इजराईल के प्रधानमंत्री श्री बेंजामिन नेतन्याहू ने 3 अक्टूबर 2001 को इजराईल की गवर्नमेंट रिफोर्म कमेटी में एक भाषण दिया था, जिसका मुख्य बिंदु आतंकवाद था | हम सभी जानते हैं कि आज आतंकवाद एक वैश्विक समस्या बन चुका है और इजराईल ने उसका जितने प्रभावी ढंग से सामना किया है, उसका सानी नहीं है | तो प्रस्तुत है श्री नेतन्याहू के भाषण का संपादित अंश –
आज हमारी सभ्यता ही दांव पर लगी हुई है | आज हम सभी आतंकवाद के निशाने पर हैं | हमारे शहर असुरक्षित हैं | आज हम सभी वेदना और चुनौती का लगातार सामना कर रहे हैं | हमारे लोगों ने कई शताब्दियों से चले आ रहे आतंकवाद के तडपाने वाले संत्रास को झेला है |
यदि स्वतंत्र विश्व के हम सभी नागरिक, अपनी आरक्षित अनंत शक्तियों को उपयोग मन लायें, अपने स्वातंत्र प्रेमी लोगों के दृढ निश्चय को काम में लायें और अपनी सामूहिक इच्छाशक्ति को गतिशील बनाएं, तो हम इस बुराई को धरती से मिटा सकते हैं | किन्तु इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमें अनेक प्रश्नों के उत्तर ढूंढने होंगे | बर्बर आतंकवाद का उत्तरदाई कौन हैं ? क्यों है ? इन आक्रमणों के पीछे मंशा क्या है ? और इन दुष्ट शक्तियों को परास्त करने के लिए क्या किया जाना चाहिए ?
सबसे पहले तो यह समझ लेना होगा कि प्रभुसत्ता संपन्न देशों के समर्थन के बिना अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद चल ही नहीं सकता | उनकी सहायता और प्रोत्साहन के बिना अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद अधिक समय तक पनप ही नहीं सकता | वे आतंकवादी देश अपनी भूमि पर सुरक्षित अड्डे देकर आतंकवादियों को प्रशिक्षण देते हैं, युद्ध सामग्री देते हैं | उन्हें गुप्त सूचनाएं, धन एवं आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराते हैं और अपने से अधिक शक्तिशाली अपने शत्रु देशों में प्रच्छन्न युद्ध लड़ने के लिए वहां भेजते हैं | ये देश आतंकवाद को वैध साबित करने के लिए तथा आतंकवादियों को बेक़सूर साबित करने के लिए विभिन्न प्रचार माध्यमों से पूरे विश्व में ढिंढोरा पीटते हैं |
अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को यदि राज्याश्रय न मिले तो उसका सारा ढांचा चरमरा कर धुल में मिल जाएगा | उसका आधार ही है, ईरान, ईराक, सीरिया, अफगानिस्तान के तालिवान, फिलीस्तीन एवं सूडान जैसे अनेक अरब देश ! (नेतन्याहू ने भले ही यहाँ पाकिस्तान का नाम नहीं लिया, किन्तु उनके इस वर्णन में हम तो उसे भी जोड़ ही सकते हैं)
ये ही वे राज्य हैं जो आतंकवादी गिरोहों को प्रश्रय देते हैं | अफगानिस्तान में ओसामा बिन लादेन, सीरिया नियंत्रित लेबनान में हिजबुल्ला जैसे संगठन, हमास इस्लामिक जिहाद और फिलिस्तीनी क्षेत्रों में अभी हाल ही में सक्रिय फतह एवं तंजिम जैसे संगठन तथा बग़दाद और खारतूम जैसी राजधानियों में चलाये जा रहे अनेक आतंकवादी संगठन इसके उदाहरण हैं | इन आतंकवादी देशों एवं संगठनों ने एक साथ मिलकर आतंकवाद का एक जाल बन रखा है | जिसके विभिन्न अंग आपस में युद्ध संबंधी या राजनैतिक समर्थन का आदान प्रदान करते रहते हैं ! यह जिहादी मानसिकता वाले लोग पूरे विश्व के ऊपर इस्लाम का प्रभुत्व स्थापित करना चाहते हैं | ऐसा करने के लिए वह स्वयं के विकास एवं उन्नति का सहारा नहीं लेते हैं, अपने शत्रु का नाश करके वह ऐसा करना चाहते हैं | यह घृणा उस खुलती कुधन का नतीजा है, जो अरब एवं इस्लामी विश्व के कुछ भागों में सदियों से उबलती रही है | विश्व के अधिकाँश मुसलमान इतिहास की इस व्याख्या से मार्गदर्शन नहीं लेते और न ही वे पश्चिम के विरुद्ध जिहाद के आह्वान से प्रभावित होते हैं | कुछ गिने चुने लोग ही इस प्रवृत्ति के हैं |
इस्लाम एवं वामपंथ दोनों ही सम्पूर्ण विश्व पर आधिपत्य ज़माना चाहते हैं, ये दोनों आन्दोलन तर्कहीन लक्ष्य प्राप्ति में संलग्न हैं | वामपंथी उसके लिए तर्कसंगत मार्ग अपनाते हैं, किन्तु इस्लामी लड़ाकुओं के साथ ऐसा नहीं है | v एक तर्कहीन आदर्श के पीछे भागते हैं और इस तर्कहीन दौड़ में वे इंसानी जिन्दगी के लिए प्रगटतः कोई सम्मान नहीं रखते | वे न तो अपने जीवन की परवाह करते हैं और न अपने शत्रुओं के जीवन की |
१९९६ में लिखी गई आतंकवाद से युद्ध संबंधी अपनी पुस्तक में मैंने घरेलू अंतर्राष्ट्रीय वर्ग के रूप में पश्चिमी देशों में पल रहे इस्लामी गिरोहों के प्रति चेतावनी दी थी और यह बताया था कि इस्लामी आतंकवादी अमरीका में ही रहकर अमरीका के ही विरुद्ध जिहाद की योजना बना रहे हैं | मैंने लिखा था कि उन आतंकों का प्रतिफल, विश्व व्यापार केंद्र के भूतल में कार बम नहीं, अणु बम होगा |
आतंकवादियों ने अमरीका में अनुबं का प्रयोग नहीं किया | विश्व व्यापार केंद्र की दो बृहदाकार मीनारों के विध्वंश के लिए उन्होंने 150 टन क्षमता की पेट्रोल टंकियों वाले विमानों का उपयोग किया | अब इसमें कोई संदेह नहीं कि मौक़ा मिलने पर वे अमरीका एवं मित्र राष्ट्रों पर अणुबम फेंक सकते हैं | यह भी संभव है कि वे इसके पूर्व रासायनिक एवं जैविक युद्ध सामग्री का उपयोग करें |
हम सभी के भविष्य के लिए यह सबसे बड़ा खतरा है | आतंकवादियों के पास रासायनिक एवं जैविक युद्ध सामग्री भी है | कुछ अणुबम बनाने के लिए अधीर हैं | इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि वे देश स्वयं या अपने आतंकवादी प्रतिनिधियों के माध्यम से ऐसी युद्ध सामग्री का इस्तेमाल करें | हमें नरक से एक चेतावनी मिली है, अब एक सीधा सा प्रश्न उठता है, समय रहते क्या हम सभी एकजुट होकर बुराई को परास्त करेंगे ? या जैसा चल रहा है, वैसा ही चलते रहने देंगे ?
आतंकवाद के विरुद्ध ठोस कार्यवाही करने का समय आ गया है | आज आतंकवादियों के पास हमको नष्ट करने की इच्छा है, परन्तु यथेष्ट शक्ति नहीं है | जबकि इसमें कोई शक नहीं कि हमारे पास उनको नष्ट करने की शक्ति अहि | अब हमको यह दिखाना होगा कि वैसा करने के लिए हमारे पास इच्छा भी है |
इसके लिए हमें क्या करना चाहिए ? सबसे पहले, जैसा कि अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा है, हमें आतंवादियों और उन्हें समर्थन देने वाले देशों के बीच कोई भेद नहीं करना चाहिए | आक्रमणकारी आतंकवादियों को समाप्त कर देना ही पर्याप्त नहीं होगा | हमें आतंकवाद के सम्पूर्ण जाल को नष्ट करना होगा | यदि उसका अल्पांश भी सही सलामत बच गया तो वह पुनः खडा हो जाएगा | उदाहरणार्थ ओसामा बिन लादेन गत शताब्दी में सऊदी अरब से अफगानिस्तान, अफगानिस्तान से सूडान और पुनः अफगानिस्तान वापस चला गया था | इसलिए हमें आतंकवाद के किसी भी आधार को सही सलामत नहीं छोड़ना चाहिए | इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु पहले हमारी नैतिक दृष्टि साफ़ होनी चाहिए | आतंक से हमें युद्ध करना होगा, वह जहां भी हो, जब भी हो | हमें घोषणा करनी होगी की आतंकवाद मानवता के प्रति अपराध है | हमें आतंकवादियों को मानव जाति के शत्रु के रूप में मानना होगा |
यदि हम आतंकवादी गतिविधियों के विभिन्न क्रियाकलापों में भेद दृष्टि रखते हुए, कुच्छ को सहानुभूति पूर्वक उचित और शेष को अनुचित ठहराएंगे तो हम उस नैतिक दृष्टि की स्पष्टता से हाथ धो बैठेंगे, जो विजय के लिए अत्यावश्यक है |
आतंकवाद समर्थक देशों को यह स्पष्ट चेतावनी दी जानी चाहिए कि या तो आतंकवाद को नष्ट करो, या स्वतंत्र विश्व का कोपभाजन बनो | उनके ऊपर कठोर एवं सतत राजनैतिक, आर्थिक तथा सैन्य प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए | यदि कोई देश आतंकवाद विरोधी गठबंधन में शामिल होना चाहता है, तो उसके लिए एक शर्त होनी चाहिए – ‘सबसे पहले अपने क्षेत्र में आतंकवाद के संजाल को समूल नष्ट करो |’
आतंकवाद व्यक्ति की स्वतंत्रता पर आक्रमण करता है | उसे समाप्त करना हमारे सामर्थ्य की परिधि में है | आईये उसे इच्छा शक्ति की परिधि में भी लायें |
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