भारत में जहाँ क्रिकेट को एक धर्म की तरह पूजा जाता है एवं बाकी खेल उपेक्षा के शिकार है ! इस देश में बच्चे बच्चे को क्रिकेट के आईपीएल टीम के सभी 15 खिलाड़ियों के नाम मुंह जुबानी याद रहते है उन्हें बाकी खेलों में कुछ खास दिलचस्पी नहीं होती है ! जब हमारे राष्ट्रीय खेल होकी की हालत बदतर है तो आप अन्य खेलों की स्थिति का अनुमान लगा सकते है ! कई खेलों के अंतराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं के विजेताओं की आर्थिक स्थिति को देख आप निश्चित ही सोचने को मजबूर हो जायेंगे कि यदि यह क्रिकेट को धर्म मानने वाले इस देश में पैदा न हुए होते तो निश्चित ही एक प्रसिद्ध खिलाड़ी होते ! सोचिये यदि पेले और टाइगर वुड्स जैसे खिलाड़ी भारत में पैदा हुए होते तो उनकी स्तिथि क्या होती !
गूंगा पहलवान के नाम से मशहूर वीरेंदर सिंह ने अपनी कामयाबियों से गज़ब की मिसाल कायम की है ! मूक और बधिर होने के बावजूद उन्होंने कभी भी इस कमी को अपने सपनों की उड़ान में आड़े आने नहीं दिया ! काबिलियत और कुश्ती की दांव-पेंच में महारत से दंगल में कई बड़े-बड़े पहलवानों को चित कर भारत को पदक दिलवाए ! कई रिकार्ड अपने नाम किये ! दुनिया-भर में अपनी पहलवानी का लोहा मनवाया ! वीरेंदर सिंह ने साबित किया कि अगर इंसान के हौसले बुलंद है और उसमें कुछ बड़ा हासिल करने का ज़ज़्बा है तो अपंगता कामयाबी को रोक नहीं सकती ! वीरेंदर सिंह ने जोश , मेहनत और लगन से न सिर्फ पहलवानों को मात दी है बल्कि अपनी शारीरिक अक्षमता को भी चित किया है ! वीरेंदर की कामयाबी की कहानी प्रेरणादायक है !
वीरेंदर का जन्म हरियाणा के झज्जर जिले के सासरोली गांव में हुआ ! वीरेंदर बचपन से न सुन सकते थे और न ही बोल नहीं सकते थे ! आस-पड़ोस के लोग उन्हें ‘गूंगा’ बुलाते थे और धीरे-धीरे यही शब्द उनकी पहचान बन गया ! वीरेंदर के गांव के लोग मूक और बधिर लोगों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते थे और ये मानते थे इन लोगों का कोई भविष्य नहीं होता ! वीरेंदर से भी किसी को कोई उम्मीद नहीं थी ! लेकिन, जैसे ही वीरेंदर अपने गाँव से दिल्ली गए उनकी किस्मत ने भी करवट ली !
दिल्ली जाने के पीछे भी एक घटना थी ! हुआ यूँ कि बचपन में वीरेंदर के पैर में दाद हो गया ! उनके एक रिश्तेदार ने जब ये दाद देखा तो वे हैरान हुए और इलाज के लिए वीरेंदर को अपने साथ दिल्ली ले गए ! वीरेंदर काफी समय दिल्ली में रहे और इसी दौरान वे छत्रसाल अखाड़ा जाने लगे ! छत्रसाल अखाड़ा भारत-भर में काफी मशहूर है और यहाँ से कई चैंपियन पहलवान निकले हैं ! छत्रसाल अखाड़े में आते-जाते वीरेंदर की कुश्ती में दिलचस्पी लगातार बढ़ती गयी, और इसी दिलचस्पी के चलते वो अखाड़े में कूद पड़े और कुश्ती की शुरुआत हो गयी ! वैसे तो उन्हें पहलवानी का शौक अपने गाँव के घर के पास वाले अखाड़े से लगा जहां उनके पिता अजित सिंह भी पहलवानी करते थे, लेकिन छत्रसाल अखाड़े में उनका शौक परवान चढ़ा था !
अखाड़े के कोच की देखरेख में ही वीरेंदर ने पढ़ाई की ! उन्होंने कोच के प्रोत्साहन से दसवीं की परीक्षा भी पास कर ली ! फिर अखाड़े में अभ्यास तेज़ हो गया ! वीरेंदर ने दंगल में जी-जान लगाकर कुश्ती लड़ना शुरू किया ! उन्होंने अब ठान ली थी कि वे पहलवान ही बनेंगे, लेकिन परिवार वाले वीरेंदर के इस फैसले से नाराज़ हो गए ! वे वीरेंदर के अखाड़ा जाने और पहलवान बनने के खिलाफ थे ! परिवार वाले मानते थे कि पहलवान बनकर वीरेंदर को कुछ भी नहीं मिलेगा ! सिर्फ समय बर्बाद होगा ! परिवारवालों को लगता था कि वीरेंदर भी अपने पिता की ही तरह बनेंगे ! वीरेंदर के पिता भी एक पहलवान थे और उन्हें कुश्ती से कुछ नहीं मिला था !
लेकिन, वीरेंदर के हौसले बुलंद थे ! उनमें जोश था ! सपने उड़ान भर रहे थे ! भविष्य उज्जवल नज़र आ रहा था ! उन्हें भरोसा था कि वो चैंपियन पहलवान बनेंगे ! दंगल में प्रतिद्वंद्वियों को पटकनी देंगे और अपनी किस्मत भी बदल डालेंगे ! वीरेंदर के जोश और हौसलों के सामने परिवारवालों को झुकना पड़ा ! इस बाद वीरेंदर ने अपनी पूरी ताकत अखाड़े में झोंक दी ! प्रतिद्वंद्वी को चारों खाने चित करने के गुर सीखने लगे ! शुरुआत में अभ्यास के दौरान कोच को उन्हें समझाने में कई सारी दिक्कतें पेश आती थीं, लेकिन धीरे-धीरे वीरेंदर सब कुछ समझने लगे !
साल २००२ में वीरेंदर ने दंगल लड़ना शुरू किया ! हर कुश्ती में वे प्रतिद्वंद्वी को पटकनी देते ! पटकनी देने का सिलसिला जारी रहा और वे लगातार आगे बढ़ते चले गए ! धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि पहलवानों के बीच बढ़ने लगी ! देश-भर के पहलवान उनके नाम से परिचित होने लगे थे ! लोग उन्हें "गूंगा पहलवान" के नाम से जानने-पहचाने लगे ! देश के दंगल में शोहरत हासिल करने के बाद वीरेंदर ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लेना शुरू किया ! वीरेंदर ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी अपना लोहा मनवाया ! कई बड़े पहलवानों को दंगल में मात दी ! वीरेंदर ने दूसरे पहलवानों को हराकर कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिताब अपने नाम किये !
साल २००५ में मेलबर्न में हुए डेफलिम्पिक्स में भारत का पहला और एकमात्र गोल्ड मेडल वीरेंदर ने भी अपने नाम किया ! वीरेंदर ने २००९ ताइपेई डेफलिम्पिक्स में कांस्य पदक, २००८ वर्ल्ड डेफ रेस्लिंग में रजत पदक और २०१२ की वर्ल्ड डेफ रेस्लिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता ! साल २०१३ में बुल्गारिया में हुए डेफलिम्पिक्स में उन्होंने दुबारा स्वर्ण पदक जीता !
इतना ही नहीं वीरेंदर को ‘नौ सेरवें’ के खिताब से भी नवाज़ा जा चुका है ! यह खिताब उन पहलवानों को मिलता है, जो लगातार नौ रविवार तक सभी दंगल जीतते हैं ! साल २००९ में वीरेंदर ये कामयाबियां हासिल की थीं !
बहुत कम लोग ये जानते हैं कि ओलिंपिक पदक विजेता सुशील कुमार के ओलंपिक अभियान में वीरेंदर ने काफी मदद की है ! सुशील भी छत्रसाल अखाड़े में ही अभ्यास करते हैं और यहीं वीरेंदर ने उनकी हर मुमकिन मदद की ! अपनी काबिलियत और दांव-पेच से वीरेंदर कई लोगों का दिल जीत चुके हैं ! कुश्ती के महारथी गुरु सतपाल और कोच रामफल मान भी उनके मुरीद हैं !
वीरेंदर की ज़िंदगी से सीखने के लिए बहुत कुछ है ! उनकी कई खासियतें हैं ! उन्होंने खुद के मूक -बधिर होने को कभी अपनी तरक्की में आड़े आने नहीं दिया ! वे बोल और सुन नहीं सकते, लेकिन उन्होंने अपनी प्रतिभा और दांव-पेच से बड़े-बड़े पहलवानों को चित किया है ! वीरेंदर ने कठिनाइयों को कभी अपने पर हावी नहीं होने दिया ! समस्याओं का बिना डरे मुकाबला किया !
वीरेंदर की कामयाबी की कहानी से लोग काफी प्रभावित हैं ! तीन युवकों - विवेक चौधरी, मीत जानी और प्रतीक गुप्ता ने उनके संघर्ष और कामयाबियों पर ‘गूंगा पहलवान’ के नाम से डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनायी है !
वीरेंदर की निगाहें अब २०१६ में ब्राजील के रियो में होने वाले ओलंपिक पर टिकी हैं ! वे रियो ओलंपिक में भारत के लिए पदक जीतना चाहते हैं और इसके लिए जी-तोड़ कोशिश भी कर रहे हैं !
लेकिन, वीरेंदर एक बात से बहुत दुखी हैं ! उनका मानना है कि सरकारों से उन्हें उतनी मदद नहीं मिली जितनी की मिलनी चाहिए थी ! राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पतक जीतने पर लोग सम्मान और राशि सामान्य पहलवानों और दूसरे खिलाड़ियों को दी जाती है वो मूक-बधिर या फिर अन्य विकलांग खिलाड़ियों को नहीं दी जाती ! वीरेंदर अपने जैसे खिलाड़ियों को न्याय दिलवाने के लिए संघर्ष भी कर रहे हैं !
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