आलेख के हेडिंग से चकित होने की आवश्यकता नहीं है | दरअसल स्वीडन आज जिस परिस्थिति से दो चार हो रहा है, कल भारत में भी वही घटने वाला है | क्योंकि भारत भी आज वही गलती कर रहा है, जो स्वीडन ने कल की थी |
सन 2015 में स्वीडन ने अपनी सीमाओं को मध्यपूर्व से आये हजारों "शरणार्थियों" के लिए खोल दिया था | अनेक विचारकों ने शासकों को इसके गंभीर परिणामों को लेकर सतर्क भी किया था, किन्तु जैसा कि अमूमन होता है, सरकारों द्वारा चेतावनियों को नजरअंदाज किया जाता है, यहाँ भी हुआ ।
और नतीजा जल्द ही सामने आ गया | महज दो साल बीतते न बीतते स्वीडन में अपराधों का ग्राफ तेजी से बढ़ने लगा | सार्वजनकि रूप से गोलीबारी आम बात हो गई | हालात यहाँ तक बिगड़े कि पुलिस पर भी हथगोलों और बमों से आयेदिन हमले होने लगे ।
बलात्कार की घटनाएँ तो इतनी बढ़ गईं कि पुलिस जांच करने में ही स्वयं को असमर्थ पाने लगी । बार बार पुलिसकर्मियों ने चेतावनी दी कि अब वे परिस्थितियों पर नियंत्रण पाने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं |
स्वीडन की स्थिति को गंभीर देखकर अंततः वित्त मंत्री मगधलेना एंडर्ससन को मानना पड़ा कि हमसे बड़ी गलती हुई कि स्वीडन में इतने आप्रवासियों को आने दिया |
हालत इतने भयावह हो गए कि हाल ही में स्वीडन की रक्षा समिति ने देश को युद्ध के लिए तैयार रहने का आव्हान कर दिया और प्रत्येक व्यक्ति को एक हफ्ते का राशन घर में रखने को कहा | हालांकि वस्तुस्थिति छुपाने के लिए आज भी इस आव्हान का कारण संभावित रूसी आक्रमण कहा गया, किन्तु वास्तविकता सब जानते हैं ।
और वह स्वीडिश प्रधान मंत्री स्टीफन लोफवेन के बयान से स्पष्ट भी हो गया | उन्होंने कहा है कि देश में कई मुस्लिम गिरोहों द्वारा किये जाने वाले अपराधों के खिलाफ सेना का उपयोग किया जा सकता है | हालांकि सेना की तैनाती मेरी पहली पसंद नहीं है, लेकिन अगर गंभीर संगठित अपराध की रोकथाम के लिए आवश्यक है, तो हम निश्चित तौर पर यह करने को तैयार हैं। वास्तव में इसका अर्थ यही है कि स्वीडन गृहयुद्ध की विभीषिका झेलने जा रहा है ।
अब सवाल उठता है कि क्या हमें रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या को नजर अंदाज करना चाहिए ?
कहीं लम्हों की खता, सदियों को न चुकानी पड़े |
अतः सावधान भारत !
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