दिल्ली की कहानी - १८५७ से आज तक - कैसे बनाई अंग्रेजों ने नई दिल्ली

सिविल लाईन स्थित अंग्रेजों का विजय स्मारक 


28 जनवरी, 2018 को हिंदुस्तान टाइम्स में जेहरा काजमी का एक आलेख प्रकाशित हुआ - Imperial Delhi: How the British built a ‘New Delhi’ at the cost of the old

राजधानी दिल्ली : अंग्रेजों ने कैसे पुरानी दिल्ली के स्थान पर नई दिल्ली बसाई ?

प्रस्तुत आलेख उसी आलेख पर आधारित है -

1857 के विद्रोह को बुरी तरह कुचलने के बाद, राजधानी पर पूर्ण नियंत्रण करने हेतु अंग्रेजों ने शाहजहांबाद के दक्षिण में स्थित रायसीना हिल पर एक नया शहर बनाया। इसी स्थान पर वाइसराय लॉज और सचिवालय भवनों का निर्माण किया गया ।

1857 के स्वातंत्र्य समर में भारतीय सिपाहियों और नागरिकों ने मिलकर ईस्ट इंडिया कंपनी को दिल्ली से पूरी तरह खदेड़ दिया था । तीन महीनों तक विद्रोहियों ने ब्रिटिश घुड़सवार सेना को शहर में घुसने नहीं दिया और दीवारों को तोड़कर दिल्ली पर कब्ज़ा करने के हर प्रयास को विफल किया। किन्तु अंततः सितंबर में कश्मीरी गेट ब्रिटिशों के हाथ आ ही गया, और इसके साथ ही बाकी दिल्ली भी। उत्तरी दिल्ली के बडा बाजार के नजदीक स्थित कश्मीरी गेट इलाके में आज भी सौ साल पहले हुए तोपों के गोलों की वर्षा के चिन्ह देखे जा सकते हैं ।

और इसके साथ ही शुरू हुआ मुग़ल सल्तनत के सभी चिन्हों को मिटाने और नए ब्रिटिश एम्पायर की स्थापना का क्रम । आज आधुनिक दिल्ली में आलीशान अट्टालिकाओं में, सरकारी भवनों में, कनॉट प्लेस के कोलोनेड्स में, सड़कों के नामों में या विश्वविद्यालय परिसर की भव्यता में, प्राचीन दिल्ली के ध्वंसावशेष मात्र कश्मीरी गेट की दीवारों में दिखाई देते हैं, जो १८५७ के भीषण युद्ध में हुए नुकसान और हिंसा की गवाही देते है।

ब्रिटिश आतंक 

प्रसिद्ध दिल्ली गेट के पास ही स्थित है खूनी दरवाजा | जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, यह वह स्थान है, जिसने दिल्ली के भयावह अतीत को देखा था । 1659 में औरंगजेब ने अपने सगे भाई दारा शिकोह की ह्त्या कर उसके कटे हुए सिर को इसी स्थान पर लटकाया था | 1 9 47 के विभाजन काल के दंगों से भी सर्वाधिक यही स्थान प्रभावित हुआ था । 2002 में चाकू की नोक पर, एक युवा मेडिकल छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार से एक बार फिर यह स्थान बदनाम हुआ था ।

यह वही खूनी दरवाजा है, जिसके समीप ही 1857 में एक ब्रिटिश कप्तान ने बहादुर शाह जफर के दो पुत्रों और एक पोते को शूट किया था | अपने आप को सभ्य प्रजाति मानने वाली अंग्रेज कौम ने जंगलियों की तरह व्यवहार करते हुए, जामा मस्जिद के निकट अकेले कूचा चेलेन में, एक हजार से अधिक पुरुषों को एक लाईन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया था । ना बहादुर शाह जफ़र के बच्चों पर कोई मुक़दमा चलाया गया, ना ही बेमौत मारे गए उन एक हजार लोगों के अपराध की कोई सुनवाई हुई |

उस समय अंग्रेजों को सबसे अधिक गुस्सा मुसलमानों पर था, क्योंकि वे बहादुरशाह जफ़र को ही विद्रोह का मुखिया मानते थे, अतः शहर की मुस्लिम आबादी को दंडित करने के लिए, उनके घरों पर कब्जा कर लिया गया और मस्जिदों को ध्वस्त कर दिया गया। जामा मस्जिद भी 1862 तक बंद ही रही । अकबरबादी मस्जिद ध्वस्त हुई, तो दरियागंज की जीनत-उल मस्जिद को एक बेकरी में बदल दिया गया | चांदनी चौक के अंत में लाल किले के सामने वाली फतेहपुरी मस्जिद, एक हिंदू व्यापारी लाला चुन्नामल को बेच दी गई ।

1857 के बाद हिंदुओं को तो धीरे-धीरे शहर में वापस आने दिया गया, किन्तु मुसलमानों को एक साल बाद इसकी अनुमति दी गई । अशोक विश्वविद्यालय की प्रोफेसर और A History of Desire in India की लेखिका माधवी मेनन के अनुसार - "यह एक शहर का विध्वंस ... इसका स्वरुप पूरी तरह बदल दिया गया ।"

अंग्रेजों ने दिल्ली के टुकड़े टुकड़े करने के बाद शहर का पुनर्गठन अपने अनुसार किया । आज की शांत, हरीतिमा युक्त सिविल लाइंस में, अंग्रेजों ने अपने लिए शहर के अन्दर एक नया शहर बनाया।

इस क्षेत्र के अधिकांश सरकारी भवन और शैक्षिक संस्थानों का सम्बन्ध 1857 की हिंसा से है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के बॉलरूम और राजसी खंभे, गवाही दे रहे हैं कि यह स्थान पहले भव्य वाइस-रीगल लॉज था, जहाँ कैद अपने बंधुओं को बचाने के लिए अंग्रेजों ने इसकी घेराबंदी कर हमला किया था। 

1857 के बाद सिविल लाईन्स ही ब्रिटिश जनों का मुख्य आवासीय केंद्र बन गया था, जहाँ केवल ब्रिटिश ही संपत्ति खरीद कर उसका स्वामित्व रख सकते थे | इतना ही नहीं तो यहाँ के स्पेन्सर या कार्लटन हाउस में केवल ब्रिटिश ही शराब खरीद सकते थे – या शहर के सबसे पुराने होटल में से एक मैडन्स होटल में भोज का लुत्फ़ भी केवल अंग्रेज ही उठा सकते थे ।

कुल मिलाकर सिविल लाईन्स मानो 1857 के विद्रोह पर अंग्रेजों की विजय का स्मारक बन गया | आज भी इसके आसपास की सारी सड़कें 1857 के ब्रिटिश नायकों के नाम पर हैं, जैसे कि लोथियन, हैमिल्टन या निकोलसन रोड ।

आज स्वतंत्र भारत की भी अधिकांश संरचनाएं जहां फैसले किए जाते हैं - जैसे राष्ट्रपति भवन, नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक आदि सभी उसी स्थान पर हैं | लुटियंस दिल्ली अभी भी देश के शक्तिशाली और समृद्ध अभिजात वर्ग का पता है। 2016 में यहां का एक बंगला ₹ 450 करोड़ में बिका था | इन विशाल वीआईपी घरों के पीछे ही स्थित है, वह झोंपड पट्टी, जहाँ से निकलकर मज़दूर वर्ग रात दिन इन महलवासियों की सेवा करता है । उनके लिए तो आज भी भारत एक उपनिवेश ही है । स्वामी बदल गए हैं, वे तो सेवक ही हैं | सत्ता की प्रकृति, प्रवृती और धारणा में कोई बदलाव नहीं होता । औपनिवेशिक मानसिकता क्या कभी समाप्त होगी ?
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