राफेल विमान खरीद – एक तटस्थ विश्लेषक की नजर से - प्रमोद भार्गव



राफेल विमान सौदे को लेकर पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम मोदी से 3 सवाल किए - 

राफेल डील पर कॉन्ट्रेक्ट बदला गया या नहीं? 
राफेल हवाई जहाजों के लिए पैसा कम या ज्यादा किया गया या नहीं? 
तय दाम पर खरीद के लिए सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमिटी से मंजूरी ली गई या नहीं? 

उन्होंने आगे कहा कि राफेल डील के ऊपर रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण कह रही हैं कि ये डील फ्रांस और पेरिस में हुई है और इसकी जानकारी नहीं दी जा सकती है, तो इसका क्या मतलब है, प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार करने वालों के ऊपर मौन साध रहे हैं तो किन्हें बचाने की कोशिश की जा रही है? 

यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि इस सौदे में कोई बिचौलिया होने की रत्ती भर भी संभावना नहीं है, क्योंकि यह विमान सौदा फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और नरेंद्र मोदी के बीच हुई सीधी बातचीत से तय हुआ था | राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से इस बात की प्रशंसा की जानी चाहिए कि देरी और दलाली से अभिशप्त रहे रक्षा सौदों में राजग सरकार के वजूद में आने के बाद से लगातार तेजी दिखाई दी है। अब राहुल जी का यह आरोप कि सौदे में भ्रष्टाचारियों को बचाने की कोशिश हो रही है, अपने आप में हास्यास्पद प्रतीत होता है, क्योंकि जब दो राष्ट्राध्यक्ष सीधे आपस में कोई समझौता कर रहे हैं तो क्या दोनों ने भ्रष्टाचार किया ? और तो कोई बीच में है नहीं | जनता इस आरोप को कितनी गंभीरता से लेगी, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है | 

अब बात सैन्य आवश्यकता और राफेल विमान की विशेषताओं की – 

पाकिस्तान-चीन से अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए एयरफोर्स को कम से कम 42 स्क्वाड्रन की ज़रूरत है | आज की तारीख में वायुसेना के पास 31 स्क्वाड्रन हैं | एक स्क्वाड्रन में 18 लड़ाकू विमान होते हैं | 

दो स्क्वाड्रन में रफाल के 36 लड़ाकू विमान होंगे | यानी लड़ाकू विमानों की कमी तो है लेकिन जो राफेल वायुसेना के बेड़े में शामिल होगा तो भारत को नई ताकत मिलेगी, क्योंकि अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, लीबिया और माली में हुए ऑपरेशंस में इसका इस्तेमाल हो चुका है | 

रक्षा उपकरण खरीद के मामले में संप्रग सरकार ने तो लगभग हथियार डाल दिए थे। रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार के चलते तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी तो इतने मानसिक अवसाद में आ गए थे कि उन्होंने हथियारों की खरीद को टालना ही अपनी उपलब्धि मान लिया था। नतीजतन, हमारी तीनों सेनाएं शस्त्रों की कमी का अभूतपूर्व संकट झेल रही थीं। अब जाकर नरेंद्र मोदी सरकार ने इस गतिरोध को तोड़ा है और लगातार हथियारों व उपकरणों की खरीद का सिलसिला आगे बढ़ रहा है। इसी कड़ी में फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों का यह सौदा है। 

इस सौदे को अंजाम तक पहुंचाने की पहल वायु सैनिकों को संजीवनी देकर उनका आत्मबल मजबूत करने का काम करेगी। फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीधे हुई बातचीत के बाद यह सौदा अंतिम रुप ले पाया है। इस लिहाज से इस सौदे के दो फायदे देखने में आ रहे हैं। एक हम यह भरोसा कर सकते हैं कि ये युद्धक विमान जल्दी से जल्दी हमारी वायुसेना के जहाजी बेड़े में शामिल हो जांएगे। दूसरे,इस खरीद में कहीं भी दलाली की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है, क्योंकि सौदे को दोनों राष्ट्र प्रमुखों ने सीधे संवाद के जरिए अंतिम रूप दिया है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में फ्रांस यात्रा के दौरान फ्रांसीसी कंपनी दासौ से जो 36 राफेल जंगी जहाजों का सौदा किया है, वह अर्से से अधर में लटका था। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और रक्षा मंत्री एके एंटनी की साख ईमानदार जरूर थी, लेकिन ऐसी ईमानदारी का क्या मतलब, जो जरूरी रक्षा हथियारों को खरीदने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाए ? जबकि ईमानदारी तो व्यक्ति को साहसी बनाने का काम करती है। 

राफेल विमानों की विशेषता – 

राफेल हवा से हवा में मार करने वाली दुनिया की सबसे घातक मिसाइल मेटेओर से लैस है | मेटेओर मिसाइल 100 किलोमीटर दूर उड़ रहे फाइटर जेट को मार गिराने में सक्षम है और ये चीन-पाकिस्तान सहित पूरे एशिया में किसी के पास नहीं है | 


इसके अलावा राफेल में हवा से सतह पर मार करने वाली सबसे खतरनाक क्रूज़ मिसाइल स्कैल्प है. जो करीब 560 किलोमीटर दूर तक मार कर सकती है | राफेल हवा से हवा में मार करने वाली खतरनाक माइका मिसाइल से भी लैस है जो 50 किलोमीटर तक के टारगेट को मार सकती है | 

राफेल डील में 50 प्रतिशत ऑफसेट क्लॉज यानि प्रावधान है. यानि इस सौदे की पचास प्रतिशत कीमत को रफाल बनाने वाली कंपनी, दसॉल्ट को भारत में ही रक्षा और एयरो-स्पेस इंडस्ट्री में लगाना होगा | 

इस डील में राफेल लड़ाकू विमान के रखने की जगह से लेकर खराब होने पर होने वाले बदलावों का खर्च भी शामिल कर लिया गया है | माना जा रहा है कि पहला राफेल विमान सितंबर 2019 तक वायुसेना के जंगी बेड़े में शामिल हो जाएगा | राफेल का पहला बेड़ा अंबाला में तैनात किया जाएगा और पश्चिम बंगाल के हाशिमारा बेस पर एक स्क्वाड्रन की तैनाती होगी | यानी पाकिस्तान से निपटने के लिए अंबाला में राफेल तैनात रहेंगे और चीन को हद बताने के लिए हाशिमारा में राफेल की तैनाती होगी | 

फ्रांस की कंपनी, डेसॉल्ट (Dassault) 227 करोड़ रूपये की लागत से बेस में मूलभूत सुविधाएं तैयार कर रही है | जिसमें विमानों के लिए रनवे, पाक्रिंग के लिए हैंगर और ट्रेनिंग के लिए सिम्युलेटर शामिल है | सिम्यूलेटर मतलब वैसे ही सुविधाएं से लैस मॉडल जो ट्रेनिंग के लिए उपलब्ध कराया जाता है | 

जानकारी के मुताबिक राफेल बनाने वाली कंपनी से भारत ने ये भी सुनिश्चित कराया है कि एक समय में 75 प्रतिशत प्लेन हमेशा ऑपरेशनली-रेडी रहने चाहिए | यानी हमले के लिए तैयार. इसके अलावा भारतीय जलवायु और लेह-लद्दाख जैसे इलाकों के लिए खास तरह के उपकरण भी राफेल में लगाए गए हैं | 

सौदे में कमियों की चर्चा – 

राहुल गांधी के संदेह का प्रमुख आधार इस खरीद की कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति से अनुमति नहीं लेना है। गुलाम नबी आजाद का कहना है कि यूपीए सरकार के दौरान इसी सौदे में विमान निर्माण की तकनीक हस्तांतरण करने की बाध्यकारी शर्त रखी गई थी, जो इस सरकार ने विलोपित कर दी। 

इससे पहले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने सौदे पर कई सवाल खड़े किए थे। सिंह ने खरीदी प्रक्रिया को अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से इसे संज्ञान में लेने की अपील की थी। यही नहीं भाजपा के ही वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने तो इस खरीद को विवादों की उड़ान की संज्ञा देते हुए, इसकी खामियों की पूरी एक फेहरिस्त ही जारी कर दी थी। स्वामी का दावा था कि लीबिया और मिस्त्र में राफेल जंगी जहाजों का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा। दूसरे, राफेल विमानों में ईंधन की खपत ज्यादा होती है और कोई दूसरा देश इन्हें खरीदने के लिए तैयार नहीं है। तीसरे, कई देशों ने राफेल खरीदने के लिए इसकी मूल कंपनी दासौ से एमओयू किए, लेकिन बाद में रद्द कर दिए। इन तथ्यात्मक आपत्तियों के अलावा स्वामी ने सौदे को आड़े हाथ लेते हुए कहा था कि यदि फ्रांस की मदद ही करनी थी तो इन विमानों को खरीदने की बजाय, दिवालिया हो रही दासौ कंपनी को ही भारत सरकार खरीद लेती ? हालांकि बाद में डॉ. स्वामी ने सौदे पर संतोष भी जताया था | 

विमानों की इस खरीद में मुख्य खामी यह है कि भारत को प्रदाय किए जाने वाले सभी विमान पुराने होंगे। इन विमानों को पहले से ही फ्रांस की वायुसेना इस्तेमाल कर रही है। हालांकि 1978 में जब जागुआर विमानों का बेड़ा ब्रिटेन से खरीदा गया था, तब ब्रिटिश ने हमें वही जंगी जहाज बेचे थे,जिनका प्रयोग ब्रिटिश वायुसेना पहले से ही कर रही थी। लेकिन हरेक सरकार परावलंबन के चलते ऐसी ही लाचारियों के बीच रक्षा सौदें करती रही है। इस लिहाज से जब तक हम विमान निर्माण के क्षेत्र में स्वावलंबी नहीं होंगे,लाचारी के समझौतांे की मजबूरी झेलनी ही होगी। 

प्रमोद भार्गव 

शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी 

शिवपुरी म.प्र. 

मो. 09425488224,09981061100 

फोन 07492 404524 

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।
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