साधुवाद कैलाश विजयवर्गीय !
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कैलाश विजयवर्गीय आजकल बंगाल में हैं । उद्देश्य एक ही है - राज्य में एनआरसी की संभावना से उत्पन्न तनाव को शांत करना।
जब केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता बाबुल सुप्रियो को कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय में छात्रों द्वारा कथित रूप से अपमानित किया गया, तो पार्टी के बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने राज्य में "राष्ट्रपति शासन” लगाने की मांग की। स्वाभाविक ही इससे सेक्यूलरों के पेट में मरोड़ उठना ही थे ।
इस घटना के एक हफ्ते बाद ही कैलाश विजयवर्गीय ने पश्चिम बंगाल की राजनीति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “अब सीपीएम” का प्रभाव महज कुछ विश्वविद्यालय परिसरों तक ही सीमित बचा है, जहां वे प्रासंगिक रहने के लिए फिजूल कवायद करते रहते हैं । लेकिन उनके पास कम से कम एक विचारधारा तो है, ममता बनर्जी के पास तो वह भी नहीं है ”।
विजयवर्गीय के परिश्रम की तारीफ़ करनी होगी । वे अब तक बंगाल के प्रत्येक जिले में कम से कम एक दर्जन बार जा चुके हैं, हर जिले में अब पार्टी के कार्यालय हैं, इतना ही नहीं तो उन्होंने बंगाली भी सीख ली है । स्वाभाविक ही उनके बयानों और परिश्रम से विरोधी तिलमिला ही रहे हैं । आईये कैलाश जी के जीवन के उतार चढाव को देखें -
जन नेता कैलाश विजयवर्गीय 1990 और 2013 के बीच इंदौर से छह बार विधायक रहे और एक बार महू से विधायक बने - वे कभी कोई चुनाव नहीं हारे।
2018 में, उन्होंने अगली पीढ़ी के राजनीति में प्रवेश को आसान बनाने के लिए चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। विजयवर्गीय के बड़े बेटे, आकाश, अब इंदौर -3 निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी के विधायक हैं, उनका छोटा बेटा एक व्यवसायी है, जबकि उनके भाई इंदौर में एक मध्यम आकार का पारिवारिक रेस्तरां 'वृंदावन' चलाते है।
कैलाश विजयवर्गीय एक मिल मजदूर के बेटे हैं । एक समय था जब इंदौर में लगभग एक दर्जन कपड़ा मिलें थीं, जो मध्य प्रदेश के इस सबसे समृद्ध शहर की आर्थिक रीढ़ थीं। परिवार नंदा नगर में जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर बने टीनशेड के तीन कमरों में गुजर बसर करता था ।
वह भूखंड आज भी कैलाश विजयवर्गीय के ही पास है, हाँ भवन जरूर आधुनिक सुख सुविधा युक्त दो मंजिला बन गया है । कॉलोनी के बुजुर्गों को आज भी याद है कि कैलाश जी की मां अपने उसी घर में संचालित एक छोटी सी दुकान में गोली बिस्कुट और चूरन बेचती थी। जबकि पिताजी हुकुमचंद मिल्स में काम करते थे और भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे।
दुर्भाग्यवश इंदौर की कपड़ा मिलें बंद हुईं और सैकड़ों श्रमिकों के साथ साथ इनके परिवार को भी गंभीर आर्थिक संकट झेलना पड़ा । लेकिन इसके बावजूद उनकी पढाई जारी रही और उसी दौर में अर्थात 1975 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए । विजयवर्गीय 1983 में इंदौर नगर निगम के पार्षद और 1990 में विधायक बने।
इंदौर नगर निगम के महापौर बनने के बाद तो वे इंदौर के एकछत्र नेता घोषित हो गए । यहाँ तक कहा जाने लगा कि उनके इशारे के बिना पत्ता भी भी नहीं फड़क सकता ।
दिसंबर 2003 में, विजयवर्गीय को राज्य मंत्रिमंडल में शामिल किया गया और 2014 तक वे मंत्री रहे, और पार्टी को मजबूती दी । लेकिन उसके बाद वे राज्य की राजनीति से राष्ट्रीय फलक पर पहुँच गए । कारण साफ़ है – एक म्यान में दो तलवार कैसे रह सकती हैं । पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज जी के साथ उनकी सत्ता प्रतिस्पर्धा लगातार चर्चित जो रहती है । लेकिन यहाँ भाजपा की प्रशंसा करनी होगी कि कैलाश जी मध्यप्रदेश में गुटबाजी के माध्यम से पार्टी को कमजोर करने के स्थान पर बंगाल में पार्टी को मजबूत कर रहे हैं ।
साधुवाद कैलाश जी !
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