हममें से अधिकाँश ने सन सेंतालीस में हुए विभाजन की विभीषिका नहीं देखी| किन्तु इंदिरा जी की ह्त्या के बाद हुए दिल दहला देने वाले सिक्ख विरोधी दंगे देखे हैं ! हममें से कईयों ने लुटते हुए घर और जलते हुए इंसान देखे हैं, साथ ही लूटमार व आगजनी कर खुश होते इंसान रूपी हैवान भी देखे हैं ! अधिकाँश स्थानों पर पुलिस का नाकारापन तो कई जगह पर उनके द्वारा दिया जा रहा दंगाईयों को खुला समर्थन, आज भी हममें से कईयों को याद होगा | मेरे गृहनगर का एक डीएसपी तो दंगाईयों को उकसा रहा था कि जलते हुए घरों और गुरुद्वारे की आग बुझाने आये फायर ब्रिगेड के पानी को निकाल दो और उसकी जगह पेट्रोल पम्प से उसमें डीजल पेट्रोल भर दो और छिड़क दो जलते हुए गुरूद्वारे पर !
हिंसा प्रतिहिंसा को जन्म देती है जो प्रारम्भ में हुई हिंसा से कहीं अधिक घातक और अमानवीय होती है | गोधरा का उदाहरण ही ले लें, आधा सैकड़ा कारसेवकों की नृशंस हत्या की प्रतिक्रिया कितनी भयानक हुई, कि उसके घाव आज भी रिसते हैं | ये तो वे उदाहरण हैं, जो विभाजन के समय हुए नरसंहार की तुलना में बहुत कम हैं | इसलिए जब कश्मीर के जाहिल और अहमक मुफ्ती नासिर उल इस्लाम ने यह बयान दिया कि एक बार फिर विभाजन होना चाहिए, तो मुझे दुःख भी हुआ और हैरत भी | दुःख इस बात का तो हुआ ही कि एक बार फिर भारत माता के टुकडे करने के बात की जा रही है, बल्कि इस बात पर भी हुआ कि इस इक्कीसवीं सदी में अठारहवीं सदी में जीने वाले लोग विद्यमान हैं | और हैरत इस बात की कि किसी भी समझदार मुसलमान ने इस बयान की आलोचना नहीं की, मजम्मत नहीं की | हिन्दू आलोचना करते हैं तो वह तो स्वाभाविक ही है किन्तु आम मुसलमानों का इस अहम मुद्दे पर मौन समझ से परे है | अतः इस वक्तव्य में अब मैं केवल मुसलमान भाईयों को ही संबोधित हूँ |
दोस्तो, किसी पौधे की डाल काटकर उसकी दस कलमें कहीं और लगाई जाएँ तो दस में से आधी ही सरसब्ज होती हैं, पूरी नहीं, हाँ जिस पौधे की डाल कटती है, उसे अवश्य पीड़ा होती है | कश्मीर का वह बेबकूफ मुफ्ती अपने तईं तो कह सकता है, क्योंकि वहां से हिन्दू पूरी तरह पहले ही पलायन कर चुके हैं तथा कश्मीरी लम्बे समय से अलगाव की भाषा बोलते ही आ रहे हैं | लेकिन उसने तो पूरे हिन्दुस्तान के मुसलमानों को पैगाम दिया है, कि सत्रह करोड़ पर पाकिस्तान बन गया था, अब एक बार फिर अलग मुल्क माँगने का समय आ गया है | अगर उसके इस बयान पर भी आप लोग चुप हैं तो क्या इसका मतलब यह माना जाए कि इसमें आपकी सहमति है ? मुसलमान भाईयो, विस्थापन किसी को नहीं रुचता | आप क्या समझते हैं कि इस बार अगर कोई विभाजन हुआ तो देश के किसी भी हिस्से में आज की तरह हिन्दू मुसलमान साथ साथ रह सकेंगे ? आज ना तो कोई गांधी जैसा महात्मा राजनेता है और ना ही समाज में उस समय जैसी सहिष्णुता | आबादी का यह पूरा पूरा परिवर्तन होगा, जो न हिन्दू हित में होगा, न ही मुसलमानों के हित में | नया मुल्क अब्बल तो बनेगा नहीं, अगर बना भी तो शेष भारत की तुलना में बहुत छोटा होगा | उस हिस्से में पहले से ही हिन्दू कैराना और कश्मीर की तरह बाहर हो चुके होंगे, बचेखुचे कम ही होंगे | मुसलमान देश के हर कौने में बसे हैं, उन्हें कितनी तकलीफ होगी, इसकी थोड़ी कल्पना तो करो ? विभाजन के समय पाकिस्तान से आई एक ट्रेन में लाशें देखकर हुई प्रतिहिंसा में यहाँ से जाने वाली ट्रेनें भी लाशों की सवारी लाद कर ही गईं थीं | इस हिंसा प्रतिहिंसा से किसी को कोई फायदा नहीं है | आपके और हिन्दुओं के पूर्वज एक ही थे | आपका और हम हिन्दुओं का डीएनए एक ही है | राजनीति इस बात पर कभी जोर नहीं देगी | किन्तु सामाजिक चेतना जागृत करना आवश्यक है | आप जागिये और अपने अन्य समाज बंधुओं को भी जगाईये |
इस दौर में यह संभव नहीं कि आप भारत के सभी हिन्दुओं को धर्मान्तरित कर मुसलमान बना सकें या उनका कत्ले आम कर सकें | ना ही हिन्दू सभी मुसलमानों को हिन्द महासागर में धकेल सकते | अलगाव की बातें चाहे जितनी होती रहें, रहना हमें साथ साथ ही है | तो क्यों न आपसी भाईचारे के साथ रहें ? इसके लिए सबसे पहली जरूरत है कि आप कश्मीर के उस अहमक मुफ्ती को मेरी तरह ही अहमक मानें और कहें कि भारत का मुसलमान अब विभाजन कतई नहीं चाहता | वह भारतीय है, हिन्दुस्तानी है, इंडियन है | और जो लोग विभाजन की बातें कर रहे हैं वे देशद्रोही हैं, उनके खिलाफ कार्यवाही हो, उनकी ठीक जगह केवल जेल है | आप समझ लीजिये कि जिस दिन भारत का आम मुसलमान गद्दारों को गद्दार मानने और कहने लगेगा, उस दिन ही देश में तरक्की का सबेरा होगा | अन्यथा तब तक तो पारस्परिक अविश्वास की खाई चौड़ी ही होती रहेगी, जो किसी के हित में नहीं है |
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