मैंने ठेका नहीं लिया है, तुम्हारे धर्म से मेल बिठालने का – ओशो
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पहली तो बात, तुम अपनी फिकर के लिए यहां आए हो कि सबकी फिकर के लिए ? तुमने कोई ठेका लिया है सारे लोगों की फिकर का ? तुम कौन हो उनकी चिंता करने वाले ? पहले तुम तो पा लो !
और तुम यह नहीं पूछते कि शास्त्रीय संगीत सबके लिए है या नहीं ! और तुम यह नहीं पूछते कि शेक्सपीयर के नाटक, और कालिदास के शास्त्र, और भवभूति की रचनाएं, और रवींद्रनाथ के गीत सबके लिए हैं या नही ! तब तुम यह नहीं कहते कि कोई सस्ते कालिदास क्यों पैदा नहीं किये जाते ? जो सर्वसुलभ हों ! धर्म के लिए ही क्यों यह आग्रह है तुम्हारा ?
धर्म को लोगों ने समझ रखा है दो कौड़ी की चीज होनी चाहिए ! सस्ती होनी चाहिए ! सर्वसुलभ होनी चाहिए ! और धर्म इस जीवन में सबसे कीमती चीज है; सबसे बहुमूल्य. यह तो जीवन का परम शिखर है ! यहां कालिदास, भवभूति, रवींद्रनाथ, शेक्सपीयर और मिल्टन जैसे लोगों की भी पहुंच मुश्किल से हो पाती है !
यहा आइंस्टीन और न्यूटन और एडिंग्टन जैसे वैज्ञानिकों तक की पहुंच नहीं हो पाती. !सर्व साधारण की तो बात ही तुम छोड़ दो ! यहां तो कोई बुद्ध, कोई महावीर, कोई कृष्ण, कोई जीसस, अंगुली पर इने-गिने लोग पहुंच पाए ! मैं क्या करूं ! नियम यह हैः एस धम्मो सनंतनो !
धर्म तो परम शिखर है ! इसके लिए तो प्रतिभा चाहिए ! इसके लिए तो बड़ी प्रखर प्रतिभा चाहिए, क्योंकि यह जीवन के आखिरी तत्व को खोज लेना है !
तुम्हारा प्रश्न सोचने जैसा है और पहले प्रश्न के संदर्भ में इसको लेना, तो आसान हो जाएगा समझना !
कहते होः आप कहते हैं कि नृत्य में डूबो, उत्सव मनाओ, गीत गाओ, यही धर्म है !
निश्चित ही यही धर्म है और अगर तुम नृत्य में डूब सकते, गीत नहीं गा सकते, उत्सव नहीं मना सकते तो और क्या करोगे ?
तुम कहते होः इसकी फुर्सत कहां है !
और चिलम पीने की फुर्सत है ! और ताश खेलने की फुर्सत है ! और अभी बरसात में चौपड़ बिछा कर बैठने की फुर्सत है ! और आल्हा-ऊदल गाने की फुर्सत है ! किन गंवारों की बात कर रहे हो यहां ?
और गीत गाने की फुर्सत नहीं ! और नाचने की फुर्सत नहीं ! और उपद्रव करने की फुर्सत है ! हिंदू-मुस्लिम दंगा करना हो, तो बिल्कुल फुर्सत है ! और बलात्कार करना हो, तो फुर्सत है ! हरिजनों के झोपड़े जलाने हों, तो फुर्सत है ! और चुनाव लड़ना हो, तो फुर्सत है !
जो मर गए हैं बिल्कुल, वे भी वोट देने पहुंच जाते हैं लोगों के कंधों पर बैठ कर ! अंधे, लंगड़े, लूले, इनको चुनाव में रस है ! और अगर इनसे कहो 'उत्सव' तो चिन्तामणि पाठक को बड़ी चिंता पैदा हो रही है !
तुम कहते होः फुर्सत कहां है लोगों को, निर्धनता का अभिशाप झेल रहे हैं !
कौन जिम्मेवार है ? अगर झेल रहे हैं, तो खुद जिम्मेवार हैं और तुम जैसे लोग जिम्मेवार हैं, जो उनकी निर्धनता का किसी तरह का सुरक्षा का उपाय खोज रहे हो ! क्यों झेल रहे हैं निर्धनता का अभिशाप ?
पांच हजार साल से क्या भाड़ झोंकते रहे ! अमरीका तीन सौ साल में समृद्ध हो गया ! कुल तीन सौ साल का इतिहास है और दुनिया के शिखर पर पहुंच गया ! तुम क्या कर रहे हो ? तुम्हें लेकिन फुर्सत है रामचरितमानस पढ़ने की ! हर साल रामलीला खेलने की ! वही गांव के गुंडे राम बन जाएंगे और उनके पैर छूने की !
और गांव का कोई मूर्ख सीता बन जाएगा, और तुम जानते हो कि कौन है यह ! मूंछें मुड़ाए खड़ा हुआ है ! और सीतामैया-सीतामैया कर रहे हो ! तुम्हें फुर्सत है कि समय कैसे काटें ! हर तरह से समय बरबाद करने की फुर्सत है ! मगर आलसी हैं; बेईमान हैं !
और तुम्हारे महात्माओं ने तुम्हें बेईमानी और आलसीपन सिखाया है ! वे तुम्हें सिखा गए, कि क्या करना है ! अरे, सबका देखने वाला भगवान है ! जब उसकी मर्जी होगी, छप्पर फाड़ कर देता है ! अभी तक किसी को छप्पर फाड़ कर दिया, देखा नहीं और देगा भी, तो सम्हल कर बैठना; खोपड़ी न खुल जाए ! छप्पर ही न गिर जाए कहीं !
तुम कहते होः फुर्सत नहीं है !
और कर क्या रहे हैं गांव के लोग चौबीस घंटे ? और हर तरह के दंगे-फसाद की फुर्सत है ! सत्यनारायण की कथा में बैठने की फुर्सत है ! डंडे चलाना हो, तो एकदम तैयार हैं ! नागपंचमी में दंगल करना हो, तो दंगल के लिए तैयार हैं ! सांप की पूजा करनी हो, तो ये तैयार है !
एक दूसरे सज्जन ने पूछा है कि मेरा विश्वास सनातन धर्म में है ! बजरंगबली महावीर में मेरी अटूट श्रद्धा है ! आपकी बातें मुझे दिलचस्प तो लगती हैं, लेकिन हमारे सनातन धर्म से उनका मेल नहीं बैठता ! क्या आप बताने की कृपा करेंगे कि मुझमें क्या कमी है ?
नाम हैः खिलिन्दा राम चौधरी. प्रधान, महावीर सेवा दल, पानीपत !
इस सबकी फुर्सत है ! ये खिलिन्दा राम को तरह-तरह के खेल करने की फुर्सत है ! महावीर सेवा दल के प्रधान हैं, इसकी इनको फुर्सत है ! और बजरंगबली की सेवा करने की फुर्सत है !
और तुम्हें कोई भी चीज सही कही जाए, तो तुम्हारे धर्म का सौभाग्य ! न खाए, तुम जानो. कोई मैंने ठेका नहीं लिया है, तुम्हारे धर्म से मेल बिठालने का ! मैं किस-किस के धर्म से मेल बिठाऊं ! यहां तीन सौ धर्मों को मानने वाले लोग पृथ्वी पर हैं ! अगर इन सबका ही मेल बिठाता रहूं, तो मेरा ही तालमेल खो जाए !
किस-किस का मेल बिठालना है ! यहां तरह-तरह के मूढ़ पड़े हुए हैं और सबकी अपनी धारणाएं हैं ! अब तुम्हारी अटूट श्रद्धा बजरंगबली में है ! तुम आदमी हो या क्या हो ! और कमी पूछ रहे हो ! बजरंगबली से ही पूछ लेना ! वे खुद ही हंसते होंगे, कि यह देखो मूर्ख ! खिलिन्दा राम ! राम होकर और बजरंगबली की सेवा कर रहे हैं !
आजकल बजरंगबली तक राम की सेवा नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनको दूसरी रामलीला में ज्यादा पैसे पर नौकरी मिल गई !
इस तरह से लोगों से यह देश भरा हुआ है ! जमाने भर की जड़ता को तुम सनातन धर्म कहते हो ! हर तरह के अंधविश्वास को तुम सनातन धर्म कहते हो ! और तुम्हें जब कोई अनुभव नहीं है, तुम्हें अटूट श्रद्धा कैसे हो गई ? और अटूट श्रद्धा थी, तो यहां किसलिए आए हो ? तुड़वाने आए हो श्रद्धा ! बजरंगबली तो वहीं उपलब्ध है पानीपत में ! खुद पानी पीओ, उनको पिलाओ ! यहां किसलिए आए हो ! श्रद्धा तुड़वानी है ?
और दिलचस्पी मत लो मेरी बातों में ! खतरनाक हैं ये बातें ! इसमें बजरंगबली से साथ छूट जाएगा ! यह अटूट श्रद्धा वगैरह कुछ नहीं है ! अटूट होती ही तब है, जब होती नहीं !
तुम कहते हो कि मेरा विश्वास सनातन धर्म में है !
कैसे तुम्हारा विश्वास है ? किस आधार पर तुम्हारा विश्वास है ? संयोग की बात है कि तुम हिंदू घर में पैदा हो गए ! तुमको बचपन में उठा कर मुसलमान के घर में रख देते, तो तुम्हारी अटूट श्रद्धा इस्लाम में होती ! हिंदुओं के गले काटते ! तब तुम यह महावीर सेवा दल वालों की जान ले लेते ! तब तुम कुछ और दल बनाते ! रजाकार ! तब तुम दूसरा झंडा खड़ा करते कि इस्लाम खतरे में है ! और मेरा विश्वास इस्लाम में है ! और तुम ईसाई घर में पैदा हो जाते, तो तुम यही उपद्रव वहां करते !
तुम्हारा विश्वास है कैसे ? किसी आधार पर तुम्हारा विश्वास है ? सिर्फ यही न कि तुम्हारे मां-बाप ने तुम्हें यह सिखा दिया कि हनुमान जी हैं, ये पत्थर की मूर्ति नहीं हैं ! इनकी सेवा करो ! इन्हें नाराज मत करना ! हनुमान चालीसा पढ़ो ! यह बेटा, बहुत फल देंगे ! ये बड़े भोले भाले हैं ! इनको मना लेना बड़ा आसान है ! जो चाहोगे, ये कर देंगे !
इसी सब पागलपन के पीछे तो यह देश गरीब है ! यह सारा श्रम अगर देश को समृद्ध बनाने में बनाने में लगे, तो इस देश के पास बड़ी समृद्ध पृथ्वी है ! और हमारे पास पांच हजार साल का अनुभव होना चाहिए था ! हमें तो दुनिया में शिखर पर होना था ! मगर एक तरफ अंधविश्वास और दूसरी तरफ तुम्हारे महात्मागण, जो कह रहे हैं, जो कह रहे हैं- सब त्यागो, सब छोड़ो; भौतिकता छोड़ो ! तो गरीब न रहोगे, तो क्या होगा !
और फिर गरीब रहो, तो यहां इस तरह के प्रश्न खड़े करते हो, जैसे मेरा कोई जिम्मा है ! मेरा काई जिम्मा नहीं है ! तुम्हारी गरीबी के लिए तुम जिम्मेवार हो और अभी भी तुम्हारी गरीबी टूट सकती है ! मगर जो आदमी तुम्हारी गरीबी तुड़वाने के लिए कोशिश करेगा, तुम उसकी जान लोगे ! तुम्हें अपनी गरीबी से मोह हो गया है !
आखिर मेरा विरोध क्या है ! मेरा विरोध यह है कि मैं कह रहा हूं कि भारत को भौतिकता के ऊपर अपनी जड़ें जमानी चाहिए, क्योंकि जिस देश की जड़ें भौतिकता में हों, उसी देश के शिखर पर अध्यात्म के फूल खिल सकते हैं ! यह मेरे विरोध का कारण है.
- ओशो
पुस्तकः जो बोलैं तो हरिकथा
प्रवचन नं. 4 से संकलित
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ओशोवाणी
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