ऋषि चरक दुखी होकर नगर के बाहर निकल गए ! उन्होंने सोचा मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए इतना बड़ा ग्रंथ बेकार ही लिखा ! लोगों ने शरीर को दवाखाना बना कर रख लिया है ! अस्पताल दुकानें बन गई हैं और वैद्य बिजनेसमेन ! सब इन किताबों से पढ़कर औषधियां बनाकर बेच रहे हैं ! रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है ! ऐसे तो पूरा हो चुका निरोगी संसार की कामना ! दुखी होकर वे नदी किनारे बैठे गए ! तभी देखा कि एक व्यक्ति नदी से नहा कर जा रहा था ! उसकी वेशभूषा देखकर वे समझ गए कि यह भी कोई वैद्य ही है ! मन नहीं माना तो उन्होंने उस वैद्य से भी वही सवाल पूछा, 'कोरुक?' (यानी कौन निरोगी ?) पहले तो उस व्यक्ति ने उन्हें गौर से देखा फिर बोला, 'हित भुक, मित भुक, ऋत भुक.' यह सुनते ही चरक का चेहरा खुशी से खिल उठा ! उन्होंने उस वैद्य को गले से लगा लिया ! बोले आपने बिलकुल ठीक कहा जो व्यक्ति शरीर को लगने वाला आहार ले, भूख से थोड़ा कम खाए और मौसम के अनुसार भोजन या फलाहार करे वही स्वस्थ रह सकता है ! अगर हम नियमित इसका पालन करें तो शरीर में रोग हो ही नहीं ! और गलती से कुछ हो ही गया तो चरक संहिता में उपचार की विधियों का वर्णन किया ही गया है !
उपचार पद्धति
सुश्रुत तथा चरक दोनो ने ही रोगी की शल्य परिक्रिया के समय औषधि स्वरूप मादक द्रव्यों के प्रयोग का वर्णन किया है ! उल्लेख मिलता है कि भारत में 927 ईसवी में दो शल्य चिकित्सकों ने ऐक राजा को सम्मोहिनी नाम की मादक औषधि से बेहोश कर के उस के मस्तिष्क का शल्य क्रिया से उपचार किया था !
चीन के इतिहासकार युवाँग चवँग के अनुसार भारतीय उपचार पद्धति सात दिन के उपवास के पश्चात आरम्भ होती थी ! कई बार तो केवल पेट की सफाई की इसी परिक्रिया के दौरान ही रोगी स्वस्थ हो जाते थे ! यदि रोगी की अवस्था में सुधार नहीं होता था तो अल्प मात्रा में औषधि का प्रयोग अन्तिम विकल्प के तौर पर किया जाता था ! आहार, विशेष स्नान, औषधीय द्रव्यों को सूंघना, इनहेलेशन, यूरिथ्रेल एण्ड वैजाइनल इनजेक्शन्स को ही विशेष महत्व दिया जाता था !
महार्षि चरक से भी बहुत समय पूर्व रामायण युग में भी रावण के निजि वैद्य सुषेण ने युद्ध भूमि में मूर्छित लक्ष्मण का उपचार किया था ! यह वर्तान्त आधुनिक रेडक्रास धारी स्वयं सेविकी संस्थानो के लिये एक प्राचीन कीर्तिमान स्वरूप है तथा चिकित्सा क्षेत्र के व्यवसायिक सेवा सम्बन्धी परम्पराओं की भारतीय प्रकाष्ठा को दर्शाता है !
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एक बार की बात है महर्षि चरक अपने नगर यह जानने के लिए निकले कि उनकी बताई बातों का कितने लोग पालन करते हैं? एक स्थान पर एक वैद्यजी कुछ जड़ी-बूटी पिसते हुए दिखाई दिए। सामान्य वेशधारी महर्षि चरक ने उनसे पूछा कि निरोग कैसे रहेंगे? वैद्यजी का जवाब था जो रोज त्रिफला का सेवन करे। महर्षि चरक को यह सुन कर बड़ी निराशा हुई। वे कुछ और आगे गए तो वहाँ भी एक वैद्यजी मिले उनसे भी वही सवाल किया, उनका जवाब था जो नियमित च्वयनप्राश का सेवन करें, रसायन का सेवन करें। ऋषिवर को फिर भी संतोष नहीं हुआ,उन्हें लगा कि सारा किया धरा चौपट हो गया। यहाँ तो कोई भी उनके ग्रंथ का अर्थ समझता ही नहीं। जब वे निराश होकर लौटने को थे तो एक वैद्यजी और दिखाई दिए। सोचा कि चलो इनसे ही पूछा जाए। ये वैद्यजी समझदार निकले- इनका जवाब था-ऋत भुक,हित भूक मित भूक अर्थात-जो मौसम के अनुकूल आहार ग्रहण करता हो,जो स्वयं के हित का ध्यान रखते हुए अपना आहार चुने और जो मिताहारी हो यानि भूख से कम वह निरोगी है। तो दोस्तो चखो पर चरो मत, चरो तो फरो अर्थात यदि आपने ज्यादा चर लिया है तो फिर उसे चहल कदमी कर पचाइए। और न फरो तो मरो।
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