विकास का मापदंड जीडीपी या देशवासियों का आनंद ? - श्री आलोक कुमार (दिल्ली प्रांत सहसंघचालक)
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नई दिल्ली / अपने पड़ोसी देश भूटान में वहां की प्रगति जीडीपी में नहीं मापी जाती. वहां विकास का मापदंड देशवासियों का आनंद, उनका संतोष, उनकी प्रसन्नता है. पाश्चात्य चश्मे से दुनिया को देखने वालों के लिए यह अजूबा हो सकता है लेकिन भारत के लिए नहीं. भारतीय मनीषियों ने हमेशा ही भौतिक संसार को अध्यात्म के फ्रेम में देखा. पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्म शताब्दी वर्ष में यह उचित ही होगा कि हम उनके द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानव दर्शन को देश-दुनिया के सामने वर्तमान परिप्रेक्ष में रखें. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिल्ली प्रान्त सहसंघचालक श्री आलोक कुमार ने दीनदयाल शोध संस्थान में 24 मार्च को आयोजित गोष्ठी में यह विचार व्यक्त किये.
उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 20 मार्च का दिन पूरे विश्व में प्रसन्नता दिवस के रूप में मनाया जाएगा. प्रसन्नता को मापने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रसन्नता के 6 पैमाने बनाए हैं. जिसमें -
‘जीडीपी पर कैपिटा’ अर्थात सामान्य व्यक्ति की खरीद क्षमता कितनी है?
स्वस्थ जीवन कितने वर्ष तक है?
सामाजिक सहयोग अर्थात आपात स्थिति में कितने रिश्तेदार-मित्र आपके साथ सहयोग करेंगे?
सोशल फ्रीडम - आप अपने निर्णयों को लेने के लिए स्वतंत्र हैं क्या?
प्रतिभा एवं क्षमता के अनुरूप समाज आपको काम देता है कि नहीं?
‘गुड गवर्नेंस, एब्सेंट ऑफ़ करप्शन’. व्यक्ति सामजिक रूप से कुछ प्रूव करता है कि नहीं?
उन्होंने प्रसन्नता के पाश्चात्य और भारतीय विचार में अंतर करते हुए उन्होंने प्रश्न उठाया कि प्रसन्नता की साधना करना क्या यह सरकार की नीति होनी चाहिए? आधुनिक प्रणाली के नाम पर मेट्रो में टिकट बांटने वाली सभी खिड़कियों को बंद करके यह सारा काम मशीनों को देने वाले हैं, क्या यह प्रसन्नता बढ़ाने वाला निर्णय होगा? जिस देश में बेरोजगारों की इतनी बड़ी संख्या है वहां के व्यक्तियों के लिए प्रसन्नता बढाने वाले कौन से सूत्र होने चाहिए? भारत में पाश्चात्य देशों के प्रसन्नता के मापदंडों के स्थान पर अपने देश की परिस्थिति के अनुसार, जिससे व्यक्ति को आनंद होता है, वैसा करना चाहिए. प्रसन्नता का मापदंड देशों की परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग हो सकता है.
श्री आलोक कुमार ने कहा कि हमको अपना मन बनाना पड़ेगा कि निर्जीव वस्तुओं के उत्पादन में सम्पूर्ण सुख है, हम इसको स्वीकार नहीं करते. पश्चिम में मानव और बुद्धि को मिलाकर ‘एक’ नाम दिया गया है ‘मन’. हम ‘तीन’ कहते हैं – शरीर, मन और बुद्धि. इन तीनों का विचार करते हुए प्रसन्नता को हम देखते हैं. जब इसको देखते हैं तो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष भी आ जाता है. धर्म से अभिप्राय संस्कारी शिक्षा, अर्थ – पर्याप्त साधन, काम – आवश्यकता पूर्ति और इन तीनों की पूर्ती होते-होते व्यक्ति और समाज सामूहिक रूप से मुक्ति की और कैसे बढ़ेगा, यह मोक्ष से हो जाएगा. भारतीय दर्शन जो दीनदयाल जी ने हमें एकात्म मानव दर्शन के रूप में दिया, उसे जीवन में लाकर प्रसन्नता को भीतर से अनुभव कर सकते हैं.
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बहुत अच्छी पोस्ट !
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