एक अकिंचन की राम कहानी - नागराज की छत्रछाया में बेटी शुभा
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छोटे भाई अविनाश को तिलक करती शुभा |
मेरे मकान के अंदरूनी भाग में एक २० बाई २० का चौक था | चार कमरे नीचे और दो कमरे ऊपर बने हुए थे | हम पति पत्नी का बेड रूम नीचे ग्राउंड फ्लोर पर था, जबकि बच्चे व मेरी वृद्ध मां ऊपर फर्स्ट फ्लोर पर बने कमरों में शयन करते थे | मेरी २० वर्षीय बेटी शुभा अपने ५ वर्षीय छोटे भाई अविनाश व् एक छोटी सी पालतू स्नेकी नामक पामेरियन पप एक कमरे में तथा ८० वर्षीय वृद्ध मां व् एक बेटा दूसरे कमरे में |
एक रात पत्नी ने रात को लगभग १ बजे मुझे जगाया तथा बताया कि अंदर चौक में उन्होंने एक सांप को देखा है | मैंने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया तथा कहा कि अब रात को क्या हो सकता है सुबह देखेंगे | चौक में मत जाओ | थोड़ी देर बाद ही शुभा ने आवाज लगाईं "पापा दरबाजा खोलो" | मैंने जल्दी से दरबाजा खोलकर कहा "बेटा नीचे क्यों आये हो, जल्दी अन्दर आ जाओ, शायद चौक में सांप है" |
शुभा बोली " सांप चौक में नहीं, ऊपर हमारे कमरे में है " | हुआ यूं था कि वह सात फुट लम्बा कलाई के बराबर मोटा काला नाग पानी की निकासी के लिए लगे पाइप के सहारे ऊपर कमरे में पहुँच गया था | उसे कमरे में देखकर स्नेकी ने भोंकना शुरू किया तो शुभा को लगा कि कोई बिल्ली कमरे में आ गई है, कहीं एसा ना हो कि वह मेरे ऊपर से निकले और मेरे चेहरे पर उसका पंजा लग जाए | उसने रजाई से अपना मुंह ढँक लिया | उसे अनुभव हुआ कि उसके ऊपर से कोई चीज निकल गई है | जब स्नेकी का भोंकना बंद ही नहीं हुआ और सरहाने किसी चीज की उपस्थिति महसूस हुई, तो उसने अपनी कल्पना की बिल्ली को भगाने के लिए लाईट का स्विच ओन किया और अपने सिरहाने कुण्डली मार कर बैठे सांप को देखा | शुभा ने उस सांप को देखकर भी हिम्मत नहीं हारी तथा जल्दी से पहले अपने सोये हुए छोटे भाई को गोद में उठाया तथा फिर सांप पर लगभग झपटती हुई स्नेकी को संभाल कर वह नीचे हम लोगों के पास आई |
अब मुझे ऊपर के दूसरे कमरे में सोयी अपनी वृद्ध मां तथा बेटे की चिंता हुई | मैं जल्दी से ऊपर गया व् उन लोगों को लेकर नीचे आया | मुझे उस समय कमरे में कहीं सांप नहीं दिखाई दिया | दूसरे दिन सुबह भी हम लोगों को सांप नहीं दिखा | हमने माना कि वह कहीं निकल गया | किन्तु अब किसी को भी ऊपर सोने के लिए जाने देने के इच्छा नहीं हुई | जब नौकर शुभा के कमरे में से विस्तर लेने गया तो उसने उस कमरे में से नीचे चौक में गए पानी निकासी के पाइप में सांप को देखा व् आकर हम लोगों को बताया | तुरंत फोन करके सांप पकड़ने बाले को बुलाया गया | पहले आये संपेरे की तो हिम्मत उस सांप की विशालता को देखकर ही जबाब दे गई | फिर दूसरे अधिक अनुभवी संपेरे को बुलाया गया और लगभग दो घंटे की मशक्कत के बाद उसने उस सांप पर काबू पाया |
हमारे पूरे परिवार को आज भी वह वाकया पूरी तरह स्मरण है तथा शुभा की दिलेरी भी | जिस सांप को देखकर संपेरे की हिम्मत जबाब दे गई उस सांप के सामने से अपने छोटे भाई को चिंता से हटा लेना, तथा इतना ही नहीं तो पालतू पप की भी चिंता करने बाली मेरी बेटी पर मुझे नाज है |
जब सबने उसकी तारीफ़ की और पूछा तुझे उस सांप से डर नहीं लगा ? तो उसने मासूमियत से कहा कि जब मैं उस सांप को देख रही थी तब मुझे एसा लग रहा था कि जैसे वह मुझसे कह रहा हो "डर मत बेटी" | सरहाने कुण्डली मार कर सर्प का बैठना बैसे भी राज योग दर्शाने बाला कहा जाता है | वह कितना सही है नहीं जानता, किन्तु शुभा आज दो बच्चों की मां है व् कोटा राजस्थान में सुखी गृहस्थ जीवन बिता रही है | दोनों बच्चे पार्थ भारद्वाज और समृद्धि भारद्वाज मेरे फेस बुक मित्र भी है | पार्थ इन दिनों पुणे में इंजीनियरिंग की स्नातक डिग्री लेने की दिशा में अग्रसर है तो समृद्धि उपाख्य "शिवी" इस वर्ष मेट्रिक में पहुंची है !
यद्यपि हम लोगों ने संपेरे को मुंह मांगी राशि अर्पित की थी व् उससे आग्रह किया था कि वह इस सर्प को जंगल में छोड़ देगा, किन्तु सर्प की विलक्षणता देखकर उस संपेरे ने एसा करने के स्थान पर उसे अपने पास ही रखा व् उदर पोषण के लिए उसका उपयोग करना चाहा | जब उसने उस सांप को पहली बार अन्य लोगों को दिखाने के लिए पिटारे में से निकाला, तभी वह उसके दंस का शिकार हो मौत के मुंह में समा गया |
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