विवेक अंकुश
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कभी भूत की स्मृतियाँ
कभी भविष्य के मनोरथ
इनमें खो जाता है वर्तमान
वर्तमान जो है विद्यमान
जो बीत गया कल, कभी नहीं आएगा
उसकी यादों मैं आज भी खो जाएगा
जो अभी है, होगा अगले क्षण नहीं
प्रवाहमान परिवर्तित हर कण वहीं
यही तो है ईशतत्व की माया
जिसमें सारा जगत समाया
मन जो चला गया उसके लिए रोता है,
जो आया नहीं उसके स्वप्न संजोता
है,
परन्तु वर्तमान को गढ़ता नहीं, सोता है
सत्कर्मों की फसल काट दुष्कर्म
बोता है
नश्वर में छुपे अनश्वर को जान नहीं
पाता है,
देह मरती है, मन कहाँ मर पाता है |
वासनाओं में जकड़ा मृत देह के साथ,
दूसरी देह की रचना में जुट जाता
है ||
मन तो है मतवाले हाथी के समान,
रास आती धूलि, कैसा गंगा स्नान |
संत वचन, संत संग निष्प्रभावी प्रभो,
आप ही दें विवेक अंकुश का वरदान
||
प्रभो इस मन को सुमन बनाओ,
मेरे द्वार आओ |
विवेक अंकुश से सधे मन मतंग पर,
सिंहासन सजाओ ||
मुझे नहीं परवाह मुक्ति की
भक्ति का वरदान दीजिये |
एक नाथ ओ नामदेव सा,
सबमें अपना भान दीजिये ||
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चिकटे जी काव्य रूपांतर
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