जन्म और मृत्यु - ओशो रजनीश
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सागर में लहर उठी, फिर लहर सो गई | क्या तुम सोचते हो कि लहर के उठने से सागर में कुछ नया जुड़ गया था ? अब लहर के चले जाने से क्या सागर में कुछ कमी हो गई ? न तो सागर में कुछ जुडा, न कुछ कमी हुई | सब बैसा का बैसा है |
सत्य न तो घटता, न बढ़ता | बढे तो कहाँ से बढे | घटे तो कहाँ घटे, कैसे घटे ? सत्य तो जितना है, उतना है | जिस दिन व्यक्ति अपने को लहर की तरह देखता है और परमात्मा को सागर की तरह, अपने को तरंग की तरह, इससे ज्यादा नहीं; एक रूप एक नाम इससे ज्यादा नहीं, एक भावभंगिमा, एक मुखमुद्रा, इससे ज्यादा नहीं, उसके भीतर उठा हुआ एक स्वप्न, इससे ज्यादा नहीं – अमृत से सम्बन्ध हो गया |
तत्संस्थस्या.... उसके साथ जो जुड़ गया | तत शब्द विचारणीय है | तत का अर्थ होता है : वह; देट | ईश्वर को हम कोई व्यक्तिवादी नाम नहीं देते, क्योंकि व्यक्तिवादी नाम देने से भ्रान्तियाँ होती हैं | राम कहो, कृष्ण कहो – भ्रान्ति खडी होती है | क्योंकि यह भी तरंग है, बड़ी तरंग सही, मगर तरंग है | उसकी तरंग है | अवतार सही, मगर आज हैं और कल नहीं हो जायेंगे | छोटी तरंग हो सागर में कि बड़ी तरंग हो, इससे क्या फर्क पड़ता है – तरंग तरंग है | उसकी | तत | उसमें जो ठहर गया, उससे भिन्न अपने को जो नहीं मानता, उसका सम्बन्ध अमृत से हो जाता है, क्योंकि परमात्मा अमृत है |
ऐसा कहना कि परमात्मा अमृत है, शायद ठीक नहीं | ऐसा ही कहना ठीक है कि इस जगत में जो अमृत है, उसका नाम परमात्मा है | इस जगत में जो नहीं मरता, उसका नाम परमात्मा है | जो इस जगत में मर जाता है, वह संसार | जो नहीं मरता वह परमात्मा |
तुमने एक बीज बोया | बीज मर गया | लेकिन अंकुर हो गया | जो बीज में छिपा था वह अमृत, अब अंकुर में आ गया | बीज मर गया, उसने बीज को छोड़ दिया, वह देह छोड़ दी, अब उसने नई देह ले ली, नया रूप ले लिया | अब तुम बैठकर रोओ मत बीज की मृत्यु पर | क्योंकि बीज में तो कुछ और था ही नहीं, जो था अब अंकुर में है | फिर एक दिन वृक्ष बड़ा हो गया, फिर एक दिन वृक्ष मर गया | अब तुम रोओ मत वृक्ष की मृत्यु पर | क्योंकि जो वृक्ष मर गया, वह फिर बीजों में छिप गया है | अब फिर कहीं, फिर किसी मौसम में, फिर किसी अवसर पर, फिर किसी क्षण में बीज अंकुरित होंगे | फिर पौधा होगा, फिर वृक्ष होगा |
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ओशोवाणी
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