जब इस्लाम नहीं था - काबा और मक्केश्वर महादेव शिवलिंग - संजय तिवारी
0
टिप्पणियाँ
इस्लाम के लिए काबा कितना महत्वपूर्ण है , इस बारे में किसी को बताने की आवश्यकता नहीं। काबा ही इस्लाम की सबसे पहली उपासनास्थली है। इस्लाम के चार धर्म–स्कन्धों में 'हज्ज़' या 'काबा' यात्रा भी एक है। हज तीर्थयात्रा के दौरान भी मुस्लिमों को तवाफ़ नामक महत्त्वपूर्ण पांथिक परंपरा पूरी करने का निर्देश है, जिसमें काबे की सात परिक्रमाएँ की जाती हैं। लेकिन विचित्र बात यह है कि पुराणों में भी शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में मक्का के महादेव का नाम आता है। इस बात के अनेक ऐतिहासिक साक्ष्य हैं कि 'काबा' अरब का प्राचीन मन्दिर है जो मक्का शहर में है। इसके वास्तविक प्रमाण के रूप में रूप में विक्रम की प्रथम शताब्दी के आरम्भ में रोमक इतिहास लेखक 'द्यौद्रस् सलस्' लिखता है -
यहाँ इस देश में एक मन्दिर है, जो अरबों का अत्यन्त पूजनीय है। महात्मा मुहम्मद के जन्म से प्रायः 600 वर्ष पूर्व ही इस मन्दिर की इतनी ख्याति थी कि 'सिरिया, अराक' आदि प्रदेशों से सहस्रों यात्री प्रतिवर्ष दर्शनार्थ आया करते थे। पुराणों में भी शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में मक्का के महादेव का नाम आता है। ह. ज्रु ल्–अस्वद् (=कृष्ण पाषाण) इन सब विचारों का केन्द्र प्रतीत होता है। यह काबा की दीवार में लगा हुआ है। आज भी उस पर चुम्बन देना प्रत्येक 'हाज़ी' (मक्कायात्री) का कर्तव्य है। यद्यपि क़ुरान में इसका विधान नहीं, किन्तु पुराण के समान माननीय 'हदीस' ग्रन्थों में उसे भूमक नर भगवान का दाहिना हाथ कहा गया है। यही मक्केश्वरनाथ है जो काबा की सभी मूर्तियों के तोड़े जाने पर भी स्वयं ज्यों का त्यों विद्यमान है। इतना ही नहीं, बल्कि इनका जादू मुसलमानों पर भी चले बिना नहीं रहा और वह पत्थर को बोसा यानी अँकवार देना अपना धार्मिक कर्तव्य समझते हैं, यद्यपि अन्य स्थानों पर मूर्तिपूजा के घोर विरोधी हैं।
गोवर्धन पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी
स्वामी जी के अनुसार मक्केशश्वर शिवलिंग के अलावा भी बहुत से ऐसे शिवालय रहे हैं जिनको इस्लाम के उदय के बाद कब्जा कर मस्जिद बना दिया गया। इनमे भारत की प्रमुख जामा मस्जिद भी शामिल है। जामा मस्जिद को वह जम्बेश्वर महादेव शिवलिंग प्रमाणित करते हैं। स्वामी जी का कहना है कि धरती पर सनातन उपासना पद्धति इस्लाम या ईसाइयत के जन्म से बहुत पहले से विद्यमान रही है। जिन कबीलों से इस्लाम जैसे पंथ निकले उनके लिए जो पद्धति और उसे समय के लोगो के आस्था के केंद्र या ऐसी जगहें दिखीं वही वे काबिज होकर अपना प्रचार करने लगे। मक्केश्वर महादेव का उल्लेख तो हमारे कई पुराणों में भी प्रमुखता से किया गया है। इसमें कोई संशय ही नहीं कि जिसे इस्लाम का सबसे पवित्र स्थल बताया जा रहा है वह सनातन संस्कृति में ज्योतिर्लिंग रहा है लेकिन आजकल उनके अधिपत्य में है।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती
द्वारिका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती भी कई बार इस बात को कह चुके हैं कि मक्का में मक्केश्वर महादेव मंदिर है। मुहम्मद साहब भी शैव थे, इसलिए वे मक्केश्वर महादेव को मानते थे। एक बार वहां लोगों ने बुद्ध की मूर्ति लगा थी, वह इसके बहुत विरोधी थें। अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग को 'लात' कहा जाता था। मक्का के कावा में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है, भविष्य पुराण में उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ है। इस्लाम के प्रसार से पहले इजराइल और अन्य यहूदियों द्वारा इसकी पूजा किए जाने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। इराक और सीरिया में सुबी नाम से एक जाति थी यही साबिईन है। इन साबिईन को अरब के लोग बहुदेववादी मानते थे। कहते हैं कि साबिईन अर्थात नूह की कौम। माना जाता है कि भारतीय मूल के लोग बहुत बड़ी संख्या में यमन में आबाद थे, जहां आज भी श्याम और हिन्द नामक किले मौजूद हैं। विद्वानों के अनुसार सऊदी अरब के मक्का में जो काबा है, वहां कभी प्राचीनकाल में 'मुक्तेश्वर' नामक एक शिवलिंग था जिसे बाद में 'मक्केश्वर' कहा जाने लगा।
पैगम्बर मुहम्मद एक विध्वंसक गिरोह का नेतृत्व करते थे । मुहम्मद ने मदीना से मक्का के शांतिप्रिय मुर्तिपूजकों पर हमला किया और जबरजस्त नरसंंहार किया। मक्का का मदीना से अलग अस्तित्व था किन्तु मुहम्मद साहब के हमले के बाद मक्का मदीना को एक साथ जोड़कर देखा जाने लगा। मुहम्मद की टोली ने मक्का में स्थापित 360 में से 359 मूर्तियाँ नष्ट कर दी और सिर्फ काला पत्थर सुरक्षित रखा जिसको आज भी मुस्लिमों द्वारा पूजा जाता है। उसके अलावा अल-उज्जा, अल-लात और मनात नाम की तीन देवियों के मंदिरों को नष्ट करने का आदेश भी महम्मद ने दिया और आज उन मंदिरों का नामो निशान नहीं है (हिशम इब्न अल-कलबी, 25-26)। इतिहास में यह किसी हिन्दू मंदिर पर सबसे पहला इस्लामिक आतंकवादी हमला था।उस काले पत्थर की तरफ आज भी मुस्लिम श्रद्धालु अपना शीश जुकाते है। इतना ही नहीं तो पूजा की हिन्दू पद्धति के अनुरूप बिना सिला हुआ वस्त्र या धोती पहनते हैं। उसी तरह हज के दौरान भी बिना सिला हुआ सफेद सूती कपड़ा ही पहना जाता है। जिस प्रकार हिंदुओं की मान्यता होती है कि गंगा का पानी शुद्ध होता है ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी आबे जम-जम को पाक मानते हैं। जिस तरह हिंदू गंगा स्नान के बाद इसके पानी को भरकर अपने घर लाते हैं ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी मक्का के आबे जम-जम का पानी भर कर अपने घर ले जाते हैं। ये भी एक समानता है कि गंगा को मुस्लिम भी पाक मानते हैं और इसकी अराधना किसी न किसी रूप में जरूर करते हैं।
वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास
प्रख्यात प्रसिद्ध इतिहासकार स्व0 पी.एन.ओक ने अपनी पुस्तक ‘वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास’ में समझाया है कि मक्का और उस इलाके में इस्लाम के आने से पहले से मूर्ति पूजा होती थी। हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर थे, गहन रिसर्च के बाद उन्होंने यह भी दावा किया कि काबा में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग है। पैगंबर मोहम्मद ने हमला कर मक्का की मूर्तियां तोड़ी थीं। यूनान और भारत में बहुतायत में मूर्ति पूजा की जाती रही है, पूर्व में इन दोनों ही देशों की सभ्यताओं का दूरस्थ इलाकों पर प्रभाव था। ऐसे में दोनों ही इलाकों के कुछ विद्वान काबा में मूर्ति पूजा होने का तर्क देते हैं। हज करने वाले लोग काबा के पूर्वी कोने पर जड़े हुए एक काले पत्थर के दर्शन को पवित्र मानते हैं जो कि हिन्दूओं का पवित्र शिवलिंग है। वास्तव में इस्लाम से पहले मिडिल-ईस्ट में पीगन जनजाति रहती थी और वह हिंदू रीति-रिवाज को ही मानती थी। पी एन ओक ने सिद्ध कर दिया है मक्केश्वर शिवलिंग ही हजे अस्वद है। मुसलमानों के सबसे बड़ा तीर्थ मक्का मूलतः मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहां है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही पूजते और चूमते हैं।
जमजम है पवित्र गंगा
एक प्रसिद्ध मान्यता के अनुसार काबा में भी “पवित्र गंगा” है जो महापंडित रावण के कारण वहां प्रवाहित हुईं थीं। रावण शिव भक्त था वह शिव के साथ गंगा और चन्द्रमा के माहात्म्य को समझता था और यह जानता था कि कि कभी शिव को गंगा से अलग नही किया जा सकता। जहाँ भी शिव होंगे, पवित्र गंगा की अवधारणा निश्चित ही मौजूद होती है। काबा के पास भी एक पवित्र झरना पाया जाता है, इसका पानी भी पवित्र माना जाता है। इस्लामिक काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे ज़म-ज़म) ही माना जाता था।
इस बारे में वेंकटेश पण्डित के ग्रन्थ 'रामावतारचरित' के युद्धकांड प्रकरण में उपलब्ध एक बहुत अद्भुत प्रसंग 'मक्केश्वर लिंग' से संबंधित हैं, जो आम तौर पर अन्य रामायणों में नहीं मिलता है। वह प्रसंग काफी दिलचस्प है। शिव रावण द्वारा याचना करने पर उसे युद्ध में विजयी होने के लिए एक लिंग (मक्केश्वर महादेव) दे देते हैं और कहते हैं कि जा, यह तेरी रक्षा करेगा, मगर ले जाते समय इसे मार्ग में कहीं पर भी धरती पर नहीं रखना। रावण आकाशमार्ग से लंका की ओर जाता है पर रास्ते में कुछ ऐसे हालत बनते हैं की रावण को शिवलिंग धरती पर रखना पड़ता है। वह दुबारा शिवलिंग को उठाने की कोशिश करता है पर खूब प्रयत्न करने पर भी लिंग उस स्थान से हिलता नहीं। वेंकतेश पण्डित के अनुसर यह स्थान वर्तमान में सऊदी अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है।
सऊदी अरब के पास ही यमन नामक राज्य भी है जहाँ श्री कृष्ण ने कालयवन नामक राक्षस का विनाश किया था। जिसका जिक्र श्रीमदभगवत पुराण में भी आता है।
लेखक भारत संस्कृति न्यास के संस्थापक एवं वरिष्ठ पत्रकार है
एक टिप्पणी भेजें