगी । तब एक इंटेलिजेंस अधिकारी ने उन्हे गिरफ्तार करते वक्त उनसे कहा था कि सर मैं अपनी ड्यूटी कर रहा हूं और अगर आपके निर्दोष होने का दावा सही साबित होगा तो आप मुझे अपनी चप्पल से मारिएगा। बात 90 के दशक की है । उस वक्त स्पेस प्रोग्राम में अमेरिका और रूस का वर्चस्व था । पूरी दुनिया उनके स्पेस मिशन पर निर्भर रहा करती थी । भारत भी अरबों डॉलर खर्च करके अमेरिकन स्पेस प्रोग्राम पर निर्भर रहता था । उस वक्त नंबी नारायणन ने सरकार और देश को भरोसा दिलाया कि भारत भी स्पेस रिसर्च में सक्षम है । उनको स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन जैसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी सौंप दी गई । उनको इस प्रोजेक्ट का डायरेक्टर बना दिया गया । कहा जाता है कि अमेरिका की नजर से बचते हुए वे पाकिस्तान के जरिए रूस से क्रायोजनिक इंजन के पार्ट्स लाए थे ।

लेकिन तभी वर्ष 1994 में तिरुअनंतपुरम से मालदीव एक महिला मरियम राशिदा को गिरफ्तार किया गया । उस पर आरोप लगा कि उसने इसरो के स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन की ड्राइंग की खुफिया जानकारी पाकिस्तान को बेच दी है । इसके बाद इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे नम्बी नारायणन और उनके दो अन्य साइंटिस्ट डी. शशिकुमारन और के. चंद्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया गया । सभी पर पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का आरोप लगा । इसके साथ रुसी स्पेस एजेंसी के एक प्रतिनिधि एसके शर्मा को भी गिरफ्तार किया गया था ।

कहा जाता है कि यह सबकुछ अमेरिकी सरकार के इशारे पर किया जा रहा था । अमेरिका भारत के स्पेस प्रोग्राम को रोकना चाहता था, क्योंकि उसका अरबों डॉलर का बिजनेस प्रभावित होने जा रहा था । इसके लिए उस वक्त केरल में मौजूद लेफ्ट सरकार के कई नेताओं और पुलिस अफसरों को मोटी रकम दिए जाने की बात भी कही जाती है । है न हैरत की बात? कहाँ बामपंथी और कहाँ अमरीका जिसे वे पूंजीवादी कहकर रात दिन कोसते रहते हैं। सचमुच राजनीति की ये उलटबांसियाँ संत कबीर को सहज स्मरण करा देती हैं।

और बस फिर क्या था, आनन फानन में पुलिस जांच के बीच ही नम्बी नारायणन को देश का गद्दार घोषित करके जेल में डाल दिया गया । बिना जांचे-परखे पुलिस की थ्योरी पर भरोसा करते हुए मीडिया ने भी नंबी नारायणन को देश का गद्दार बताने में कोई कोर कसर नहीं छोडी । नतीजा यह हुआ कि स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन बनाने का प्रोजेक्ट ठप्प हो गया । इस क्रायोजनिक इंजन प्रॉजेक्ट के डायरेक्टर रहे नंबी नारायणन चीख चीख कर आरोपों का खंडन करते रहे और इसे अपने खिलाफ साजिश बताते रहे । लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती ही प्रमाणित हुई।

गिरफ्तारी के समय नंबी नारायणन रॉकेट में इस्तेमाल होने वाले स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन बनाने के बेहद करीब पहुंच चुके थे । उन पर लगे आरोपों और उनकी गिरफ्तारी ने देश के रॉकेट और क्रायोजेनिक इंजन प्रोग्राम को कई दशक पीछे धकेल दिया । इसके बाद दिसंबर 1994 में मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई । सीबीआई ने अपनी जांच में इंटेलिजेंस ब्यूरो और केरल पुलिस के आरोप सही नहीं पाए । अप्रैल 1996 को सीबीआई ने चीफ जूडिशल मजिस्ट्रेट की अदालत में फाइल की गई एक रिपोर्ट में बताया कि पूरा मामला फर्जी है और लगाए गए आरोपों के पक्ष में कोई सबूत नहीं है ।

सीबीआई जांच में यह बात सामने आई कि भारत के स्पेस प्रोग्राम को डैमेज करने की नीयत से नंबी नारायणन को झूठे केस में फंसाया गया था । जांच में इस बात के संकेत मिले कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के इशारे पर केरल की तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार ने नंबी नारायणन को साजिश का शिकार बनाया । यह सारी कवायद भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को ध्वस्त करने की नीयत से हो रही थी । यह वह दौर था जब भारत अपने स्पेस प्रोग्राम के लिए अमेरिका समेत अन्य देशों पर निर्भर था । इसके लिए भारत को करोड़ों-अरबों रुपये खर्च करने होते थे ।

स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत के आत्मनिर्भर होने से अमेरिका को कारोबारी नुकसान होने का डर था । एसआईटी के जिस अधिकारी सीबी मैथ्यूज ने नंबी के खिलाफ जांच की थी, उसे केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने बाद में राज्य का डीजीपी बना दिया । सीबीआई जांच में सीबी मैथ्यूज के अलावा तब के एसपी केके जोशुआ और एस विजयन के भी इस साजिश में शामिल होने की बात सामने आई । माना जाता है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने इसके लिए केरल की तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार में शामिल बड़े नेताओं और अफसरों को मोटी रकम मुहैया कराई थी । असल में देश से गद्दारी नंबी नारायणन नहीं, ये लोग कर रहे थे । इसके बाद मई 1996 में कोर्ट ने सीबीआई की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और इस केस में गिरफ्तार सभी आरोपियों को रिहा कर दिया । मई 1998 में इसके बाद केरल की तत्कालीन सीपीएम सरकार ने मामले की फिर से जांच का आदेश दिया । सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार द्वारा इस मामले की फिर से जांच के आदेश को खारिज कर दिया । वर्ष 1999 में नंबी नारायणन ने मुआवजे के लिए कोर्ट में याचिका दाखिल की । 2001 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केरल सरकार को उन्हें क्षतिपूर्ति का आदेश दिया, लेकिन राज्य सरकार ने इस आदेश को चुनौती दी । अप्रैल 2017 को सुप्रीम कोर्ट में नंबी नारायणन की याचिका पर उन पुलिस अधिकारियों पर सुनवाई शुरू हुई जिन्होंने वैज्ञानिक को गलत तरीके से केस में फंसाया था । नारायणन ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जिसमें कहा गया था कि पूर्व डीजीपी और पुलिस के दो सेवानिवृत्त अधीक्षकों केके जोशुआ और एस विजयन के खिलाफ किसी भी कार्रवाई की जरूरत नहीं है ।

वर्ष 1996 में ही आरोपमुक्त हो चुके नंबी नारायणन ने अपने सम्मान की लड़ाई जारी रखी और 24 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने 14 सितंबर 2018 को उनके खिलाफ सारे नेगेटिव रिकॉर्ड को हटाकर उनके सम्मान को दोबारा बहाल करने का आदेश दिया । तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की तीन जजों की पीठ ने केरल सरकार को आदेश दिया कि नंबी नारायणन को उनकी सारी बकाया रकम, मुआवजा और दूसरे लाभ दिए जाएं । सर्वोच्च अदालत ने अपने आदेश में कहा कि नंबी नारायणन को मुआवजे के साथ बकाया रकम और अन्य दूसरे लाभ केरल सरकार देगी । इसकी रिकवरी उन पुलिस अधिकारियों से की जाएगी जिन्होंने उन्हें जासूसी के झूठे मामले में फंसाया । साथ ही सभी सरकारी दस्तावेजों में नंबी नारायणन के खिलाफ दर्ज प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने का आदेश दिया । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नंबी नारायणन को हुए नुकसान की भरपाई पैसे से नहीं की जा सकती है, लेकिन नियमों के तहत उन्हें 75 लाख रुपये का भुगतान किया जाए । सुप्रीम कोर्ट जब यह फैसला सुना रहा था तब नंबी नारायणन वहां मौजूद थे ।

देश के इस महान वैज्ञानिक के साथ हुई साजिश के खिलाफ भाजपा को छोड़ किसी भी राजनीतिक दल ने कभी आवाज नहीं उठाई । साल 2019 में भाजपा सरकार में उन्हें पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया । नंबी नारायणन ने कहा था, ''पद्म भूषण सम्मान से नवाजे जाने की मुझे बहुत खुशी है । मुझे सभी स्वीकार कर रहे हैं । पहले सुप्रीम कोर्ट ने मुझे निर्दोष बताया, फिर केरल सरकार मेरे पास आई और अब केंद्र ने भी मुझे स्वीकार कर लिया है ।''

ऐसा माना जाता है कि नंबी नारायणन के खिलाफ साजिश नहीं हुई होती तो भारत 15 साल पहले ही स्वेदशी क्रायोजेनिक इंजन बना चुका होता । उस दौर में भारत क्रायोजेनिक इंजन टेक्नोलॉजी पाना चाहता था । अमेरिका ने इसे देने से साफ इनकार कर दिया था । रूस से समझौता करने की कोशिश हुई, बातचीत अंतिम चरण में थी, लेकिन अमेरिका के दबाव में रूस मुकर गया । तब नंबी नारायणन ने भारत सरकार को भरोसा दिलाया था कि वह अपनी टीम के साथ स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन बनाकर दिखाएंगे । वह अपने मिशन को सही दिशा में लेकर चल रहे थे तभी अमेरिका के इशारे पर उनके खिलाफ साजिश की गई । नंबी नारायणन ने अपने साथ हुई साजिश पर 'रेडी टू फायर: हाउ इंडिया एंड आई सर्वाइव्ड द इसरो स्पाई केस' (Ready To Fire: How India and I Survived the ISRO Spy Case) नाम से किताब भी लिखी है । अब नम्बी नारायण के इसी संघर्ष को फिल्म रॉकेट्री: द नंबी इफेक्ट के जरिए रुपहले पर्दे पर भी दिखाया जाएगा । इस कहानी को रुपहले पर्दे पर दिखाने जा रहे हैं आर माधवन (R Madhavan), जो इस फिल्म के जरिए डायरेक्टोरियल डेब्यू भी कर रहे हैं और लीड रोल में भी हैं । आर माधवन की फिल्म 'रॉकेट्री: द नंबी इफेक्ट' का ट्रेलर रिलीज़ हो चुका है, जिसे देखने के बाद यह कहना कि फिल्म अंतरिक्ष विज्ञान की बात करने वाले देश की पहली प्रामाणिक फिल्म है, अतिश्योक्ति नहीं होगी ।

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