आतंकवाद की रामबाण दवा – ऑपरेशन थंडरबोल्ट – स्व. अनिल माधव दवे
0
टिप्पणियाँ
कल हमारे एक वीर सपूत को मारकर उसका शीश काटकर कायर पाकिस्तानी ले गए | यह तो हुई पडौसी दुश्मन की नापाक दुश्मनी, जिससे और कोई उम्मीद की भी नहीं जा सकती | किन्तु ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के भीतर भी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आतंक और आतंकियों का समर्थन करते लोग दिखाई देते हैं | सवाल यह उठता है कि कहीं आतंकियों के ये पैरोकार उन आतंकी घटनाओं के कर्ताधर्ताओं को पनाह तो नहीं देते | और सबसे ज्यादा दुखद स्थिति यह है कि पिछली सरकारों की तरह ही मौजूदा सरकार भी इन समस्याओं को हल करने के स्थान पर इन्हें पानी का बुलबुला समझते हुए, इनके स्वतः समाप्त हो जाने का इंतज़ार करती दिखाई दे रही है | संभव है कि विपक्ष की आक्रामकता के कारण यह लाचारगी हो | जागृत समाज ही विपक्ष की बोलती बंद और सरकार को सही निर्णय लेने के लिए विवश कर सकता है | यही इस आलेख का मूल उद्देश्य भी है |
ऐसे में आज सरकार में बैठी पार्टी के एक शीर्ष विचारक के पूर्व के विचार पढ़ने योग्य हैं | 11 सितम्बर 2011 को अपनी इजराईल यात्रा के बाद स्व. अनिल माधव दवे जी ने यह आलेख लिखा था, जो आज के परिप्रेक्ष में कहीं अधिक प्रासंगिक है |
भारत के हर कोने में आये दिन आतंकी हमले होते हैं | सरकार “फिर नहीं होने देंगे” और असहाय समाज “हम क्या कर सकते हैं” के भाव से कुछ ही घंटों में सब कुछ भूलकर सामान्य जीवन बिताने लगता है | सैकड़ों की संख्या में सामान्य नागरिक, पुलिस और सैनिक मारे जाते हैं | इसका उत्तर क्या है ? उसी की खोज में, मैं माउंट हर्जल, येरुसलम में योनातन नेतन्याहू की समाधि पर आ गया हूँ | यह वही युवा है, जिसने आतंकवाद से निपटने की एक मुहिम “ऑपरेशन थंडरबोल्ट” में कमांडो टुकड़ी का नेतृत्व किया और वीरगति को प्राप्त हुआ | इजराईल के वर्तमान प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का वह बड़ा भाई था |
आतंकवाद को देखने की द्रष्टि क्या हो ? उससे निबटने की तैयारी कैसी हो ? देश के नीति निर्धारकों, राजनेता, सुरक्षा बालों व समाज की भूमिका कैसी हो ? इन सब पर यह घटना प्रकाश डालती है |
27 जून 1976 को फ्रांस एयरवेज की उड़ान संख्या 139, जो तेल अबीब से एथेंस होते हुए पैरिस जा रही थी, उसमें 248 रात्री और 12 चालक दल एवं सहकर्मियों के साथ कुल 268 लोग थे | एथेंस से उड़ान भरते ही चार आतंकवादियों ने जहाज पर कब्जा कर लिया | उनमें 2 फिलिस्तीनी और 2 जर्मन क्रांतिकारी सेल के सदस्य थे | आतंकवादियों ने पहले बिमान को लीबिया में 7 घन्टे के लिए रोका व एक अत्यन्त बीमार गर्भवती महिला को उतारकर युगांडा के शहर एन्टीबी आ गए |
इदी अमीन उस समय युगांडा के राष्ट्रपति थे | उन्होंने आतंकवादियों को संरक्षण दिया और दुनिया के सामने यह चेहरा बनाए रखा कि मैं यात्रियों की भलाई चाहता हूँ | एन्टीबी में कमसेकम चार और आतंकवादी उस टोली में शामिल हो गए | नए शस्त्रों व संसाधनों के साथ उन्होंने बंधकों पर नजर रखने के लिए अपने आप को समूहों और पालियों में बाँट लिया | एन्टीबी में उन्होंने यहूदियों को बाक़ी बंधकों से अलग कर दिया | 106 यहूदियों को छोड़कर उन्होंने बाक़ी को रिहा करना शुरू कर दिया | चालक दल ने जब तक सभी यात्री रिहा नहीं हो जाते व फ्रांस एयरवेज के बिमान को सकुशल ले जाने की अनुमति नहीं मिल जाती, तब तक बंधकों के साथ ही रहना स्वीकार किया |
यहीं से शुरू हुआ ऑपरेशन थंडरबोल्ट | बिमान अपहरण की सूचना के सतह ही इजराईल के विभिन्न सूचना तंत्रों ने कार्य प्रारम्भ कर दिया | एक शाखा पूरे घटनाक्रम पर सूक्ष्म निगाह रखने लगी | खुफिया तंत्रों ने बारीक से बारीक हर वह जानकारी, जो “आवश्यक” होने की संभावना लिए थी, उसे इकट्ठा करना शुरू कर दिया | उदाहरण के लिए एन्टीबी एयरपोर्ट की बिल्डिंग जिस ठेकेदार व कम्पनी ने बनाई थी, उन्हें गुप्त केंद्र पर बुलाकर पूरे भवन का मॉडल बनाया गया और गोपनीयता बनी रहे, उस उद्देश्य से उन्हें मेहमान बनाकर, ऑपरेशन पूरा होने तक अपने पास ही रखा | ईदी अमीन को भी, जितनी जानकारी एन्टीबी व आसपास के भौगोलिक क्षेत्र की नहीं होगी, उससे ज्यादा करीब करीब पूरी सूचना, युगांडा से 4000 किलोमीटर दूर, इजराईल के विभिन्न केन्द्रों में जमा होने लगी | भवन में कुल कितने खिड़की, दरवाजे, सीढियां हैं, उसमें शौचालय कितने हैं, जैसी बारीक जानकारी भी उन्होंने अभियान प्रारम्भ करने से पहले इकठ्ठा कर ली |
एक शाखा राजनीतिक प्रयास करती रही | आतंकवादियों से चर्चा के दौर चलते रहे | मांगें कम ज्यादा होती रहीं | दूसरी तरफ सैन्य तैयारी चलती रही | इजराईल की विभिन्न गुप्तचर व सैन्य इकाईयां, जैसे – मोसाद, शीन बैंक (आतंरिक सुरक्षा), अमन (मिलिट्री इंटेलीजेंस), इजराईल स्पेशल सैल, ऑपरेशन ओपेरा और एस्पन मूविंग मैप जैसी विभिन्न शाखाओं ने अपना काम मुस्तैदी से किया | इनमें गजब का समन्वय व सूचनाओं का आदान प्रदान हो रहा था | कोई एक दूसरे से बड़ा नहीं दिखना चाहता था | सबका एक ही लक्ष्य था, बंधकों को छुडाना और आतंकवादियों को परास्त करना |
एन्टीबी पर हमला कर यात्रियों को छुडाने के लिए लगभग 100 सैनिकों का दल बनाया गया | एन्टीबी में किये जाने वाले सारे मैदानी ऑपरेशन का नेतृत्व ब्रिगेडियर जनरल शामरोन को सोंपा गया | 29 कमांडो, जिनका कार्य आतंकवादियों को मारकर, बंधकों को बिल्डिंग से निकालकर बिमान तक लाना था, उसका नेतृत्व लेफ्टिनेंट कर्नल योनातन नेतन्याहू कर रहे थे | चिकित्सा, ईंधन, युगांडा सुरक्षा दल, एटीसी व वहां खड़े रशियन लड़ाकू बिमान मिग-17 को बम से उड़ाने की जबाबदारी विभिन्न समूहों को सोंपी गयी | एक दल ने तो वहां पर लगे रशियन राडार व मिग बिमानों से विभिन्न पुर्जे निकालने का कार्य किया | जब चारों तरफ से गोलियां चल रही थीं, तब यह एक दल, पाने, पेचिस व स्क्रू ड्राईवर जैसे साधनों से काम कर रहा था |
4 जुलाई 1976 को भारी भरकम हरक्यूलिस सी-130 बिमानों से समुद्र से केवल 100 फिट ऊपर उड़ते हुए, इजराईल से एन्टीबी की यात्रा शरू की | मिस्र, सूडान व सऊदी अरब की हवाई निगरानी तंत्र से बचने के लिए, न तो उन्होंने इजराईल एटीसी से बात की, ना ही किसी प्रकार का संवाद, बिमानों ने आपस में किया | सब आपस में लक्ष्य तक, संवाद विहीन अवस्था में उड़ते रहे | पहला हरक्यूलिस बिमान रात्री 11 बजे एन्टीबी एयरपोर्ट पर उतरा | बिमानों में शस्त्रों के अतिरिक्त, ईदी अमीन जैसा व्यक्ति और उसके द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली मर्सिडीज जैसी कार भी थी | युगांडा सैनिकों को भ्रम में डालने के लिए उसका प्रयोग किया गया |
कुल 90 मिनिट यह ऑपरेशन चला | सारे आतंकवादी मारे गए | 4 बंधक क्रास फायरिंग में आ जाने के कारण मरे | पूरे ऑपरेशन में केवल एक ही सैनिक ने वीरगति पाई और वह थे, लेफ्टिनेंट कर्नल नेतन्याहू | 4 कमांडो घायल भी हुए |
सभी बंधक, चालक दल के सदस्य व सभी सैनिक सफलता पूर्वक इजराईल वापस आ गए | केवल एक बुजुर्ग महिला, जो होस्पिटिल में भर्ती थी, युगांडा में रह गई, जिसे बाद में क्रूरता पूर्वक युगांडा के सैनिकों ने मार डाला | इस घटनाक्रम से आतंकवाद से निबटने के सूत्र ध्यान में आते हैं |
राजनैतिक इच्छाशक्ति, प्रभावी गुप्तचर तंत्र, अभियान में सहभागी हर व्यक्ति की अपने काम के प्रति निष्ठा व उसकी पूर्ण स्पष्ट कल्पना के साथ हरेक ने योग्यता के चरम पर जाकर अभियान को क्रियान्वित किया | इस योजना में तकनीक व तंत्र का अद्भुत मिलाप था | कार्य पूरा होने के बाद भी, कई जानकारियाँ सुरक्षा की द्रष्टि से छुपा लीं गईं |
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर गिरने के दिन, आज 11 सितम्बर को, मैं योनातन नेतन्याहू की समाधि पर हाथों में फूल लिए खड़ा हूँ, इस विश्वास के साथ कि मेरा भारत भी आतंकवाद से निबटने में सफल होगा और आमजन, सुख व शान्ति का जीवन बिता सकेगा |
हे वीर तुम्हें कोटि कोटि प्रणाम |
एक टिप्पणी भेजें