एक अकिंचन की राम कहानी - श्रीमंत राजे और मैं ?
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89 से 98 के बीच अगर कोई राजनैतिक गतिविधि रही तो केवल कैलाश जोशी जी के चुनाव का संचालन ! वे राजगढ़ संसदीय क्षेत्र से दिग्विजय सिंह जी के लघुभ्राता लक्ष्मण सिंह के खिलाफ मैदान में डटे ! मुझे चान्चोड़ा विधानसभा क्षेत्र का दायित्व सोंपा गया ! इस चुनाव में ही मेरा आलोक संजर, रामेश्वर शर्मा, नवल प्रजापति आदि भोपाल के कार्यकर्ताओं से प्रथम परिचय हुआ !
खैर चुनाव में व्यापक धांधली हुई ! बड़े पैमाने पर बूथ कैप्चरिंग के साथ भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की घटनाएँ भी व्यापक पैमाने पर हुई ! यहाँ तक कि कार्यकर्ताओं के दुःख से दुखी आहत कैलाश जी राघोगढ़ राजमहल के सामने भूख हड़ताल पर भी बैठ गए ! बाद में वरिष्ठ नेताओं का सन्देश लेकर तत्कालीन भोपाल महापौर उमाशंकर गुप्ता धरनास्थल पर पहुंचे व समझा बुझाकर कैलाश जी का अनशन ख़त्म कराया ! शिवपुरी गुना संसदीय क्षेत्र से राजमाता सिंधिया भाजपा प्रत्यासी थीं, इसके बाद भी शिवपुरी के अनेक कार्यकर्ता राजगढ़ चुनाव में पहुंचे, सक्रिय रहे व प्रताड़ित हुए !
1998 में एक बार फिर भाजपा में सक्रिय हुआ, किन्तु इस मानसिकता के साथ कि राजनीति में बिना किसी पद के भी सम्मान पाया जा सकता है, यह दिखाना है ! यही कारण रहा कि खनियाधाना की रानी साहब पद्माराजे (अब स्वर्गीय) जब भाजपा अध्यक्ष बनीं, तब उन्होंने मुझे अपनी कार्यकारिणी में लेना चाहा, किन्तु मैंने विनम्रता पूर्वक इनकार किया ! स्व. प्यारेलाल जी का आग्रह स्वीकार कर यशोधरा राजे सिंधिया जी का भी सहयोगी रहा ! उनके कार्यालय पर भी समय देना प्रारम्भ किया ! यहाँ तक कि पुरानी बातें भूलकर लोग मुझे राजे का नजदीकी मानने लगे ! राजे साहब ने भी मुझे पर्याप्त अपनत्व दिया ! प्रवास के दौरान मेरे संकोची स्वभाव से परिचित होने के कारण कहीं भी भोजन करने के पूर्व वे मेरी चिंता करतीं ! साग्रह अपने साथ रखतीं !
तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री जगमोहन जी को स्मृति चिन्ह देते हुए हरिहर |
नरेंद्र बिरथरे जब शिवपुरी भाजपा के जिलाध्यक्ष बने तब उनका अत्याधिक आग्रह स्वीकार कर मैं उनकी कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष बना ! यशोधरा जी के हर चुनाव में मैंने किसी ना किसी रूप में उनके लिये उपयोगी भूमिका निबाही ! इस दौरान उनको नजदीक से जानने का अवसर भी मुझे मिला है ! प्रस्तुत हैं कुछ संस्मरण –
वे जब अपने विधानसभा क्षेत्र के दौरे पर होती हैं, तो उनके साथ कार्यकर्ताओं से भरे अक्सर पांच सात वाहन तो होते ही हैं ! बात उन दिनों की है जब डकैत समस्या चरम पर थी ! सिरसौद खोड़ रोड का निर्माण भी नहीं हुआ था और वह क्षेत्र आवागमन की दृष्टि से अत्यंत दुर्गम माना जाता था ! यहाँ तक कि चुनाव के दौरान शिवपुरी से जो कार्यकर्ता वहां एक बार जाते तो उन्हें चुनाव समाप्ति तक वहीं रुकना होता था ! बारबार शिवपुरी आना संभव ही नहीं था !
राजे साहब का काफिला लगभग अर्धरात्रि में उसी इलाके से वापस लौट रहा था कि तभी एक जीप का पहिया पंक्चर हो गया, ऊपर से तुर्रा यह कि उस गाड़ी में स्टेपनी भी नहीं थी ! यशोधरा जी का वाहन लगभग दस किमी आगे निकल गया, तब उनकी जानकारी में आया कि एक जीप पीछे छूट गई है ! उन्होंने तुरंत अपनी गाडी वापस करवाई ! स्वाभाविक ही उनके साथ दूसरे सारे वाहन भी वापस हुए !
किसी अन्य जीप का पहिया उस जीप में लगाया गया और इस सब आपाधापी में लगभग दो घंटे का समय लगा ! रात्रि के तीन बजे सब लोग शिवपुरी पहुँच पाए !
अपने कार्यकर्ताओं की इतनी चिंता करती है श्रीमंत यशोधरा राजे जी !
दूसरा संस्मरण -
यशोधरा जी पहली बार विधायक बनीं व उनके निजी सचिव के रूप में पदस्थ हुए एक एम.पी.ई.बी. के कर्मचारी "शर्माजी"| अपनी कुशलता व परिश्रम से जल्द ही वे राजे साहब के अत्यंत विश्वासपात्र बन गए | किन्तु कुछ वर्षों के बाद उनके रूखे व्यवहार व आर्थिक घोटालों की शिकायतें आने लगीं | राजे साहब ने उन्हें दायित्व मुक्त कर दिया |
"शर्माजी" अत्यंत नाराज होकर राजे साहब के विरोधी खेमे के साथ हो लिए तथा उन्हें मानसिक कष्ट देने लगे | उन्हीं दिनों मध्यप्रदेश का विभाजन होकर नया राज्य छत्तीसगढ़ बना | अनेक शासकीय कर्मचारी इधर से उधर हुए | एक उत्साही कार्यकर्ता ने यशोधरा जी को सुझाव दिया कि यह "शर्मा" बहुत परेशान कर रहा है, इसकी पोस्टिंग छत्तीसगढ़ करवा देना चाहिए |
राजे साहब का जबाब मैं शायद ही कभी भुला पाऊँ |
उन्होंने झिड़की भरे अंदाज में कहा - "तुम क्या चाहते हो कि मैं शर्मा जी के व्यवहार की सजा उसके परिवार को दूं ? आज भले वह मेरा विरोधी हो गया हो, किन्तु कभी तो वह मेरा सहयोगी रहा है | मैं सपने में भी उसका अहित नहीं कर सकती |"
आज कार्यक्षेत्र बदल जाने से, भले ही राजे साहब से मेरा कोई वास्ता न रहा हो, किन्तु उनके बड़े दिल का मैं आजभी कायल हूँ |
श्रीमंत राजे मुझसे पुनः हुईं नाराज –
उन्ही दिनों शिवपुरी के पूर्व प्रचारक श्री सूर्यकांत जी केलकर सहकार भारती के राष्ट्रीय संयोजक बने और उन्होंने मुझे भी सहकारिता के क्षेत्र में सक्रिय कर डाला ! 2006 में मुझे केन्द्रीय सहकारी बेंक शिवपुरी का अध्यक्ष मनोनीत किया गया !
फिर आया 2007 का उपचुनाव | श्रीमंत यशोधरा राजे सिंधिया के ग्वालियर से सांसद बन जाने के कारण शिवपुरी विधानसभा से उन्होंने त्यागपत्र दिया और यह उपचुनाव हुआ | यह उपचुनाव मेरे राजनैतिक जीवन का भी समापन सिद्ध हुआ |
उस समय तक प्रत्यासियों की घोषणा नहीं हुई थी | मैं तत्कालीन संगठन मंत्री श्री हुकुमचंद्र गुप्ता के साथ नगर में कार्यकर्ता संपर्क पर था | तभी मोवाईल की घंटी बजी | दूसरी ओर उमा जी की जनशक्ति के तत्कालीन प्रदेश महामंत्री श्री नरेंद्र बिरथरे थे | वे चूंकि मेरे परम आत्मीय और छोटे भाई जैसे ही हैं, अतः स्वाभाविक ही उनसे सहज चर्चा होती ही रहती थी | नरेंद्र जी ने पूछा क्या कर रहे हो ? मैंने जबाब दिया – वही रोज का काम सबसे मिलना जुलना, और क्या |
नरेंद्र बोले – काहे को परेशान हो रहे हो भाई साहब, आपकी पार्टी ने तो गणेश गौतम को टिकिट थमा दिया है |
यहाँ यह बताना प्रासंगिक होगा कि गणेश गौतम कोलेज समय में युवा कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे, जबकि मैं विद्यार्थी परिषद् का संगठन मंत्री | इतना ही नही तो उस समय गणेश गौतम और एक एक स्थानीय दादा महेश “पापी” ने मुझपर हमला भी किया था |
स्वाभाविक ही मैंने नरेंद्र जी को जबाब दिया कि काहे को दून की हांक रहे हो यार, यह संभव नहीं |
बाद में संगठन मंत्री हुकुमचन्द्र जी ने पूछा कि कौन का फोन था, तो मैंने बताया कि नरेंद्र का फोन था और वो चंडूखाने की उड़ा रहे थे कि गणेश का टिकिट भाजपा से फाईनल हो गया |
हुकुमचंद्र जी ने सहज पूछा कि भाईसाहब मान लो अगर ऐसा हो गया तो क्या होगा ?
तो मैंने भी सहज जबाब दे दिया कि अब्बल तो ऐसा होगा नहीं, किन्तु अगर हो गया तो पार्टी का काम तो करेंगे पर वोट नहीं देंगे |
बात आई गई हो गई | और टिकिट भी गणेश जी को मिल गया | और मजे की बात यह कि मुझे ही चुनाव संचालक भी नियुक्त कर दिया गया | मैं हुकुम चन्द्र जी से हुई चर्चा भी भूल चुका था |
श्रीमंत यशोधरा राजे सिंधिया संगठन के इस निर्णय से बेहद खफा हुईं | आखिर उनके द्वारा रिक्त की गई सीट पर टिकिट किसे दिया जाए, यह किसी ने उनसे पूछा भी नहीं | उनकी परोक्ष सहानुभूति कांग्रेस प्रत्यासी श्री वीरेन्द्र सिंह रघुवंशी के साथ है, यह अनुमान कर उनके नजदीकी लोगों ने खुलकर खेला |
परिणाम स्वरुप स्वयं मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, अनूप मिश्रा आदि के अथक परिश्रम के बाबजूद भाजपा इस चुनाव में पराजित हुई | चुनाव संचालक के नाते इस पराजय की गाज सबसे सॉफ्ट टार्गेट इस गरीब हरिहर शर्मा पर गिरी | ईमानदारी से काम करने के बाबजूद मुझे भितरघाती करार दिया जाकर दरकिनार कर दिया गया | सहकारी बेंक की अध्यक्षी तो जानी ही थी | मुझ पर राजे साहब के सहयोगी होने का आरोप मढ़ा गया, और मजा यह कि वे भी लम्बे समय तक मुझसे खफा रहीं !
उपेक्षा से आहत मैं शिवपुरी छोड़कर संघ का वान्यप्रस्थी पूर्णकालिक घोषित होकर भोपाल जा पहुंचा ! पहले विवेकानंद सार्ध शती का प्रचार प्रमुख और बाद में विश्व संवाद केंद्र का कार्यकारी निदेशक रहा ! अब वापस शिवपुरी अपने पारिवारिक दायित्व की ओर |
तो यह है मेरी अभी तक की राम कहानी !
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