हिन्दी सिने जगत में "पेड़मेन" से चर्चित हुईं उर्मिला महंता के संघर्ष की कहानी - उन्हीं की जुबानी !
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फिल्म जगत की जानीमानी अभिनेत्री उर्मिला महंता जी ने क्रांतिदूत को अपना साक्षात्कार प्रदान किया | असम में कामरूप जिले के सोनापुर में पैदा हुई उर्मिला जी के विषय में आपको यह जानकर हैरत होगी कि उन्होंने न केवल असमी, बंगाली, हिन्दी बल्कि तमिल और मलियालम फिल्मों में भी अभिनय की बुलंदियों को स्पर्श किया है | २०१२ में उनके तमिल क्राइम थ्रिलर वज़हक्कू में उनके अभिनय से प्रभावित होकर एक फिल्म समीक्षक ने प्रशंसा करते हुए लिखा था कि वे किसी लघु कविता जैसी प्रभावशाली प्रतीत होती हैं जो लगातार ऊर्जा के बुलबुले पैदा करती हैं | यह प्रशंसा कोई बैसे ही नहीं कर सकता
उर्मिला महंता जी को उनके अठारह वर्षीय कलाकार जीवन में अनेक क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरष्कार प्राप्त हुए हैं | वे हाल ही में श्री अमिताभ बच्चन व श्री अक्षय कुमार के साथ पेड़ मेन में भी अभिनय कर चुकी हैं | फिल्मी दुनिया की आतंरिक वास्तविकता को दर्शाता, क्रांतिदूत के लिए दिवाकर शर्मा को दिया गया उनका इंटरव्यू अनेक नए कलाकारों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है –
दिवाकर - नमस्कार | सबसे पहले तो आपका आभार कि आपने क्रांतिदूत वेव साईट / क्रांतिदूत यूट्यूब चेनल को इंटरव्यू प्रदान करने की सहमति दी |
उर्मिला महंता – थैंक्यू, माय प्लेजर
दिवाकर - मैंने आपकी बायोग्राफी देखी है, उसके अनुसार आपका जन्म असाम के सोनापुर में हुआ, लेकिन सबसे पहले चर्चित हुईं तमिल क्राइम थ्रिलर वज़हक्कू से | यह कैसे हुआ ? असमी और बंगाली भाषा का साम्य तो समझा जा सकता है, किन्तु तमिल आपने सीखी यह बड़ी बात है | यह कैसे हुआ ?
उर्मिला महंता – जब मैं एफ टी आई (फिल्म एंड टेलीविजन इन्स्टीट्यूट) में थी, तब हम लोगों को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल गोवा में भेजा गया और वहां एक डायरेक्टर महोदय ने मुझे स्पॉट किया और बुलाया | उसके बाद मैं ऑडिशन के लिए चेन्नई गई, यह ऑडिशन हफ्ते दस दिन चला, यह रियल लोकेशन पर हुआ, ऐसा नहीं कि कुछ लाईन दे दीं और आप कैमरे के सामने पहुँच गए, ऐसा नहीं था | बाकायदा कास्ट्यूम बगैरह पहनाकर, रियल लोकेशन में बाक़ी कोएक्टर सहित हमको भेजा जाता था, और एक लाईन में बता दिया जाता था कि इस पर आपको प्रोवाईड करना है | वह ऑडिशन क्लियर करने के बाद लुक टेस्ट हुआ, और फाइनली आई गोट सक्सेस |
दिवाकर - आपके परिवार में क्या कोई और भी अभिनय क्षेत्र से जुड़ा है, आखिर आपने यह क्षेत्र क्यों और कैसे चुना ?
उर्मिला महंता – नहीं मेरे परिवार का कोई अन्य सदस्य अभिनय क्षेत्र में नहीं है | मुझे बचपन से ही अभिनय के प्रति रूचि थी, जब मैं सिक्स्थ क्लास में थी, तब हमारे स्कूल की तरफ से गर्मियों की छुट्टियों में एक महीने के सीजनल एक्टिंग वर्कशॉप के लिए सबको भेजा गया था, उसीमें सबसे पहले नाटक के बारे में मुझे पता चला | तभी पहली बार मैंने किसी नाटक में भाग लिया | बचपन था, बस एक्टिंग करना अच्छा लगता था, हॉबी की तरह था यह | उसके बाद हमारे ग्रुप को आसाम में कई अवार्ड्स भी मिले | उसके बाद (हंसते हुए) जब टेंथ में पहुंची, तब भाई बहिन बहुत चिढाते थे, अब तो छोड़ दे, बचपना ख़तम हो गया तेरा |
उसके बाद जब मैं कोलेज में पहुंची तब आसाम के कुछ सेटेलाईट चेनल्स में मैंने दो तीन शो किये, लेकिन तब तक ऐसा कुछ नहीं था कि मैं एक्टिंग फील्ड में ही जाउंगी या मुझे एक्टिंग ही करनी है | जब मैं कोलेज में पढ़ रही थी, उसी समय मेरी बड़ी बहिन पूना में पढाई कर रही थी, उनको एफ टी आई के बारे में पता चला | मेरे जीजू के कुछ फ्रेंड्स भी एफ टी आई में थे, तब दीदी ने ही मुझे कहा कि तुम्हें एक्टिंग में रूचि है तो एफ टी आई में ट्राय क्यों नहीं करतीं ? तब तक मुझे एफ टी आई के बारे में एक्चुअली पता भी नहीं था कि यह क्या होता है | उस समय तक मुझे यह भी लगता था कि किसी को एक्टिंग कैसे सिखाई जा सकती है, जब बिना सीखे ही मैं एक्टिंग कर सकती हूँ, तो सीखने की क्या जरूरत है | ऐसा कुछ दिमाग में था, तो मैंने कोई ख़ास तबज्जो नहीं दी थी कि आसाम से बाहर जाकर किसी इन्स्टीट्यूट में पढाई करनी है | लेकिन जब दीदी ने कहा तो मैंने भी सोचा, चलो ट्राय कर लेते हैं | मैंने किसी को नहीं बताया कि मैं एफ टी आई में जाने के लिए प्रयत्न कर रही हूँ | मैंने सुन रखा था की यह कम्पटीशन बहुत टफ होता है, एक बार में तो क्लियर करना मुश्किल ही होता है | लेकिन मैंने बिना किसी को बताये बहुत मन लगाकर तैयारी की, मेरे दोस्तों को भी पता नहीं था कि मैं यह एग्जाम देने वाली हूँ | एग्जाम के फर्स्ट राउंड में मेरा नाम एकदम लास्ट में आया, लेकिन मैं चूंकि नीचे से ही देख रही थी, तो लगा चलो रिजल्ट तो क्लियर हो गया (हँसी) |
फिर सेकिंड राउंड के लिए कोलकता बुलाया गया, जहाँ इंटरव्यू हुआ | इतने सारे लोगों को देखकर मुझे लग रहा था कि नहीं यह तो शायद नहीं हो पायेगा | चूंकि ऐसा भी नहीं था कि नहीं नहीं मुझे तो जाना ही है, इसलिए कोई ख़ास चिंता नहीं थी | लेकिन फिर लेटर आया कि यह भी हो गया | फिर तीसरे राउंड के लिए जब मैं एफ टी आई पहुंची तो देखा देश भर के चुने हुए लोग भी वहां पहुंचे थे | कुल १४९ फाईनलिस्ट थे हम | उसमें जो २६ लोग चुने गए, उनमें मैं सेकिंड टॉपर रही | उसके बाद मैंने डिसाईड किया कि मुझे इसी क्षेत्र में रहना है | अगर प्लानिंग करती तो शायद नहीं हो पाता, जो कुछ हुआ बिना प्लानिंग के ही हुआ | बस बचपन से रूचि थी बहुत | टीवी देखना अच्छा लगता था, मन करता था कि बस टीवी के सामने ही बैठी रहूँ |
दिवाकर - फ़िल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे में दाखिला लेने के बाद का कोई उल्लेखनीय संस्मरण ?
उर्मिला महंता – सबसे उल्लेखनीय तो यही है कि मैंने एफ टी आई एक ही बार में क्लियर कर लिया और सेकिंड टॉपर रही | आज लगता है कि एफ टी आई में जाना मेरे जीवन का टर्निंग पॉइंट रहा | अगर एफ टी आई नहीं जाती तो गोवा फिल्म फेस्टीवल में नहीं जाती | वहां नहीं जाती तो उन डायरेक्टर से मुलाक़ात नहीं होती | मैं अपने एक वेचमेट के साथ जो चेन्नई से था, फिल्म देखने के लिए टिकिट लेने क्यू में खडी थी, तमिल फिल्मों के एक नामी गिरामी डायरेक्टर भी वहां अपने कुछ एक्टर्स के साथ बैठे हुए थे | मेरे दोस्त ने कहा कि यह तमिल फिल्मों के बहुत बड़े डायरेक्टर हैं, चलो मिलते हैं | मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि काम के लिए साउथ वाउथ जाउंगी, सो मैंने कहा भी कि तुम जाकर मिल लो, मैं यहाँ ही खडी हूँ | उसने कहा आ जाओ ना, हाय वाय करने में हर्ज ही क्या है | तो मैं गई, लेकिन उनकी लेंग्वेज तो मुझे बिलकुल समझ में नहीं आती थी, सो सर से हलो हाय बोलकर कुछ दूर खडी होकर अपने दोस्त के आने का इंतज़ार करने लगी |
उसके बाद सर का कार्ड लेकर एक असिस्टेंट डायरेक्टर आया और कहा सर आपसे बात करना चाहते हैं | उस समय मेरे मन में लड्डू फूटने लगे, क्योंकि मैंने कई किस्से सुन रखे थे कि डायरेक्टर इसी प्रकार एक्टर चुन लेते हैं | मेरे दो अन्य कोएक्टर्स को भी इसी प्रकार मुंबई में स्पॉट किया गया था | उस समय मन में बहुत उथल पुथल थी, ऐसा लग रहा था कि किसी ने बुलाया माने काम मिल ही गया | हालांकि वह भ्रम बाद में टूट गया (हँसी) | तो मैं गई, सर से बात की, सर ने कहा कि मैं ऐसे फिल्म बना रहा हूँ, तो क्या आप हीरोइन के रूप में एक्टिंग करना चाहोगी ? उसके पहले मेरी फिल्म यहाँ लगी है, वह देख लेना, उसके बाद ठीक लगे तो चेन्नई आकर मिलना |
फिल्म देखने के बाद मुझे लगा कि वह बहुत ही रियलिस्टिक एप्रोच रखते हैं, और बहुत ही नेचुरल मोड़ में काम करते हैं | मुझे बहुत अच्छा लगा | उसके बाद मैंने अपना फोटो चेन्नई भेज दिया | तीन चार महीने बाद उनका कॉल आया कि आपको ऑडीशन के लिए चुना गया है, आप आओगी क्या ? मैंने कहा – हाँ जरूर | मैंने डिपार्टमेंट से परमीशन ली और ऑडीशन के लिए गई | मेरा सिलेक्शन हो गया, यह मेरी लाइफ का बहुत बड़ा इंसीडेंट है कि मैं किस प्रकार साउथ फिल्म इंडस्ट्री में गई और मूवी भी बहुत हिट हुई, दो दो नॅशनल एवार्ड मिले फिल्म को, मुझे भी काफी पहचान मिली, पहली ही फिल्म में मुझे भी चेन्नई में विजय एवार्ड और दो अन्य साऊथ इन्डियन इंटरनॅशनल मूवी एवार्ड्स मिले | मैं नार्थ ईस्ट की पहली ऐक्ट्रेस हूँ, जिसको साउथ इंडियन नेशनल मूवी एवार्ड्स में नोमिनेशन मिला |
दिवाकर - आप २०१२ से फिल्मी दुनिया से जुड़ी हुई हैं | अर्थात कहा जा सकता है कि आपके करियर के लगभग अठारह वर्ष हो चुके हैं | २०१२ में ही तमिल क्राइम थ्रिलर वज़हक्कू में आपके अभिनय से प्रभावित होकर एक फिल्म समीक्षक ने आपकी प्रशंसा करते हुए लिखा था कि आप किसी लघु कविता जैसी प्रभावशाली प्रतीत होती हैं जो लगातार ऊर्जा के बुलबुले पैदा करती हैं | यह प्रशंसा कोई बैसे ही नहीं कर सकता, क्या आप हमारे हिन्दी भाषी दर्शकों को बताना पसंद करेंगी कि ऐसी क्या ख़ास विशेषता उस थ्रिलर में और आपके अभिनय में थी, जिसके चलते समीक्षक महोदय इतने प्रभावित हुए ?
उर्मिला महंता – अब इसका जबाब देना मेरे लिए मुश्किल है | इतना ही कह सकती हूँ कि अगर आप या आपके पाठक समय निकालकर स्वयं वह फिल्म देखेंगे तो उन्हें कारण समझ में आ जायेगा कि समीक्षकों ने ऐसे रिमार्क्स क्यों दिए | उस समय मेरे लिए भी बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि उस समय मैं अपने इकलौते दोस्त और उसके परिवार के अलावा, साउथ में किसी को नहीं जानती थी | यहाँ तक कि शूटिंग के समय भी मुझे तमिल नहीं आती थी | सच कहा जाए तो बीच में ऐसा समय भी आ गया था, जब मुझे ऐसा लगने लगा था कि शायद मैं नहीं कर पाउंगी, क्योंकि मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था | साउथ के शब्दों को पढ़के, याद करके फिर बोलना, सचमुच बहुत टफ था मेरे लिए | और ऐसी परिस्थितिं में जब लेंग्वेज नहीं आती हो, मुझको खुदको भी नहीं पता हो कि मैं क्या बोल रही हूँ सामने वाले को, और वह जबाब में क्या बोल रहा है, वह भी मुझे नहीं पता, बट आई हेव टू एक्ट, आई हेव गेव टू एक्सप्रेशन, मेरे लिए बहुत ही चेलेंजिंग रहा | इसके लिए मैं धन्यवाद देना चाहूंगी मेरे डायरेक्टर को, ही इज वैरी वैरी सेन्सीबल डायरेक्टर | वे जानते थे कि लड़की लेंग्वेज नहीं समझती, और आपको हैरानी होगी जानकर कि हमको स्क्रिप्ट भी नहीं दी गई थी | एक दिन पहले हमें सीन बताया जाता था | मुझे उस लिखे हुए को याद करना होता था, इसके अलावा फिल्म का क्लाइमेक्स क्या है, डायरेक्टर की योजना क्या है, फिल्म को किधर ले जा रहे हैं, कैसा रिलेशनशिप है, कुछ नहीं पता होता था | बस शॉट के पहले समझाया जाता था | मैंने डायरेक्टर के निर्देशों का बखूबी पालन किया, वह रिफ्लेक्ट हुआ वहां पर | मेरी भूमिका एक टिपिकल टाइप की लड़की की थी, मैंने पहले स्लम देखे भी नहीं थे, कैसे होते हैं चेन्नई में, क्योंकि ऑडीशन के पहले चेन्नई गई ही नहीं थी | तो शूट के दो दिन पहले मुझे स्लम्स में लेके गए थे देखने के लिए | उसी दो दिन में मैंने जो देखा, जो समझा, मुझे डबल मेहनत करनी पड़ रही थी, एक तो लाइन को याद रखना, फिर सीन को याद रखना, इसके अलावा एक्टर के रूप में जब आप कैमरे के सामने होते हो, तो सब भूल जाते हो कि क्या याद किया था | कुल मिलाकर यह आसान नहीं था मेरे लिए | इसीलिए मैं सदा अपने डायरेक्टर और अलमाईटी गॉड के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ, जिसके चलते मैं वह एक्सप्रेशन दे पाई, जो जरूरी थे, चाहिए थे | आप विश्वास नहीं करोगे कि जब हमारा प्रिव्यू शो था, तब मैं सब टाईटल्स देखती थी और अपने एक्सप्रेशन देखती थी, कि वे उसके अनुरूप हैं कि नहीं | तो आप समझ सकते हैं कि कितना कठिन था वह सब मेरे लिए | मुझे सचमुच बहुत खुशी हुई कि समीक्षकों को वह इतना अच्छा लगा | जबकि मैं उनमें से किसी को नहीं जानती, कभी मिली भी नहीं | हिन्दू व टाइम्स ऑफ़ इंडिया जैसे समाचार पत्रों ने मेरी जैसी न्यूकमर को लेकर इतनी बड़ी बड़ी बातें लिखीं, वह भी मेरी पहली ही फिल्म को लेकर, यह मेरे लिए किसी एवार्ड से कम नहीं थीं | इस प्रकार मेरी पहली फिल्म साउथ में, उसके बाद बोलीबुड में उसके बाद बंगाली में काम कर लेने के बाद कहीं जाकर मेरे घर बालों को लगा कि अच्छा ये एक्टिंग कर सकती है (हंसी के साथ) |
दिवाकर – हिंदी, असमिया, बंगाली और मलयालम फिल्मों में अभिनय के दौरान का आपका कोई ऐसा संस्मरण जो आप कभी नहीं भूल सकतीं ? बोलिबुड और अन्य भाषाई सिनेमा के साथ काम करते समय आप सहज कहाँ रहीं और थोड़ी कठिनाई कहाँ अनुभव हुई ?
उर्मिला महंता – निश्चय ही पहली फिल्म में सबसे अधिक कठिनाई हुई, लेकिन उसके बाद मुझमें यह कोंफीड़ेंस आ गया कि मैं अब किसी भी भाषा की फिल्म में काम कर सकती हूँ | तमिल फिल्म के बाद जिस हिन्दी फिल्म में मुझे लीड रोल में काम मिला, उस फिल्म के क्लाईमेक्स को लेकर प्रोड्यूसर डायरेक्टर के बीच कुछ प्रोब्लम हुई, और वह फिल्म अभी तक रिलीज नहीं हुई है | मेरी पहली हिन्दी फिल्म मांझी में भी मुझे लीड रोल के उपयुक्त माना गया था, किन्तु मैं कुछ देरी से पहुंची और उसके पहले राधिका आप्टे फाईनल हो चुकी थीं, शायद मेरी किस्मत मेरे साथ नहीं थी | इसलिए मुझे सहायक अभिनेत्री का रोल मिला |
दिवाकर - आपने बहुत से पुरष्कार भी जीते हैं, सर्वश्रेष्ठ डेव्यु अभिनेत्री, सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री, सर्वश्रेष्ठ महिला अभिनेत्री, सर्वश्रेष्ठ कलाकार का खिताब भी आपको समय समय पर प्राप्त हुआ, यहाँ तक कि यूथ आइकोन भी माना गया | इनमें सबसे रुचिकर और आनन्द दायक अवसर आपको कौनसा लगा और क्यों ?
उर्मिला महंता – एक कलाकार को जब कोई मान्यता मिलती है, तब हमेशा ही उसे बहुत अच्छा लगता है | मैं एक्टर की बात नहीं कर रही, कलाकार की बात कर रही हूँ | कलाकार के लिए तो दो तालियाँ बजा दी जाएँ, यह भी बड़ी बात होती है | किन्तु जब पहली फिल्म में पहली बार नोमिनेशन मिले थे, वह मेरे लिए अविस्मरणीय है | जब पहली बार मुझे फोन आया था कि आपको नोमिनेट किया गया है, तो उस समय की ख़ुशी को मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती | उसके बाद जब २०१६ में आसाम में मुझे पहला एवार्ड मिला, बेस्ट फीमेल एक्टर, वह मेरे लिए बहुत यादगार था | मुझे ऐसा लगता है कि दुनिया में कहीं भी कुछ कर लो, जब तक आपके घर बाले आपको रिकाग्नाईज न करें, यह हमारी बेटी है, तब तक हर उपलब्धि अधूरी है |
दिवाकर - मेरे एक मित्र ने मुझे बताया है कि आप जितनी अच्छी अभिनेत्री हैं, उससे कहीं अधिक आप एक अच्छी इंसान हैं | लेकिन शायद हमारे दर्शकों और पाठकों को यह जानकर अच्छा लगेगा कि आपकी नजर में आपके साथ काम करने वाले कलाकारों में से किसने आपको सबसे ज्यादा प्रभावित किया और क्यों ? क्या अपना इस विषय में अपना अनुभव साझा करना पसंद करेंगी ?
उर्मिला महंता – काम करते समय कई ऐसे लोग मिलते हैं, जो आपको इंस्पायर करते हैं | वे बाहर के हों, एक्टिंग टीम से हों, इसलिए किसी एक का नाम लेना मेरे लिए मुश्किल है | मैंने अमित भार्गव जी के साथ काम किया, बहुत ही मेच्योर, हम्बल, बहुत ही अच्छे अभिनेता, उनके साथ काम करके बहुत अच्छा लगा | मैंने मांझी द माउंटेनमेन की, उसमें नवाज के साथ काम करना एक अनूठा अनुभव था | पत्थर तोड़ने के एक सीन के समय नवाज को लेग इंजुरी हुई, यहाँ तक कि वाल्क करते समय भी वे छडी लेकर वाल्क करते थे, लेकिन जब उनका सीन होता था, तब पहाड़ पर चढ़ाई करना, पत्थर तोड़ना, यह सब काम वो ऐसे करते थे, जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो | हालांकि सीन के बाद वे कराह उठते थे | जो चल नहीं पा रहे, वह टूटी हुई लिगामेंट के साथ, कुल्हाड़ी लेकर पहाड़ पर चढ़ाई कर रहे है, पत्थर तोड़ रहे हैं | इसे कहते हैं अभिनेता | वह मेरे लिए बहुत ही इन्सपायरिंग मूमेंट था | मैं बहुत ज्यादा प्रभावित हुई | इसी प्रकार पेड़मेन के समय अक्षय कुमार सर से मैं बहुत प्रभावित हुई | काम के लिए, टाईम के इतने पंक्चुअल, डाउन टू अर्थ, कभी फील नहीं हुआ कि इतने बड़े स्टार के साथ हम काम कर रहे हैं | सोनम कपूर भी मुझे बहुत अच्छी लगीं, उनके साथ काफी सारी बातें होती थीं, हमारे आसाम के बारे में पूछती थीं, वे बहुत ज्यादा ट्रांसपेरेंट हैं | जो मन में होता है, वह बोल देती हैं | उनकी यह बात मुझे बहुत पसंद आई |
दिवाकर - आपका अगला प्रोजेक्ट कौनसा है ? किस फिल्म में दर्शक आपको देख पायेंगे ?
उर्मिला महंता – काफी सारी फ़िल्में है, एक महिला प्रधान मलयालम फिल्म लॉकडाउन के बाद जल्द ही रिलीज होने वाली है, रोसगुल्ला | उसमें मैंने एक विस्थापित युवती की भूमिका निबाही है, जो जीवन में काफी संघर्ष करके कोलकता से केरला पहुँचती है और उसके बाद उसकी लाईफ एक और टर्न लेती है | इसके अलावा लॉक डाउन के पहले मुम्बई में हाल ही में मैंने एक और फिल्म की शूटिंग की थी - पवल, उसमें मैं एक आईटी प्रोफेशनल का किरदार निभा रही हूँ | बहुत इंट्रेस्टिंग केरेक्टर है | उसमें शायद जल्द ही देख पायें | उसके बाद आसाम में मेरी चार फ़िल्में आ रही हैं | सब अलग अलग रंगों की | मैं बहुत एक्साईटेड हूँ, उन्हें लेकर | तो इस प्रकार फिलहाल तो छः मूवीज हैं |
दिवाकर - आपकी अगली महत्वाकांक्षा क्या है ?
उर्मिला महंता – महत्वाकांक्षा यह शब्द जब हम बोलते हैं तो इससे मुझ नेगेटिव फीलिंग आती है, मानो महाभारत का कोई प्रसंग हो | मैं ज्यादा प्लानिंग में विलीव नहीं करती हूँ | मैं बस भगवान से यही दुआ करती हूँ कि मुझे चेलेंजिंग किरदार मिलें, और उन्हें मैं बखूबी निभा पाऊँ, इतनी शक्ति वे मुझे दें | मेरे साथ एक अनूठी घटना हुई - मैंने माजिद मजीदी की फिल्म बियोंड द ड्रीम एफ टी आई में देखी थी, तब मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इस महान डायरेक्टर से मेरी कभी मुलाक़ात भी होगी, कभी देख भी पाउंगी उनको, लेकिन उनके साथ काम करने का अवसर मिला बियोंड द क्लाउड में | तो मुझे लगता है कि भगवान को पता है कि हमें क्या मिलना चाहिए, और वह उसे खुद ही दे देते हैं | इसलिए मैं प्लानिंग में उतना ज्यादा विलीव नहीं करती | लेकिन यह विलीव करती हूँ कि महनत करते जाना है, जो भी अच्छे काम आ रहे हैं, करते जाना है, मुझे सुप्रीम पॉवर पर पूरा विश्वास है | मैं यह मानती हूँ कि वो है | उसका जो भी नाम दें – भगवान कहें, पॉवर ऑफ़ नेचर कहें, जो भी कहें, मैं तो उन्हें भगवान ही कहती हूँ |
दिवाकर – उर्मिला जी, आपके उज्वल भविष्य की हार्दिक शुभकामना व एक बार पुनः धन्यवाद क्रांतिदूत को इंटरव्यू देने के लिए |
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