आज अरुणांचल प्रदेश की चर्चा केवल अलगाववादी गतिविधियों के कारण होती है, या फिर तब होती है जब कोई भारतीय नेता वहां जाता है और चीन उस पर आपत्ति व्यक्त करता है | चीन कहता है कि अरुणांचल उसका भूभाग है, क्योंकि वहां बसने वाले लोग आनुवंशिक रूप से चीनी हैं | दूसरी ओर आज वहां की अधिकाँश जनसंख्या पर ईसाई प्रभाव दृष्टिगोचर होता है | दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति यह भी है कि देशवासी अपने ही देश के प्रदेशों के इतिहास भूगोल से अनभिज्ञ हैं | आईये आज अरुणांचल के इतिहास पर एक नजर डालें –
पुरातात्विक खोजों ने अरुणाचल प्रदेश में हिंदू संस्कृति की उपस्थिति स्थापित की है। राज्य के प्राचीन इतिहास का ऐतिहासिक रूप से मूल्यांकन करने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है |
अरुणाचल प्रदेश को सूर्य देव का निवास कहा जाता है और इसकी लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा पश्चिम में भूटान के साथ, उत्तर और उत्तर-पूर्व में चीन और दक्षिण-पूर्व की ओर म्यांमार के साथ मिलती है। अरुणाचल प्रदेश का इतिहास सैकड़ों वर्षों की परंपराओं और मिथकों की धुंध में छुपा हुआ है।
यद्यपि अरुणाचल प्रदेश का इतिहास रहस्यमय है, किन्तु इतिहासकारों ने रामायण और महाभारत (सी 500-400 ईसा पूर्व) के समय से राज्य में हिंदू संस्कृति और हिन्दू धर्म की उपस्थिति स्वीकार की है । पुराणिक साहित्य भी इस धारणा को मजबूती देते हैं। परशुराम कुंड में समाहित होने वाली लोहित नदी भी एक पुरातन साक्ष्य है ।
अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न स्थानों का हिंदू महाकाव्यों में उल्लेख मिलता है। कालिका पुराण में ऊपरी लोहित घाटी को प्रभु कुतार और सुबनसिरी घाटी को प्रभु मंडल बताया गया है । सादिया के निकट भीष्मकनगर के ध्वंसावशेष राजा भीस्मक के महल के बताये जाते हैं, जिनका वर्णन भागवत पुराण में किया गया है। भीष्मकनगर के निकट स्थित तांबा मंदिर से संस्कृत शिलालेख के साथ दो तांबे की प्लेट खोजी गई है।
अरुणाचल प्रदेश में बसने वाली करुबी जनजाति के लोग, स्वयं को रामायण कालीन बाली और सुग्रीव का वंशज मानते हैं। इसी प्रकार तिवास जनजाति स्वयं को देवी सीता का वंशज मानकर गौरवान्वित होती है |
मिश्मीस, पौराणिक राजा भीस्मक को अपना पूर्वज मानते हैं, जिनकी बेटी रूक्मिणी का विवाह भगवान कृष्ण से हुआ था | ब्रह्मपुत्र की घाटियों से सटी पहाड़ियों और तवांग के दूरदराज क्षेत्रों में शिव पूजा के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं ।
1 9वीं शताब्दी के दौरान, ब्रिटिश प्रशासकों और विद्वानों ने विभिन्न जनजातियों के मौखिक इतिहास को दर्ज किया और भीष्मकनगर, तामेश्वरी मंदिर, भालुकपोंग, रुक्मिनी नगर, इटा किला आदि का पता लगाया।
राज्य के अनुसंधान पुरातात्विक निदेशालय ने 20 वीं सदी के अंतिम दशकों और 21 वीं शताब्दी की शुरुआत में अनेक उत्खनन और अन्वेषण किये । 1 965-67 में किये गए उत्खनन के दौरान लोहित जिले में एक विशाल शिवलिंग का पता चला था। अगले दशकों में भीष्मकनगर, मालिनीथान, विजयनगर, रुक्मिणीनगर और नक्श पर्वत में उत्खनन कार्य संपन्न हुए ।
ताम्रेसरी मंदिर और भीष्मकनगर किले में संस्कृत, असमिया और बंगाली लिपि में लिखित शिलालेख पाए गए । शिलालेखों में से एक का अनुवाद 'श्री श्री लक्ष्मी नारायण जप' के रूप में किया गया । लोहित जिले में तेज़ू के पास स्थित परशुराम कुंड की धार्मिक यात्रा लम्बे समय से हिंदू भक्तों द्वारा की जाती रही है। आठवीं सदी के कालिका पुराण में वर्णित कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने पाप मुक्ति के लिए इस स्थान पर स्नान किया था ।
दिबांग घाटी जिले के निचले भाग में रोइंग के पास स्थित भीष्मक नगर का उल्लेख कालिका पुराण में भी मिलता है। इस स्थान पर राजा कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी के पिता राजा भीष्मक का शासन था। पश्चिम सियांग जिले की तलहटी में स्थित मालिनीथान में मंदिरों के खंडहर हैं। वर्षों तक किए गए उत्खनन में चार अलग-अलग मंदिरों का पता चला है और बड़ी संख्या में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां प्राप्त हुई है।
अत्यंत सुन्दर नक्काशीदार पत्थरों से निर्मित मंदिर परिसर, अतीत के गौरवशाली इतिहास की गवाही देते प्रतीत होते हैं । यह स्थान भी भगवान कृष्ण की कथा के साथ जुडा हुआ है | कालिका पुराण के अनुसार विस्मयकनगर से वापस आते समय भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी रूक्मिणी के साथ इस स्थान पर विश्राम किया था तथा स्वयं भगवान शिव और उनकी पत्नी माता पार्वती ने पुष्प माला से उनका स्वागत किया था । भगवान कृष्ण ने देवी पार्वती को 'मालिनी' के नाम से संबोधित किया और कहा कि इस स्थान पर इस नए नाम के साथ उनकी पूजा की जाएगी और तबसे यह स्थान मालिनीथान या 'मालिनी के निवास' के रूप में प्रसिद्ध हो गया ।
अनुसंधान निदेशालय द्वारा उत्खनित विभिन्न मूर्तियां और नक्काशीदार पत्थर म्यूजियम में रखी गई हैं, जिनमें मंदिरों और देवी - देवताओं सहित विभिन्न ऋषियों और गन्धर्वों का चित्रण है ।
मंदिर की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा (मालिनी) की प्रतिमा उत्खनन के दौरान पाए गए टुकड़ों से पुनर्निर्मित की गई । इस मूर्ति के अलावा, मंदिर परिसर में नंदी, इंद्र, सूर्य, ब्रह्मा, गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती, वराह, राधा, कृष्ण, शिव लिंग और कई अन्य प्रस्तर प्रतिमाएं भी यहाँ देखी जा सकती हैं ।
मालिनीथान के पास स्थित आकाशिगंगा को देवी पार्वती की कथा के साथ जुड़े 51 पवित्र शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। कथा के अनुसार इस स्थान पर भगवती सती का सिर गिरा था। देश के विभिन्न हिस्सों से भारी संख्या में तीर्थयात्री मालिनीथान और आकाशगंगा की यात्रा पर आते हैं ।
राज्य में नवीनतम खोज सुबानसिरी जिले के निचले भाग में हुई है | यहाँ ज़ीरो नामक स्थान पर दुनिया का सबसे ऊंचा शिवलिंग मिला है। 2004 में घने जंगल के बीच पवित्र श्रावण मास में इस शिव लिंग की खोज अपने आप में चमत्कारिक थी। यह माना जाता है कि शिव पुराण के रुद्र खंड के अध्याय 17 में इस स्थान पर लिंग की उपस्थिति का वर्णन है। प्राकृतिक चट्टानों के बीच स्थित इस शिवलिंग की परिधि 22 फीट और ऊंचाई 25 फीट है। शिव परिवार के अन्य सदस्यों के बीच स्थित इस लिंग के नीचे से पानी की एक सतत धारा बहती है। लिंग के सामने की ओर भगवान गणेश का विग्रह है, जबकि देवी पार्वती और भगवान कार्तिकेय छोटे लिंगों के रूप में पीछे की तरफ हैं।
राज्य के खेतों में और विभिन्न निर्माण कार्यों के दौरान विभिन्न स्थलों से हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियाँ लगातार मिलती रहती हैं । कुछ मूर्तियों को तो नव निर्मित मंदिरों में स्थापित किया जाता है जबकि कुछ की स्थानीय लोग अपने अपने घरों में ही पूजा करते हैं। ये पुरातात्विक साक्ष्य सदियों से प्रचलित पौराणिक कथाओं और मान्यताओं की पुष्टि करते हैं
स्वतंत्र भारत के बाद 'नेहरू नीति' के चलते राज्य में विभिन्न जनजातियों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से काटने का अधम प्रयास न हुआ होता, तो आज क्या चीन की हिम्मत होती, आँखें तरेरने की ? और शायद अलगाव वाद भी न पनप पाता | यह स्वागत योग्य है कि हाल के दिनों में पुरातात्विक साक्ष्यों और अन्वेषणों ने अरुणाचल प्रदेश में सदियों से हिंदू धर्म की उपस्थिति सिद्ध की है। राज्य के इस प्राचीन इतिहास को स्थानीय जनों से जोड़ने के ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।
(लेखिका भारत के इतिहास और संस्कृति में गहरी रूचि रखने वाली एक डॉक्टर और लेखक हैं |
‘Arunachal Pradesh- Rediscovering Hinduism in the Himalayas’ उनके द्वारा लिखित एक प्रमुख पुस्तक है |
सौजन्य: दैनिक पायनियर
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
एक टिप्पणी भेजें