मध्यप्रदेश की पर्यटन नगरी शिवपुरी के पर्यटन स्थल
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शिवपुरी मध्यप्रदेश का एक अत्यंत प्राचीन शहर है ! शिवपुरी पर्यटकों के बीच में बेहद पवित्र और प्रसिद्ध शहर है ! शिवपुरी को पूर्व में “सीपरी” के नाम से जाना जाता था ! आजादी के बाद इस शहर को भगवान् शिव के नाम पर शिवपुरी नाम प्राप्त हुआ ! शिवपुरी को एक महान ऐतिहासिक स्थल के रूप में भी जाना जाता है जो अतीत की शाही विरासत का प्रतिनिधित्व करती है !
पवा जल प्रपात
पवा जल प्रपात शिवपुरी जिले की पोहरी तहसील में स्थित है ! पवा जल प्रपात की दूरी शिवपुरी शहर से लगभग 40 किलोमीटर है ! पवा जल प्रपात शिवपुरी – श्योपुर हाईवे से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ! शिवपुरी का नाम भगवान् शिव के नाम पर पड़ा है, जिसका कारण यह है कि शिवपुरी जिले में भगवान् शिव के अनेकोनेक मंदिर दिखाई देते है जिनकी अपनी अपनी मान्यताएं भी है !
पवा झरना एक सुंदर झरना है। यहां भगवान शिव की भव्य मूर्ति है ! पवा कुंड की गहराई लगभग 500 फीट है ! कुंड के चारों ओर की पहाड़ियों इस जगह को बेहद खूबसूरत एवं आकर्षक बनाती है ! यह एक बहुत ही धार्मिक स्थल है ! कहा जाता है कि इस पवित्र स्थान पर जो भी मन्नत मांगी जाए वह अवश्य पूर्ण होती है !
अक्टूबर माह से मार्च माह का समय पवा घूमने के लिए श्रेष्ठ है, परन्तु पवा जल प्रताप को निहारने और उसे केमरे में कैद करने का सबसे सही समय बारिश का है ! 500 फीट की ऊंचाई से जब पानी गिरता है, तब धुंआधार के समान चारों तरफ बस कोहरा ही कोहरा दिखाई देता है, जल प्रपात का यह अदभुद नजारा, पवा को शिवपुरी जिले के पर्यटक स्थलों में पहले स्थान पर रखता है ! इस अनोखे स्थान के बारे में यह भी कहा जाता है कि यदि पवा के एक छोर से गोली दागी जाए तो वह दुसरे छोर पर नहीं पहुच पाती है ! वैज्ञानिकों के अनुसार इसका कारण इस स्थान पर गुरुत्वाकर्षण बल का अधिक होना है ! बताया जाता है कि पुराने समय में डकैत इस जलप्रताप का सहारा पुलिस से बचने हेतु करते थे, डकैत इस जलप्रपात के दूसरी तरफ जाकर पुलिस की गोली से आसानी से बच निकलते थे !
पवा भगवान् शिव में आस्था रखनेवाले भक्तों के लिए चमत्कारिक स्थल है ! शिव भक्तों को यहाँ बेहद शांति का अनुभव होता है ! झरने के आसपास घुमावदार पहाड़ियां स्थित है, जहाँ काफी हरियाली है ! यहाँ का दौरा पर्यटकों की यात्रा को ख़ास बना देता है ! जल प्रपात के ऊपर मंदिर के बाहर एक कुंड भी है, जिसमें पर्याप्त मात्रा में पानी के सांप दिखाई देते है, लेकिन इन्होने कभी किसी को कोई हानि नहीं पहुंचाई |
भूरा खो :-
शिवपुरी शहर से 10 किमी दूर स्थित प्राकृतिक झरना भूरा खो एक छोटा लेकिन सुंदर झरना है ! भूरा खो में 25 फीट का आकर्षक झरना है जिसका पानी नीचे कुंड में गिरता है ! यह माधव सागर झील के पास स्थित है ! भूरा खो आगंतुकों के लिए एक मनोरंजन केंद्र है ! भूरा खो पर भगवान् शिव की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है !यह झरना एक छोटी सी उचाई से गिरता है और पास ही नदी में विलीन हो जाता है ! भूरा खो शिवपुरी के तीन प्रसिद्ध झरनों में से एक है ! शिवपुरी में भूरा खो के अलावा सुल्तानगढ़ और पवा का झरना भी है !
सुल्तानगढ़ जलप्रपात :-
सुलतानगढ़ जलप्रपात शिवपुरी से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ! यह एक प्रसिद्ध और मनमोहक पर्यटन स्थल है ! सुल्तान गढ़ जलप्रपात चट्टानी इलाके के बीच में स्थित एक प्राकृतिक झरना हैं ! पार्वती नदी इस झरने को खूबसूरती प्रदान करती है ! हरे भरे जंगलों से घिरा हुआ यह क्षेत्र सुल्तान गढ़ जलप्रपात को भव्यता प्रदान करता है !
सुल्तान गढ़ जलप्रपात के आगंतुक पर्यटकों के अनुसार यह जलप्रपात बेहद ही खूबसूरत और सुखदायक है ! सुल्तान गढ़ जलप्रपात और इसके आसपास का क्षेत्र एक प्रकृति प्रेमी की आँखों के लिए एक दावत स्वरुप है ! यहाँ पर्यटकों को सूर्यउदय एवं सूर्यास्त के समय ज्वलंत रंगों के साथ क्षितिज में सूर्य को देखना बेहद खूबसूरत लगेगा !
तात्या टोपे स्मारक
तात्या टोपे भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख सेनानायक थे ! सन १८५७ के महान स्वाधीनता समर में उनकी भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रेरणादायक और बेजोड़ थी ! सन् सत्तावन के संघर्ष की शुरुआत १० मई को मेरठ से हुई थी ! जल्दी ही क्रांति की चिन्गारी समूचे उत्तर भारत में फैल गयी ! विदेशी सत्ता का खूनी पंजा मोडने के लिए भारतीय जनता ने जबरदस्त संघर्ष किया ! उसने अपने खून से त्याग और बलिदान की अमर गाथा लिखी ! उस रक्तरंजित और गौरवशाली इतिहास के मंच से झाँसी की रानीलक्ष्मीबाई, नाना साहब पेशवा, राव साहब, बहादुरशाह जफर आदि के विदा हो जाने के बाद करीब एक साल बाद तक तात्या विद्रोहियों की कमान संभाले रहे !
पारोन के जंगल में तात्या टोपे के साथ विश्वासघात हुआ ! नरवर का राजा मानसिंह अंग्रेजों से मिल गया और उसकी गद्दारी के कारण तात्या ८ अप्रैल,१८५९ को सोते में पकड लिए गये ! रणबाँकुरे तात्या को कोई जागते हुए नहीं पकड सका ! विद्रोह और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लडने के आरोप में १५ अप्रैल,१८५९ को शिवपुरी में तात्या का कोर्ट मार्शल किया गया ! कोर्ट मार्शल के सब सदस्य अंग्रेज थे ! परिणाम जाहिर था, उन्हें मौत की सजा दी गयी ! शिवपुरी में उन्हें तीन दिन बंद रखा गया ! १८ अप्रैल को शाम पाँच बजे तात्या को अंग्रेज कंपनी की सुरक्षा में बाहर लाया गया और हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फाँसी पर लटका दिया गया ! कहते हैं तात्या फाँसी के चबूतरे पर दृढ कदमों से ऊपर चढे और फाँसी के फंदे में स्वयं अपना गला डाल दिया ! इस प्रकार तात्या मध्यप्रदेश की मिट्टी का अंग बन गये ! नक्शे पर शिवपुरी जैसी छोटी जगह 1859 में अचानक चर्चित हो उठी थी ! स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी, शौर्य और साहस के प्रतीक तात्याटोपे को मौत के सलीब पर लटका दिया गया !
अपना सब कुछ न्यौछावर कर दासता से जूझने वाले इस अप्रतिम योद्धा की कृतज्ञ शिवपुरी के वासियों ने नीम के पेड़ के नीचे पत्थरों से एक समाधी बनाई ! इसमें एक शिलालेख भी लगाया गया ! जिस पर लिखा है, ‘यहां न पर तानतीया टोपी ने पान सी पाया सन् 1859 में ! 1965 में जिला-प्रशासन ने इस समाधी के स्थान पर यहां एक नया स्मारक बनवाया गया ! जिसका शिलान्यास 18 अप्रैल 1968 को श्रीमती विजयाराजे सिंधिया ने किया ! तात्या की आदमकद प्रतिमा का अनावरण 28 जनवरी 1970 को मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल ने किया ! तब से यहां प्रतिवर्ष 18 अप्रैल को तात्या का बलिदान दिवस मनाये जाने की परम्परा कायम हुई ! दो दिन के इस आयोजन में कवि सम्मेलन और मुशायरे के कार्यक्रम होते हैं ! राष्ट्रीय अभिलेखागार भोपाल के सौजन्य से शिवपुरी में एक प्रदर्शनी लगायी जाती है, जिसमें प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों और पत्रों की प्रतिलिपियां दिखायी जाती हैं ! तात्या से संबंधित स्थलों को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जा चुका है ! इनमें जहां तात्या को कैद रखा गया और जिस भवन में फौजी अदालत लगायी गई प्रमुख हैं ! कैदखाने का मूल रूप नष्ट हो चुका है ! हर वर्ष इस कोठी में संग्रहालय स्थापित करके प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के हथियार और पत्र रखे जाने की मांग उठायी जाती है !
सुरवाया की गढ़ी :-
सुरवाया की गढ़ी, भारत के इतिहास को कई मायनों में देदीप्यमान करती है ! जैसा कि शिवपुरी के नाम से ही स्पष्ट है कि इस शहर का नाम हिंदूओं के भगवान शिव के नाम पर रखा गया है ! भारत के प्रचीन मंदिरों को शिवपुरी में देखा जा सकता है ! शहर के आसपास के आधुनिक विकास के साथ, पर्यटकों को यहां की सैर पर रोम जैसा महसूस होता है जब वह आधुनिक इमारतों से प्राचीन अवशेषों की ओर रूख करते है !
शिवपुरी से करीब 20 किमी. की दूरी पर झांसी रोड़ स्थित है जहां सुरवाया नमक एक छोटा सा कस्बा है, यहीं स्थित है सुरवाया की गढ़ी के ! इस गढ़ी की ख़ास बात यह है कि यह विशालकाय प्रस्तर खण्डों से बनी है, जिन्हें केवल एक के ऊपर एक रखकर यह गढ़ी निर्मित की गई है | पत्थरों को जोड़ने के लिए कहीं भी चूने या अन्य किसी मसाले का उपयोग नहीं किया गया है | इस छोटे से शहर में एक शांत झील, दुनिया के पुराने आकर्षण की मानो आज भी साक्षी दे रही है ! यहां एक प्रसिद्ध मंदिर स्थित है जो भगवान शिव को समर्पित है, यह मंदिर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है !
इस मंदिर की कला और स्थापत्य बेहद सुंदर है | मंदिर काफी प्राचीन है लेकिन आज भी इसकी सुन्दरता देखते ही बनती है ! यह गढ़ी वास्तव में दर्शनीय है ! गढ़ी में एक सभागार है जो पूरी तरह से पत्थरों से ही निर्मित है ! इस सभागार में होने वाली संगीत और नृत्य की गूंज आज भी यहां सुनाई देती है !
यह प्राचीन मठ है, इसे सरस्वती मंदिर माना जाता है तथा इसे एक बहुत बड़ा शिक्षा केंद्र माना जाता रहा है। किले की तरह विशाल प्राचीरों से घिरा प्रमुख मठ है, जिसमें रहने व अध्ययन के लिए बड़े-बड़े शिलाखंडों से निर्मित कक्ष हैं ! दो मंदिर हैं, जिनकी बाहरी दीवारों पर कई नायक और नायिकाओं की प्रतिमाएं हैं ! बावड़ी व स्नानागार है ! परिसर में एक बड़ी चक्की है जो शायद बैलों से चलाई जाती थी ! यह मठ उज्जैन के राजा अवंति वर्मा द्वारा बनवाया जाना बताया जाता है ! ऐसे ही मठ तेरही व रन्नौद में भी है ! इस गढ़ी की दीवारों पर अंकित नक्काशी और कारीगरी हिंदू स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना बयान करती है !
इसका निर्माण सहस्रवर्धन के गुरु पुरंदर ने शिव मत की शिक्षा देने के लिए 9वीं - 10वीं शताब्दी में कराया था ! भारत पर मुगलों के आक्रमण के समय इन्हें बचाने के लिए मिट्टी से ढंक दिया था ! 1916 में माधवराव प्रथम ने 16 हजार रुपए से जीर्णोद्धार कराया था ! 'सुरवाया' के निकट गढ़ी में पूर्वकाल में किसी धार्मिक सम्प्रदाय के साधुओं का निवास स्थान था ! इस गढ़ी के अन्तर्गत अनेक मध्यकाल के मन्दिर स्थित हैं, जिनमें शिखर का अभाव उल्लेखनीय है ! इनकी छतों में कहीं-कहीं अपूर्व मूर्तिकारी दिखाई पड़ती है !
नरवर का किला :-
शिवपुरी जिले में नरवर का प्राचीन किला काली सिंध के पूर्ब में है जो शिवपुरी से करीब ४१ कि॰मी॰ की दूरी पर है ! नरवर का किला मध्ययुगीन समय का है ! महाभारत में वर्णित यह नगर राजा नल की राजधानी बताया गया है ! 12वीं शताब्दी तक इस नगर को 'नलपुर' कहा जाता था ! यह किला लगभग 8 किलोमीटर के घेरे में बना हुआ है ! नरवर दुर्ग के पूर्वी अंचल में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर लंबवत् एक दूसरा पहाड़ है, जिसे हजीरा पहाड़ कहते है, क्योंकि इसके पश्चिमी भाग के शिखर पर दो कलात्मक हजीरा निर्मित है ! विन्घ्य श्रेणी पर नलपुर दुर्ग जिसके दक्षिण–पश्चिम एवं उत्तर में सटी सिंध एवं पूर्व से अहीर नदी मानो प्रकृति ने चारो ओर से इसे नदियों की करधनी पहनाकर भूमितल पर ही प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान कर दी है !
नरवर का किला बुंदेलखंड में पहले एवं मध्य भारत के ग्वालियर किले के बाद दूसरे नंबर का है ! नरवर दुर्ग नाग राजाओं की राजधानी था, जहां 9 नाग भीम नाग (57–82ई.), खुर्जर नाग (82–107ई.), वत्स नाग (107–132ई), स्कंधनाग (132–187), बृहस्पति नाग (187–202ई.), गणपति नाग (202–226ई.), व्याग्र नाग (226–252ई.), वसुनाग (252–277), देवनाग (277–300ई.) ने राज्य किया था ! समुद्र गुप्त ने नाग राजाओं के वैभव को नष्ट करने हेतु उन पर आक्रमण किया था तथा उन्हें श्रीहीन कर यत्र तत्र विखंडित कर दिया था, जिसका उल्लेख इलाहाबाद स्तंभ में है ! नरवर दुर्ग में अनेक हिंदू मंदिर निर्मित है ! 12वीं शताब्दी के बाद नरवर पर क्रमश: कछवाहा, परिहार और तोमर राजपूतों का अधिकार रहा, जिसके बाद 16वीं शताब्दी में मुग़लों ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया ! नरवर परवर्ती काल में मालवा के सुल्तानों के कब्जे में रहा और 18वीं शताब्दी में मराठों के आधिपत्य में चला गया ! 19वीं शताब्दी के आरंभ में मराठा सरदार सिंधिया ने इसे जीत लिया ! परकोटे से घिरे इस नगर के बाहर तोमर सरदारों के स्मारक स्तंभ खड़े हैं !
किले के भीतर की दीवारों को उज्ज्वल रंग और कांच के मोती के साथ सजाया गया है ! किले में राजा नल की कुल देवी पसर देवी का मंदिर, आठ कुआं-नौ बावड़ी जिस पर 1600 महिलाएं एक साथ पानी भरा करती थीं ! इसके अलावा ताल कटोरा, चंदनखेत महल, कचहरी महल, चर्च सहित कई दर्शनीय स्थल है !। मानसिंह तोमर (1486-1516 ई.) और मृगनयनी की प्रसिद्ध प्रेम कथा से नरवर का सम्बन्ध बताया जाता है ! राजस्थान की प्रसिद्ध प्रेम कथा ढोला-मारु का नायक ढोला, नरवर नरेश का पुत्र बताया गया !
छत्री
छतरी अलंकृत संगमरमर की कारीगरी का उत्कृष्ट नमूना है ! छतरी शिवपुरी में प्रसिद्ध स्मारकों में से एक है ! माधवराव सिंधिया प्रथम ने अपनी स्वर्गवासी मां की स्मृति में यह छत्री शिवपुरी में बनवाई ! सख्या राजे सिंधिया की स्मृति में समाधि स्थल के ठीक सामने तालाब और उसके बाद सामने ही माधव राव सिंधिया का समाधि स्थल बना है ! इनके बुर्ज मुग़ल और राजपूत की मिश्रित शैली में निर्मित हैं ! इन समाधि स्थलों में संगमरमर और रंगीन पत्थरों की कारीगरी उत्कृष्ट एवं अद्वितीय है ! इसी तालाब के एक ओर राम ,सीता और लक्ष्मण का मंदिर और मंदिर के बाहर हनुमान जी खड़े हैं ! इस मंदिर के ठीक सामने तालाब के उस पार राधा -कृष्ण का मंदिर है ! संगमरमर से बनी इस छत्री का निर्माण हिंदू - इस्लामी स्थापत्य फ्यूजन शैली में किया गया है, इसमें कहीं कहीं राजपूत और मुगल मंडप शैली भी दिखाई देती है ! इसे शिवपुरी का ताजमहल भी कहा जाता है | अगर सच कहें तो इसके स्थापत्य व बेजोड़ कारीगरी के सामने ताजमहल भी फीका लगता है |
भदैयाकुंड
शिवपुरी स्थित भदैया कुंड एक प्राकृतिक झरने के साथ एक सुंदर क्षेत्र है ! पिकनिक क्षेत्र के रूप में भदैयाकुंड अलग है ! भदैया कुंड का पानी चिकित्सकीय शक्तियों के लिए माना जाता है ! भदैयाकुंड में वोट क्लब स्थित है ! बरसात के मौसम के दौरान भदैयाकुंड का झरना पूर्ण प्रवाह में चलता है !
इस झरनेके नीचे और कुंड के पास एक गौ मुख है जहां से पानी निकलता है ! शिवजी का मंदिर आस्था का केंद्र है, आसपास से काफी लोग यहां पहुंचते हैं ! कभी यहाँ सोडावाटर फेक्टरी लगाईं गयी थी ! इस सोडावाटर फैक्टरी से भारत ही नहीं दूसरे देशों में भी पेट की तकलीफ दूर करने के लिहाज से पानी भेजा जाता था ! इस प्राकृतिक झरने के पानी में खास गुण होने के कारण सन् 1915 में स्व. माधवराव सिंधिया (प्रथम) ने यहां पर सोडा वाटर फैक्टरी डाली थी !
माधव नेशनल पार्क
शिवपुरी में आगरा -बम्बई और झाँसी -शिवपुरी के मध्य माधव नेशनल पार्क स्थित है ! इसका क्षेत्रफल 157.58 वर्ग किलोमीटर है ! पार्क पूरे वर्ष सैलानियों के लिए खुला रहता है ! चिंकारा, भारतीय चिकारे और चीतल की बड़ी संख्या में हैं .नील गाय, सांभर, चौसिंगा , कृष्णमृग, आलस भालू, तेंदुए और आम लंगूर विशाल पार्क के अन्य निवासी हैं !
सेसई स्थित 9-10वीं शताब्दी का सूर्य मंदिर
जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर एबी रोड पर ग्राम सेसई में श्री शांतिनाथ नौगजा अतिशय क्षेत्र के पास स्थित 9-10वीं शताब्दी के मध्य प्रतिहार शैली में निर्मित हुआ वास्तुकला की अद्भुत नजीर सूर्य मंदिर ! शिवपुरी के सेसई में बना सूर्य मंदिर भी नायाब वास्तुकला की श्रेष्ठकृति है, जिसमें स्तंभ, अर्धस्तम्भ, लघु गर्भ ग्रह सहित बेहतर कारीगरी की कई कलाकृतियां हैं, जो पर्यटकों को देखते ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं !
इस मंदिर के मुख्य द्वार के ललाट पर सूर्य की प्रतिमा अंकित है, जिसमें सूर्य सप्तअश्व की बाग पकड़े हुए दिखाए गए हैं ! यही नहीं उनके पैरों में उपानह भी है और इसी आधार पर इसे सूर्य मंदिर माना गया है, जिसका उल्लेख यहां लगे बोर्ड पर भी अंकित किया गया है !
जार्ज कैसल (बांकड़े की कोठी)
प्रिंस ऑफ वेल्स (जार्ज पंचम) वर्ष 1910 में ग्वालियर आए थे और वहां से उन्हें शिवपुरी में शेर का शिकार करने के लिए आना था ! चूंकि शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में ही शिकारगाह बने हुए थे, इसलिए जॉर्ज पंचम के रुकने एवं विश्राम के लिए नेशनल पार्क में ही एक कोठी का निर्माण कराया गया ! मात्र एक दिन रुकने के लिए बनाई गई यह कोठी तो आकर्षक स्वरूप में तैयार की गई, लेकिन जॉर्ज पंचम का शिवपुरी दौरा रद्द हो गया था और वे यहां नहीं आए थे ! इंग्लिश शैली में बनाई गई इस कोठी का निर्माण सरदार बांकड़े ने करवाया था ! ये किला शिवपुरी नेशनल पार्क के सबसे उंचे स्थान पर बना हुआ है !
करीब 98 वर्ष पूर्व तैयार की गई जार्ज कैसल कोठी आज भी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है ! जो भी सैलानी शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में भ्रमण के लिए पहुंचता है तो वह इस कोठी के आकर्षण में बंधे बिना नहीं रह पात ! इस किले के पास जाधव सागर, संख्या सागर, माधव सागर नाम की तीन झीलें बहती हैं ! इस किले की छत ये तीनों झीलों को एक साथ नजर आती हैं ! माधव नेशनल पार्क में हर साल करीब 15 से 20 हजार पर्यटक आते हैं ! इनमें से अधिकांश जार्ज कैसल को देखने के लिए पहुंचते हैं !
बाणगंगा
बाणगंगा, शिवपुरी में स्थित एक प्राचीन मंदिर है ! इस शहर का नाम भी भगवान शिव के नाम पर ही रखा गया है जिसे शहर के इतिहास और धर्म से खचाखच भरे चौक द्वारा सुझावा गया था ! चौक की हर सड़क, पर्यटकों को 7 वीं सदी के एक मंदिर की ओर ले जाती है जहां भगवान की मूर्ति स्थापित होती है !
बाणगंगा, हिन्दूओं के लिए एक धार्मिक और पवित्र भूमि है ! बाणगंगा एक प्राचीन मंदिर है और माना जाता है कि पूर्वकाल में यहां 52 पवित्र कुंड बिद्यमान थे | माना जाता है कि शिवपुरी में जहां महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास के समय अर्जुन ने अपने तीर से जल की धारा निकाली थी, आज वही स्थान बाणगंगा नाम से जाना जाता है यहां के पानी से नहाने से सारे चर्मरोग दूर होते हैं ! मकर संक्रांति के दिन सुबह-सुबह नहाने का विशेष महत्व है इसी क्रम में बाणगंगा पर सभी श्रद्धालु नहाते है और वहां पर एक मेला भी लगता है जो कि सदियों से चला आ रहा है !
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पर्यटन
Good Description......well done
जवाब देंहटाएंShivpuri ke paytak stale
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