कतई नहीं हटना चाहिए अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से जिन्ना की तस्वीर |



अनेक पढ़े लिखे मुसलमान सोशल मीडिया पर लफ्फाजी करते नजर आते हैं – हमारे पुरखों ने हिंदुस्तान चुना, अब हमें संदेह की नजर से क्यों देखा जाता है | 

सच क्या है ? 

मुसलमान भाईयो – बेशक आपके पुरखों ने हिंदुस्तान चुना लेकिन – जब भारत विभाजन के लिए वोटिंग हुई तब उन्होंने किसके पक्ष में वोट किया था ? दुर्भाग्य यह है कि जिन हिन्दुस्तानी मुसलमानों ने पाकिस्तान बनाने के पक्ष में वोट किया, वे पाकिस्तान नहीं गए, और जो हिन्दू पाकिस्तान नहीं चाहते थे, वे मार पीट कर पाकिस्तान से निकाल दिए गए | 

और अब जिन्ना के प्रति दीवानेपन की हद तक आपका प्यार और अपनापन जताना क्या कहता है ? हिन्दू जिन्ना को खलनायक मानते हैं क्योंकि – 

उसने साफ़ लफ्जों में कहा कि हम हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकते | 

आज की तरह, उस समय भी मस्जिदों में तकरीरें हो रही थीं - " इस्लाम खतरे में है " 

1945 के प्रांतीय चुनावों में मुस्लिम लीग ने मात्र एक प्रचार किया - यही समय है अपनी ताकत दिखाने का , अगर इन चुनावों में हम चूक गए तो हम सदा के लिए बर्बाद हो जाएँगे , यही समय है पाकिस्तान बनाने का , मुस्लिम लीग को जिताएँ और इस्लाम को जीवित रखें , 

पंजाब , संयुक्त प्रांत , बंगाल में मुसलमानों ने पोस्टर चिपकाए 

" दीन बनाम दुनिया "
" जमीर बनाम जागीर "
" हककोशी बनाम सफेदपोशी " 

जाहिर है पहला शब्द मुसलमानों के लिए और दूसरा भारत के लिए और तीसरा कांग्रेस के लिए था । 

इन चुनावों की हार जीत पाकिस्तान बनने या न बनने का श्वेतपत्र था , इसीलिए यह चुनाव ऐतिहासिक है , 

मजा यह कि इसके बावजूद आज जिसे पाकिस्तान कहा जाता है, वहां के पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में मुस्लिम लीग एक भी सीट नहीं पा सकी थी  | 

लेकिन इसके विपरीत आज के भारत में पाकिस्तान और मुस्लिम लीग के पक्ष में मतदान हुआ और बंगाल में मुसलमानों के लिए 119 आरक्षित सीटो पर मुस्लिम लीग ने 114 सीट जीती, सयुंक्त प्रांत में 66 आरक्षित सीटो पर मुस्लिम लीग ने 54 सीटो पर जीत दर्ज की , मद्रास में 29आरक्षित सीटो पर मुस्लिम लीग ने सभी 29 सीट जीत लीं । शायद यही भारत की मूल समस्या है कि जो पाकिस्तान चाहते थे, वे भारत में रह गए और जो नहीं चाहते थे, वे पाकिस्तान में बलि चढ़ गए |

काँग्रेस उस समय हिन्दू पार्टी घोषित थी और उसे हिन्दुओं के 91 प्रतिशत वोट मिले भी | मुस्लिम लीग ने चुनाव केवल और केवल अलग देश पाकिस्तान के आधार पर लड़ा और मद्रास स्थित मुसलमानों ने भी पाकिस्तान पर मोहर लगा दी, यूपी बिहार तो दूर की बात है | वहां कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया | 

जिन्ना जानता था कि मुसलमान उसके पीछे खड़े हैं जो उसके एक इशारे पे रक्त की नदियां भी बहा सकते हैं, अतः उसने डायरेक्ट एक्शन का आव्हान किया | इस सीधी कार्रवाई का सीधा सादा मतलब था – काट दो काफिरों को | लूट लो उनकी औरतें | 

फिर क्या था मुसलमानों की हिंसक भीड़ हिन्दुओ पर टूट पड़ी , लाखो की संख्या में लोग मारे गए , 

और आज जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना की तस्वीर सीने से चिपकाए घूमते मुसलमान दिखते हैं, तो यह मानने का पर्याप्त आधार है कि वे आज भी जिन्ना की मानसिकता से ही प्यार करते हैं | 

ठीक बैसे ही, जैसे पाकिस्तान के हक़ में वोट देने वाले उनके पुरखे करते थे | आज मुसलमान काँग्रेस का वोटर है क्योंकि वे जानते हैं कि कांग्रेस का नेतृत्व उनके ही अपने वाले के हाथ में है | राहुल के दादा भी तो आखिर मुसलमान ही थे ना ? 

नरेंद्र मोदी कितने दिन का मेहमान है ? आज नहीं तो कल उसे तो हटना ही है | खुद हिन्दुत्ववादी उसे हटाने के पीछे पड़े हैं | सेक्यूलर तो उसे फूटी आँखों नहीं देख पा रहे | बस 2019 का इंतज़ार है, फिर उसके बाद तो क्या पाकिस्तान और क्या हिन्दुस्तान. दोनों का नेतृत्व मुस्लिम के हाथ में होगा | वोट की दम पर लिया था पाकिस्तान, वोट से ही जीतेंगे हिन्दुस्तान | तो चंद दिनों के लिए जिन्ना की तस्वीर हटाई ही क्यों जाए ? आखिर सत्तर साल से भी तो लगी रही | अब तक क्यों नहीं हटाई गई ? 

लगी रहने दो ! 

क्या कभी बदलेगी यह मानसिकता ? 

क्या सेक्यूलर लोग उन्हें कभी बदलने देंगे ? 

अब देखिये ना कि एनडीटीवी के रवीश कुमार पांडे जैसे हिन्दू पत्रकार कहते हैं कि भगवा गमछा गले में डालकर मुसलमानों को डराना बंद होना चाहिए | 

तो रवीश कुमार जी से एक निवेदन – हे महाप्रभु अपनी पहचान छुपाकर खुद भगवा गमछा पहन के मुसलमानों की बस्ती में जाइए, और उन्हें धमका के वापस आ जाइये ...... 

अगर वो आपकी धमकी से डर के भाग गये तो आप सही ......
अगर उन्होंने आपका हाँथ पैर तोड़ दिया तो ?????? 

तय है कि वे तो नहीं बदलेंगे, किन्तु क्या हिन्दू भी सोते ही रहेंगे ? चुपचाप इंतजार करेंगे कि कब एक बार फिर कोई जिन्ना डायरेक्ट एक्शन का कॉल दे और उन्हें इस असार संसार से मुक्ति मिले ? ये दुनिया फानी है, आनी और जानी है | 

रवीश कुमार जी तो कहते भी हैं – क्या फर्क पड़ता है, अगर सारे हिन्दू मुसलमान बन भी जाएँ तो ? 

क्या सचमुच कोई फर्क नहीं पड़ता ? 

काश कोई एक मुसलमान तो आगे आये और कहे कि हटाओ एएमयू से जिन्ना की तस्वीर, ये घिनौना इंसान था, ये हत्यारा हमारा आदर्श नहीं हो सकता |
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