पाकिस्तान का विघटन दुनिया में शांति की गारंटी - मशाल खान टक्कर के साक्षात्कार का अंतिम भाग
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प्रश्न: वर्तमान में पाकिस्तानी सेना द्वारा दमन का क्या तरीका अपनाया जा रहा है?
उत्तर: जैसा कि मैंने पहले ही कहा था कि पाकिस्तान पंजाब है और पंजाब पाकिस्तान है। पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री चौधरी निसार अली के मुताबिक, वहां 26 भूमिगत संगठन हैं। पाकिस्तान पख्तूनों और बलूचों को मारने और अपहरण करने के लिए इन भूमिगत संगठनों का उपयोग करता है । लापता व्यक्तियों के गोलियों से छलनी शव केवल पख्तून और बलूच क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
पाकिस्तान इस उद्देश्य के लिए, सेना और आईएसआई द्वारा प्रायोजित आतंकवादी, उग्रवादी, कट्टरपंथी और उग्रवादी संगठनों का उपयोग करता है । पख्तून और हर समय बलूच आतंक के साए में जी रहे हैं। कोई भी सेना के खिलाफ कुछ भी नहीं कह सकता, क्योंकि हर बात सेना के नियंत्रण में है। पाकिस्तान के असली मालिक सेना और सैन्य सिविल संस्थान हैं, जो कश्मीर और डूरंड रेखा के नाम पर लोगों का खून चूस रहे हैं ।
प्रश्न: आप किस प्रकार के दबाब का सामना कर रहे हैं, विशेष रूप से भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा बलूच नेतृत्व के समर्थन के बाद?
उत्तर: जैसा मैंने उल्लेख किया है, हम पख्तून पहले से ही जबरदस्त दबाव में हैं। इसलिए भारतीय प्रधानमंत्री मोदी जी को पख्तूनों के लिए भी वही रुख अख्तियार करना चाहिए, जो उन्होंने बलूचों के लिए लिया है ।
प्रश्न: पख्तून नेतृत्व और पाकिस्तान सरकार के बीच किस प्रकार की वार्ता चल रही है ?
पख्तूनों के तथाकथित राष्ट्रवादी दल, पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के हाथों में खेल रहे हैं। केवल जनता को चुप रखने के लिए, वे कभी कभी पाकिस्तान में पख्तूनों के अधिकारों के बारे में बात करते हैं। लेकिन सचाई यह है कि उनके पीछे पाकिस्तान का ही समर्थन होता है, ताकि प्रचारित किया जा सके कि पख्तून पाकिस्तान का एक अभिन्न हिस्सा हैं।
वे सिर्फ अपने निहित स्वार्थों के लिए पख्तून को बेच रहे हैं। ये तथाकथित पख्तून राष्ट्रवादी पाकिस्तान को पंजाबियों से भी अधिक प्यार करते हैं । लेकिन भ्रष्टाचार और पाकिस्तान के समर्थन की वजह से, अब उनका कोई जनाधार नहीं है, विशेष रूप से युवाओं में । स्वतंत्रता प्रेमी पख्तूनों को उनमें और पंजाबियों में कोई फर्क नहीं लग रहा है।
दशकों से पख्तूनों को इन तथाकथित राष्ट्रवादी नेताओं ने धोखा दिया है।
अब इन तथाकथित पख्तून राष्ट्रवादी नेताओं की भूमिका जग जाहिर हो चुकी है और उनकी जनता द्वारा कटु आलोचना की जा रही है ।
प्रश्न: क्या आप पाकिस्तान द्वारा बारबार लगाए जाने वाले इस आरोप से सहमत हैं कि भारतीय एजेंसियां पख्तून इलाके में उपद्रव भड़का रही हैं?
उत्तर: पाकिस्तान के पास अपने लोगों को देने के लिए आतंकवाद को छोड़कर कुछ भी नहीं है। इसलिए भारत की खिलाफत ही उनका तुरुप का इक्का है ! पिछले 70 साल से पाकिस्तान के लिए भारत दुश्मन नंबर 1 है। और अब जबकि पाकिस्तान की अफगानिस्तान नीति पूरी तरह फ़ैल हो चुकी है, तो अब भारत के साथ-साथ अफगानिस्तान भी उसका दुश्मन है।
इसलिए, पाकिस्तानी सेना, आईएसआई और सरकार द्वारा लगाए जाने वाले इस प्रकार के आरोप कोरी बयानबाजी हैं, ताकि अपनी दैनंदिन समस्याओं से जूझते पाकिस्तान के लोगों का ध्यान बंटा रहे । पाकिस्तान इस प्रकार की बयानबाजी इसलिए भी करता है ताकि भारतीय एजेंट के रूप में दोषी ठहराकर पख्तूनों को नष्ट कर सके ।
प्रश्न: पाकिस्तान की वास्तविकता के बारे में आप क्या सोचते हैं?
उत्तर: पाकिस्तान, एक नकली नास्तिक, ब्रिटिश एजेंट, नैतिक रूप से भ्रष्ट और बीमार व्यक्ति मोहम्मद अली जिन्ना के नकली “द्विराष्ट्रवाद” के सिद्धांत पर गठित एक नकली राज्य है ।
यह नकली राज्य पाकिस्तान, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का प्रमुख केंद्र है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए स्थायी सिरदर्द है। पारस्परिक हिंसा का थिएटर और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक चिरस्थायी समस्या है।
विगत वर्षों में पाकिस्तान लगातार असफल होते राज्य के रूप में उभरा है। जहाँ कोई कानून-व्यवस्था नहीं है तथा जिसमें ना तो विभिन्न प्रतिस्पर्धा सामाजिक बलों को नियंत्रित करने की सामर्थ्य है और ना ही बिना किसी बाहरी समर्थन के अपना आर्थिक ढांचा बचाने की कुब्बत । जिसे केवल एक ढहते किले की रखवाली करने वाली सेना कहा जा सकता है ।
प्रश्न: पाकिस्तान अधिकृत भारत के जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में पाकिस्तान की भूमिका के बारे में आपका क्या अभिमत है ?
उत्तर: पाकिस्तान 1947 के बाद से ही कश्मीर में एक गंदी भूमिका निभा रहा है, जब उसने कश्मीर में घुसपैठ शुरू की । तब से अब तक यह लगातार जारी है। पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकवादियों, उग्रवादियों, कट्टरपंथी और अतिवादी तत्वों को प्रशिक्षित किया जा रहा है और पाकिस्तानी सेना व आईएसआई द्वारा उनका वित्त पोषण किया जा रहा है ! छद्म युद्ध के लिए इन तत्वों का उपयोग न केवल भारत प्रशासित कश्मीर में बल्कि अफगानिस्तान में भी किया जा रहा है । जो कोई भी व्यक्ति या संगठन, पाक अधिकृत कश्मीर में या भारत प्रशासित कश्मीर में, पाकिस्तान के खिलाफ कुछ कहता है, वह इन छद्म पाकिस्तानियों का शिकार बनता है । इन लोगों के प्रशिक्षण शिविरों को पाकिस्तान में हर जगह देखा जा सकता है।
प्रश्न: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले कई मानवाधिकार संगठन समूह हैं । जब पाकिस्तान में पख्तूनों के मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है, तब इन संगठनों को लेकर आपका क्या अनुभव है ?
उत्तर: दुर्भाग्य से कुछ देश ऐसे हैं, जिनके मन में पख्तून एकता को लेकर भय है । आतंकवादियों के खिलाफ लड़ने के नाम पर पाकिस्तान, केवल आदिवासी क्षेत्र में निर्दोष लोगों पर बमबारी करता रहा है। उन्होंने अभी तक एफ -16 से 6000 हवाई हमले किये हैं, और 12000 बम गिराये हैं, पंजाब सेना के लगभग डेढ़ लाख जवान तोपखाने और हेलीकाप्टर के साथ इस अभियान में सक्रिय हैं, अब तक बच्चों और महिलाओं सहित 80000 लोग मारे गए हैं, आदिवासी क्षेत्र पूरी तरह से नष्ट हो गया है, लेकिन सारे मानवाधिकार संगठन चुप हैं। बेशक, यह बहुत दुख की बात है।
प्रश्न: क्या आपने संयुक्त राष्ट्र संघ या संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) से संपर्क किया है? उन एजेंसियों की प्रतिक्रिया क्या है?
उत्तर: मैंने 5 साल पहले उन्हें कुछ करने के लिए लिखा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
प्रश्न: पाकिस्तान के पख्तून भारत सरकार से क्या उम्मीद करते हैं?
उत्तर: हमें पाकिस्तान से छुटकारा पाने के लिए और हमारी मातृभूमि अफगानिस्तान से जुड़ने के लिए मदद चाहिए ।
मैं आपको एक बात बताना चाहता हूँ, हम पख्तून सबसे खराब दुश्मन हैं लेकिन साथ ही सबसे अच्छे दोस्त भी । इस समय हम सिर्फ अच्छे दोस्त हैं, हम साथ मिलकर अपने सबसे बड़े दुश्मन पाकिस्तान को पराजित कर सकते हैं, पाकिस्तान बिखर सकता है । और यह केवल पख्तूनों के हित में ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण शांतिप्रिय विश्व समुदाय भर के हित में होगा। पाकिस्तान दुनिया के नक्शे पर कैंसर की तरह है। पाकिस्तान का विघटन दुनिया में शांति की गारंटी है।
प्रश्न: अफगानों के लिए और विशेष रूप से पाकिस्तान में रहने वाले पख्तूनों के लिए आपका क्या संदेश है ?
उत्तर: मैं स्वतंत्र अफगानिस्तान में अथवा पाकिस्तान अधिकृत अफगानिस्तान पख्तूनख्वा (डूरंड रेखा से सिंधु नदी तक) में रह रहे सभी अफगानियों से कहना चाहता हूँ कि पाकिस्तान के कारण 1978 के बाद से हम युद्ध झेल रहे हैं । इसलिए हम सभी अफगान (सेना और नागरिक) को मिलकर, हमारे अंतरराष्ट्रीय मित्रों की मदद के साथ, पाकिस्तान के खिलाफ और एक अंतिम युद्ध लड़ने के लिए तत्पर होना चाहिए, डूरंड रेखा से सिंधु नदी तक का क्षेत्र हमें पाकिस्तान से वापस लेना चाहिए। अफगानिस्तान के पूर्व शासक दोस्त मोहम्मद खान ने भी अफगान इलाके वापस देने के लिए ब्रिटिश साम्राज्य से याचना की थी, लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं मिला । अब केवल और केवल हम अफगान ही पाकिस्तान से अपने क्षेत्र वापस ले सकते हैं, ठीक बैसे ही जैसे बंगालियों ने 1971 में किया था । उस समय भी पश्चिमी देशों ने इंद्रा गांधी के खिलाफ न जाने क्या क्या अकथ्य शब्दों का प्रयोग किया था, क्योंकि वे पाकिस्तान को बिखरता नहीं देखना चाहते । लेकिन फिर भी यह हुआ और पाकिस्तान की तुलना में आधे से अधिक क्षेत्रफल का बांग्लादेश बन गया। हम अफगान को समझना चाहिए कि पाकिस्तान की शत्रुतापूर्ण नीति के कारण ही पिछले 38 वर्षों से अफगानिस्तान खून में नहा रहा है, यह रक्तपात तब तक जारी रहेगा, जब तक कि पाकिस्तान विघटित होकर इतिहास के कूड़ेदान में नहीं चला जाता ।
पाकिस्तान अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के अपने गंदे खेल को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है।
पाकिस्तान – पख्तून और बलूच के लिए एक बुरा सपना
पख्तूनों की समस्याओं को समझाने के लिए, मैं थोडा पख्तूनों का इतिहास बताना चाहता हूँ । 19 वीं सदी में, जब अंग्रेजों ने ब्रिटिश भारत में अपनी स्थिति पुनः संभाल ली, तब उन्हें लगा कि विदेशी आक्रमणकारियों से भारत की सीमाओं को सुरक्षित किया जाना चाहिए ।
भारत की भौगोलिक स्थिति यह है कि वह तीन तरफ तो समुद्र से घिरा हुआ है । ब्रिटेन चूंकि स्वयं एक बड़ी नौसैनिक शक्ति था, अतः वह समुद्र की ओर से भारत की रक्षा में स्वयं समर्थ था । लेकिन इतिहास में जितने भी आक्रमण भारत पर हुए, उनमें आक्रमणकारी उत्तर पश्चिम में अफगानिस्तान होकर ही आये, जैसे कि खैबर दर्रे, कुर्रम दर्रे या गुरनान से । इसलिए ब्रिटिश ने रूसी शक्तियों को भारत पर आक्रमण से रोकने के लिए, इन रास्तों पर नियंत्रण करने का फैसला किया ।
लेकिन विडंबना ये थी कि इन सभी दर्रों के मूल निवासी पख्तून थे, जो किसी कीमत पर अपनी भूमि पर किसी भी आक्रमणकारी को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे ।
ब्रिटिश और अफगानिस्तान में दो युद्ध हुए, पहला 1839 में तथा दूसरा 1878 में, जो अफगानिस्तान और ब्रिटिश दोनों के लिए नुकसानदेह साबित हुआ ।
जब अंग्रेजों को लगा कि युद्ध से समस्या का समाधान संभव नहीं है तो उन्होंने 1893 में उन्होंने अपना प्रसिद्ध फार्मूला अपनाया 'बांटो और राज करो”, अफगानिस्तान को हड़पने के घृणित उद्देश्य की पूर्ति के लिए अंग्रजों ने पख्तूनों की शक्ति को विभाजित किया ।
जब दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश को एहसास हुआ कि वे भारत जैसे बड़े देश पर काबिज रहने में सक्षम नहीं हैं, तब भी वे भारत छोड़ने से पहले अपनी नीति को नहीं भूले और उन्होंने तय किया कि भारत को एकजुट नहीं बल्कि विभाजित करके ही छोड़ा जाये । ब्रिटेन में अपने बच्चों का पोषण करने के लिए उन्होंने भारतीयों का खून चूसा, और भारत के लोगों को विदाई का उपहार दिया - विभाजित विखंडित भारत । इसलिए 1939 में पाकिस्तान के विचार ने आकार लिया ।
उस समय तक ब्रिटिश अपना शासन कायम रखने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों मतभेदों का उपयोग करने और उन्हें आपस में लड़ाने में सिद्धहस्त हो चुके थे । नए प्रयोजन के लिए उन्होंने मोटी दाढ़ी वाले अपने एजेंट सर सैय्यद अहमद खान को मुसलमानों और गैर मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया । बाद में पाकिस्तान बनाने के लिए उन्हें एक नैतिक रूप से भ्रष्ट, नास्तिक और नशेड़ी जिन्ना मिल गया ।
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