मोदी जी द्वारा किये गए वादे “जुमला” नहीं साबित होंगे -उपानंद ब्रह्मचारी


प्रधान मंत्री मोदी ने महज चुनाव नहीं भारत का दिल जीता है, अब वे पूर्ण आत्मविश्वास के साथ अपने चुनावी वायदों को ही नहीं अपने उन्नत भारत के संकल्प को भी पूर्ण करने हेतु सर उठाकर द्रुतगति से आगे बढ़ सकते हैं | अगर आने वाले समय में वे सचमुच इस दिशा में बढे तो 201 9 की सफलता को भला कौन रोक पायेगा । 

उत्तर प्रदेश में भाजपा की भारी चुनावी सफलता का मूल वस्तुतः हिंदुत्व ही है। 

पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के परिणामों ने 11 मार्च को 'भगवा शनिवार' बना दिया । दो राज्यों उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में तो भाजपा ने इतिहास ही रच दिया । पंजाब में अवश्य भाजपा और उसके सहयोगी शिरोमणि अकाली दल को पराजय का मुंह देखना पड़ा, वहां अब कांग्रेस सरकार बनायेगी। गोवा और मणिपुर में भी भाजपा कड़ी टक्कर में दूसरे स्थान पर रही, किन्तु कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होते हुए भी बहुमत से दूर रही, नतीजतन वहां भी अन्य दलों के सहयोग से भाजपा की ही सरकार बनने की संभावना है । 

कई विश्लेषक इन परिणामों को 201 9 के लोकसभा चुनाव के पूर्व सेमीफाइनल के रूप में देख रहे थे, जिनमें भाजपा ने प्रतिष्ठा पूर्ण विजयश्री प्राप्त की है | यह अलग बात है कि अभी 2017 के अंत में मोदी जी के गृह प्रांत गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव तथा 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों की बानगी सामने आना अभी शेष है ।
किन्तु वर्तमान में तो उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की भारी जीत और मणिपुर व गोवा की राजनीतिक विजय ने निश्चित रूप से राज्य सभा में बहुमत पाने का अवसर भाजपा को दे दिया है, जो उसकी शक्ति को और बढ़ाएगा । इसके परिणामस्वरूप, जून-जुलाई 2017 में भाजपा अपने ही दम पर राष्ट्रपति पद पर भी अपने किसी ध्येयनिष्ठ तपःपूत को विजई बनाने में समर्थ हो सकेगी । 

यदि गोवा और मणिपुर में भी भाजपा सरकार बनती है, तो भारत के 15 राज्यों में भगवा शान से लहराएगा, क्योंकि इन राज्यों में भाजपा की या तो अपने दम पर या सहयोगियों के साथ सरकार होगी । दूसरे शब्दों में कहें तो भारत की कुल जनसंख्या के 53.93% और कुल क्षेत्रफल के 63.6% क्षेत्र में अब भगवा नियंत्रण होगा । 

यूपी में भाजपा और हिंदू वोट बैंक की अप्रत्याशित सफलता 

उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत बड़ी भी है और अप्रत्याशित भी। कुल 403 विधानसभा सीटों में से 325 सीटों पर भाजपा जीत सकती है, यह तो हरएक के लिए अकल्पनीय था । सभी भविष्यवाणियों, एग्जिट पोल के अनुमानों को धता बताते हुए, यह अभूतपूर्व भाजपा लहर प्रगट हुई, जिसे अपनी त्वरित प्रतिक्रिया में उत्तराखंड के निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने साफगोई से मोदी मेग्नेट करार दिया । 

मायावती की बसपा ने तो मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति की इन्तहा कर दी थी | उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को धता बताते हुए साम्प्रदायिक आधार पर मुस्लिमों को 100 से अधिक सीटें देने की सार्वजनिक घोषणा की | समाजवादी पार्टी भी तुष्टीकरण की राजनीति में बसपा से पीछे नहीं रही | सपा-बसपा द्वारा अपनाई गई जातिवादी राजनीति, कैराना जैसी असुरक्षा की समस्या और सपा में मचे पिता और पुत्र के पारिवारिक घमासान ने सामाजिक जीवन में मुसलमानों की आक्रामकता को बढाया | लेकिन इसके कारण जो हिंदुत्व की प्रबल शक्ति का जागरण हुआ, उसने कांग्रेस के हाथों पक्षाघात की शिकार हुई समाजवादी पार्टी की साईकिल के पुर्जे पुर्जे अलग कर दिए, और बहुजन समाज पार्टी के सर्कस के तम्बू से उनका हाथी भागकर वनवासी हो गया । परिणाम स्वरुप चमत्कार हो गया और उत्तर प्रदेश के इस कीचड़ में एक साथ 325 कमल खिल उठे । 

उत्तर प्रदेश में भाजपा के चुनाव प्रबंधन, पार्टी कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम और समर्थकों द्वारा बनाये गए माहौल की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए भी, यह मानना पडेगा कि तथाकथित सेक्यूलर दलों द्वारा की जा रही मुस्लिम वोट बैंक राजनीति के प्रतिशोध के रूप में भारत में हिंदू भी एकजुट होने लगा है, जिसे भविष्य में कोई राजनैतिक दल नजरअंदाज नहीं कर सकेगा । उत्तर प्रदेश ने अब यह साबित कर दिया है। 

छद्म धर्मनिरपेक्ष दलों ने मुस्लिम वोटों को ध्रुवीकरण करने की कोशिश की। अब, समय आ गया है कि जब भाजपा को अपने हिंदू मतदाताओं की सार संभाल कुछ अधिक सावधान होकर करनी चाहिए । 

यहां यह उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश चुनाव में भले ही भाजपा ने कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा, किन्तु उसके बाद भी पार्टी के पक्ष में मुस्लिम वोटों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई । यह वोट मुस्लिम पुरुषों के थे, अथवा महिलाओं के, इसका वास्तविक विश्लेषण तो धीरे धीरे होगा और उसके दूरगामी परिणाम भी होंगे । 

नोटबंदी, विकास और हिंदुत्व के मुद्दे 

कार्यान्वयन की प्रक्रिया विवादास्पद हो सकती है, किन्तु प्रधानमंत्री मोदी की नीति और नीयत संदेह से परे है, उनके बुद्धि कौशल ने उन्हें विश्व मान्यता दिलाई है । जबकि दूसरी ओर अधिकांश विपक्षी दलों ने विरोध की जिस प्रकार की दोषपूर्ण राजनीति की, वह उनके खिलाफ ही बुमेरांग होकर उनको ही घातक सिद्ध हुई । 

बीएमसी (बृहन्मुंबई नगर निगम) के परिणाम, ओडिशा में पंचायत चुनाव के परिणाम और अब पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के परिणाम साबित करते हैं जनमत उनके साथ है और स्पष्ट रूप से विरोधी तो कतई नहीं है। मोदी की कई नीतियों ने स्पष्ट तौर पर उन्हें जनप्रिय बनाया है, जैसे कि गैस-सिलेंडर सब्सिडी, पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक या ट्रिपल तलाक के लिए पुरजोर प्रयास । 

यह ठीक है कि भारत की सत्ताधारी पार्टी के रूप में, भाजपा को “सबका साथ सबका विकास” की नीति पर काम करना चाहिए, अपनी आर्थिक नीतियों और विकास कार्यों को प्राथमिकता देना चाहिए, लेकिन साथ साथ अपने मूल हिंदुत्व के मुद्दों को भी दरकिनार नहीं करना चाहिए, क्योंकि उसकी वास्तविक शक्ति बहीं है । 

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, गौवध पर पूर्ण प्रतिबंध, कैराना के हिन्दुओं की ससम्मान और पूर्ण सुरक्षा के साथ वापसी, उत्तर प्रदेश से जिहादी तत्वों का समूल विनाश, महिलाओं की सुरक्षा और यूपी को दंगा मुक्त राज्य बनाना, आदि ऐसे मुद्दे हैं, जिन्होंने हिंदुओं को भाजपा के लिए वोट करने हेतु प्रेरित किया । 

भाजपा की जीवनी शक्ति - मोदी का करिश्माई व्यक्तित्व और हिंदुत्व 

इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोदी मंत्र ने उत्तर प्रदेश में फिर से अपना चमत्कार दिखाया है। उत्तर प्रदेश चुनाव की अहमियत को समझते हुए प्रधान मंत्री मोदी ने भी इस राज्य में अधिकतम चुनाव प्रचार किया। लेकिन, वे अन्य राज्यों में भी गये । वह चुनाव अभियान के लिए गोवा के पणजी गए, पंजाब के जालंधर और लुधियाना में भी उनकी रैलियां हुईं । लेकिन वहां के परिणाम उतने अच्छे नहीं आये, पंजाब में तो करारी हार हुई । 

अतः इस मूल बात को समझना चाहिए कि मोदी का चेहरा भी वहां काम करता है जहां हिंदुत्व का आधार मजबूत हो । हिंदुत्व की लहर ही भाजपा की वास्तविक शक्ति है, जिसमें मोदी का व्यक्तित्व और अधिक चार चाँद लगा देता है और परिणाम विजय के रूप में सामने आता है ।
हिंदुत्व की लहर पर सवार होकर ही मोदी विकास को गति देकर भारत को महाशक्ति बनाने के अपने संकल्प व स्वप्न को साकार कर सकते हैं । सीधे शब्दों में कहें तो मोदी हिंदुत्व के पोस्टर बॉय हैं, वे महत्वपूर्ण भी हैं और प्रासंगिक भी। 

हिंदुत्व और विकास भाजपा की राजनीति में एक दूसरे के पूरक हैं, किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि हिंदुत्व भाजपा की जीवन रेखा है। 

2017 में यूपी के परिणाम पर आत्ममुग्धता और 2019 के आम चुनाव में संभावित एंटी इनकम्बेंसी - 

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सफलता कड़ी मेहनत का परिणाम है, किन्तु अति आत्मविश्वास खतरनाक है | 2019 के आम चुनाव में इनक्म्बेंसी फेक्टर भी नहीं भूलना चाहिए । क्योंकि भारत की राजनीति में यह एक महत्वपूर्ण कारक रहता है, बड़ी भूमिका निभाता है | 

उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव हों चाहे गोवा में लक्ष्मीकांत पार्सेकर, दोनों ही आंशिक या अधिक सत्ता विरोधी लहर के शिकार हुए हैं। 

उत्तर प्रदेश में पिता - पुत्र संघर्ष और गोवा में आरएसएस का विभाजन, अपने अपने राज्यों में अखिलेश और पार्सेकर की हार के लिए अन्य प्रमुख कारक हैं। 

चुनावी वादों से मुकरने से मतदाता स्वयं को छला हुआ महसूस करते हैं, उनकी निराशा उन्हें विरोधी भी बना सकती है, अथवा मतदान से उदासीन तो कर ही सकती है | 

वादे किये हैं तो निभाईये जरूर 

कुछ दिनों में ही भाजपा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में नई सरकार बनाने जा रही है। लेकिन, उन्हें अपने चुनावी वादे और अपने मूल तत्व हिंदुत्व को नहीं भूलना चाहिए। 

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में लगभग 3/4 बहुमत प्राप्त करने के बाद, वे अब अपने वादे पूरे करने के लिए कोई बहाना नहीं बना सकते, अपनी कठिनाइयों को बताकर पल्ला नहीं झाड सकते । 

अगर 2019 से पहले अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण नहीं किया गया या उत्तर प्रदेश में गौ-वध पर प्रतिबन्ध नहीं लगा, महिलाओं की अस्मिता पर होने वाले प्रहार नहीं रुके तो तो लोग 2019 के आम चुनाव में निश्चित रूप से भाजपा को नकार देंगे। यहाँ तक कि यूपी के लोग भी भविष्य में भाजपा को दिया गया अपना पूर्ण समर्थन वापस ले लेंगे। अब, उन्हें यह साबित करना होगा कि ये वादे कोई 'जुमला' नहीं हैं और इसके लिए उनके पास ज्यादा समय नहीं है, कार्य अविलम्ब धरातल पर दिखना चाहिए । 

साभार आधार : http://wp.me/pCXJT-7E3

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