शिव के क्रोध से दो देवों के प्रगट होने का वर्णन पुराणों में मिलता है | एक प्रसंग तो है दक्ष यज्ञ का जिसमें शिव के अपमान से आहत होकर दक्ष पुत्री व शिव पत्नी सती ने योगाग्नि में स्वयं को दग्ध कर दिया | इस घटना के बाद शिव के क्रोध से उत्पन्न वीरभद्र ने दक्ष यज्ञ विध्वंश किया |
दूसरा प्रसंग भी लगभग ऐसा ही है | एक बार ब्रह्मा और विष्णू में श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ | इस विवाद को सुलझाने के लिए सभी देवता शंकर जी के पास पहुंचे | किन्तु वहां परिस्थिति ऐसी बनी कि सभी देवताओं और ऋषियों ने शंकर जी को ही सर्वश्रेष्ठ मान लिया | पंचमुखी ब्रह्मा जी को यह अत्यंत बुरा लगा तथा उन्होंने शंकर जी की ही आलोचना कर दी | उस समय रुष्ट शिव के क्रोध से काल भैरव उत्पन्न हुए तथा उन्होंने ब्रह्मा जी के उस मुख को ही काट दिया, जिससे शिवनिन्दा हुई थी | उसके बाद से ही ब्रह्मा जी के चार मुख रह गए | इसके आगे की कथा भी अत्यंत विलक्षण और अद्भुत है |
शिवजी ने कालभैरव से कहा कि ब्रह्मा का मुख काटने के कारण तुम्हें ब्रह्म ह्त्या का पाप लगा है, उससे तुम्हें मुक्त होना चाहिए | प्रायश्चित स्वरुप तुम एक सामान्य व्यक्ति की तरह तीनों लोकों का भ्रमण करो | ब्रह्मा का यह कटा हुआ सर तब तक तुम्हारे हाथ से चिपका रहेगा | जब यह सर तुम्हारे हाथ से स्वतः अलग हो जाए, तब ही स्वयं को पाप मुक्त समझना |
शिवजी की आज्ञा मानकर भैरव ने तीनों लोकों की यात्रा प्रारंभ कर दी | यात्रा करते करते जब वे वाबा विश्वनाथ की नगरी काशी पहुंचे, तब गंगा के तट पर पहुंचते ही भैरव बाबा के हाथ से ब्रह्माजी का शीश अलग हो गया | पापमुक्त भैरव के सम्मुख शिव प्रगट हुए, तथा उन्हें आशीर्वाद देकर काशी का कोतवाल नियुक्त किया और कहा कि युगों तक तुम्हारे इसी रूप की पूजा होगी | तब से ही शिव प्रेरणा से भैरव काशी वासी हो गए | गंगा तट पर ही उनका मंदिर बना | यह मान्यता है कि काल भैरव के दर्शन के बिना काशी विश्वनाथ के दर्शन अधूरे हैं | शिव के क्रोध से उत्पन्न काल भैरव को शिव का ही अंश माना जाता है |
मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को काल भैरव का प्राकट्य हुआ था, अतः इस तिथि को काल भैरव अष्टमी माना जाता है तथा इस दिन विधि विधान से काल भैरव की आराधना करने से सभी मनोबांछित फल प्राप्त होते हैं | तंत्र मन्त्र की साधना के लिए भी यह दिन उपयुक्त माना जाता है | इस दिन की काल भैरव की पूजा जीवन में आने वाली सभी वाधाओं को दूर करने वाली तथा हर भय को नष्ट करने वाली होती है | भूत वाधा व ग्रह शान्ति के लिए भी भैरव साधना की जाती है | बैसे भी काल भैरव, महाकाली तथा हनुमान जी को कलियुग में जागृत देवता माना जाता है |
व्रत पद्धति –
सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर मंदिर में जाकर या घर पर ही कालभैरव के चित्र के सम्मुख व्रत का संकल्प लें व पूजन अर्चन करें | उपवास रखकर मन्त्रों का जाप करें | रात के समय धुप दीप उड़द काले तिल नैवेद्य आदि से पूजन करते हुए आरती करें | मान्यता है कि काल भैरव के वाहन काले कुत्ते को पकवान खिलाने से भी वे प्रसन्न होते है |
भैरव मंत्र –
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्, भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि !
काल भैरव की कथा देशाटन के महत्व को दर्शाने वाली है | शायद इसीलिए हमारे यहाँ हर आम और ख़ास अपने जीवन में चार धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठों की यात्रा कर स्वयं को धन्य मानता है | यह तीर्थाटन महज मनोविनोद के लिए होने वाली यात्रा नहीं होती, वरन यात्राओं का उद्देश्य आत्मोन्नति होता है | अपने घर परिवार से प्रथक होकर समाज के साथ एकाकार होने की साधना का नाम है देशाटन या तीर्थाटन | अपने सांसारिक जीवन में किये गए पापों के प्रायश्चित के लिए, ह्रदय में पश्चाताप लिए जब कोई व्यक्ति समाज के बीच जाता है, स्वयं को समाज के लिए अर्पित करता है, तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं तथा वह देवतुल्य पूज्य हो जाता है | संभवतः यही इस कथानक का अन्तर्निहित भाव है |
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