कुंठा रहित ह्रदय ही बैकुंठ |
0
टिप्पणियाँ
चूर चूर अभिमान अरे ओ खंड
खंड पाखण्ड यहाँ !
इन दोनों को गर अपनाया तो
हमसा उद्दंड कहाँ !!
अड़चन अवसर लेकर आतीं, उद्यम में उत्कर्ष रहे !
जो आलस में पड़े रहे तो, अवसर में अपकर्ष गहे !!
श्रम, तत्परता ओ सक्षमता, जागृत बुद्धि कमल खिले !
भक्ति प्रेमरस सरस हुए तो, सर्वेश्वर प्रभु आन मिले !!
मौखिक ही हम कहते फिरते
प्रभु बसते मन में मेरे !
उन जैसे कोमल करुणामय, हो पाते क्या कभी अरे !!
आनंद भुवन बन जा मन मेरे, सुख दुःख नहीं सतायेंगे !
सच्ची भक्ति बसी उर में तो, भव सागर तर जायेंगे !!
सदा सर्वदा प्रभु मय रहता, उसकी चिंता प्रभु करते |
अनासक्त जो भक्त जगत में, उसका ध्यान प्रभु रखते !!
मिट जाता जब अहम् ह्रदय से, कुंठा
जाती भाग
ह्रदय कमल बैकुंठ सरसता, विष्णू
जाते जाग |
वैकुण्ठ जहां होती नहिं कुंठा, मन में आन समाये
विष्णु प्रिया भक्ति मिले, तो नारायण
भी आये |
Tags :
चिकटे जी काव्य रूपांतर
एक टिप्पणी भेजें