एक अकिंचन की राम कहानी - जेल से निकले मुम्बई पहुंचे !
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गोपाल डंडौतिया, अशोक पांडे, गोकुल दुबे (वर्ष 1971-72) |
पुरानी उक्ति है – सत्यम ब्रूयात, प्रियम ब्रूयात ! सत्य बोलो पर प्रिय बोलो !
तो मैं भी अप्रिय बातों को यथासंभव दरकिनार करते हुए, आगे बढ़ता हूँ !
अंततः अंतर्राष्ट्रीय दबाब तथा उससे भी कहीं अधिक अपने पक्ष में जनमत का अनुमान लगाकर इंदिरा जी ने अप्रैल 1977 में आम चुनाव करवाने की घोषणा कर दी ! उनके इस निर्णय के पीछे सीआईडी रिपोर्ट भी एक कारण थी, जिसमें उनके पक्ष में जनमत की बात कही गई थी ! इस घोषणा से मीसाबंदी भी अत्यंत प्रसन्न हुए, आखिर उनके छूटने की संभावना जो बन रही थी ! शिवपुरी के हम लोगों को इस समाचार से मायूसी हुई, कि माधवराव सिंधिया कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने वाले हैं ! यह निर्णय उन्होंने क्यों लिया, यह वे ही जानें ! आखिर जिस कांग्रेस ने राजमाता को तिहाड़ जेल में सूअरों के बाड़े में कैद करके रखा, उनके सुपुत्र द्वारा उसी कांग्रेस का समर्थन ? यह कायरता अखरने वाली थी ! शिवपुरी के मित्रों ने जेल से ही नवगठित जनता पार्टी के नेतृत्व को प्रस्ताव भेजा कि समाजवादी नेता राजेन्द्र मजेजी को माधवराव जी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा जाए !
हमारी यह कारगुजारी उस समय हास्यास्पद हो गई, जब यह समाचार आया कि राजेन्द्र मजेजी ने स्वयं कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली ! उसके दूसरे ही दिन वरिष्ठ कांग्रेसी नेता बाबू जगजीवन राम ने जनता पार्टी की सदस्यता ली और उसके बाद तो यह स्पष्ट हो गया कि इंदिरा जी की तानाशाही पूर्ण सत्ता के दिन अब पूरे हुए ! बाद में राजेन्द्र मजेजी ने भी स्वीकारा कि अगर जगजीवनराम जी ने दो दिन पूर्व जनता पार्टी ज्वाईन की होती, तो वे भी कांग्रेस में नहीं गए होते ! शायद मजेजी साहब की किस्मत में राजयोग नहीं था, अन्यथा समाजवादी खेमे में आज वे शरद यादव से कहीं आगे होते ! बैसे भी जबलपुर इंजीनियरिंग कोलेज में वे शरद यादव के सीनियर भी थे और खांटी समाजवादी के रूप में उनकी पहचान भी थी !
उसी दौरान ग्वालियर के छतरी बाजार में अटल जी की ऐतिहासिक विशाल सभा हुई ! उस सभा में उन्होंने कुछ लोगों के नाम लेकर कहा कि इन लोगों के जेल में रहते, होने वाले चुनाव मजाक हैं ! दूसरे ही दिन वे सब लोग जेल से रिहा कर दिए गए ! उनमें से एक मैं भी था ! जनता पार्टी ने माधवराव जी के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कर्नल गुरुबख्स सिंह ढिल्लन को चुनाव मैदान में उतारा ! आजाद हिन्द फ़ौज के सेनानी कर्नल ढिल्लन अकेले किला लड़ाते रहे ! रावण रथी विरथ रघुवीरा जैसी स्थिति थी ! एक ओर तो मोतियों वाले राजा के रूप में प्रख्यात अथाह धन सम्पदा के स्वामी माधवराव जी तो दूसरी तरफ कंधे पर स्वयं हल रखकर हलधर किसान के वेश में चुनाव प्रचार करते कर्नल ढिल्लन ! जनसंघ के जो दिग्गज माफी मांगकर छूटे थे, वे खुलकर सामने आने को तैयार नहीं थे और अधिकाँश जुझारू कार्यकर्ता जेल में ही थे ! ऐसे में वल्लभदास जी मंगल ने अथक परिश्रम कर नवगठित जनतापार्टी की कार्यकारिणी गठित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की ! समाजवादी नेता रामकिशन सिंघल “नेताजी” को अध्यक्ष बनाया गया ! अन्य पदाधिकारियों में राजकुमार गोयल बंगलेवाले, डॉ. प्रभाकर लवंगीकर, भगवतराय सूद आदि थे !
एक ओर चुनावी राजनीति से सदा विरत रहे अनुभव व धनबल हीन कर्नल ढिल्लन और दूसरी तरफ जीवन मृत्यु का प्रश्न बनाकर लड़ रहे ऐश्वर्यवान माधवराव सिंधिया ! नतीजतन कर्नल साहब पराजित हुए ! सारे देश में कांग्रेस हारी पर शिवपुरी में कांग्रेस समर्थित निर्दलीय प्रत्यासी के रूप में माधवराव जी अपने जीवन के सर्वाधिक कम वोटों से विजई हुए !
चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद मुक्त हुए मीसाबंदी जब शिवपुरी पहुंचे तब उनका अविस्मरणीय स्वागत हुआ ! माधवराव जी का तो विजय जुलूस नहीं निकला, किन्तु मीसाबंदियों का स्वागत जुलूस जरूर ऐसा था मानो पूरी शिवपुरी सडकों पर आ गई हो ! उसके बाद हुए विधान सभा चुनाव से ही मैंने राजनीति के षडयंत्रों को नजदीक से देखना शुरू कर दिया ! जिन संघ स्वयंसेवकों के परिश्रम और संघर्ष से आपातकाल हटा, उन्हें कैसे एक तरफ किया जाए, इस पर घाघ राजनीतिज्ञों का पूरा ध्यान केन्द्रित हो गया ! इसी रणनीति के तहत गोपाल डंडौतिया जी को कहा गया कि वे पिछोर से चुनाव लड़ें ! गोपालजी ने सहज कहा कि वहां तो हक़ लक्ष्मीनारायण जी का है, मुझे लड़ाना है तो शिवपुरी से लड़ाओ ! और मजा देखिये कि न गोपाल जी को लड़ाया गया न लक्ष्मीनारायण जी को ! उन दोनों के स्थान पर शिवपुरी से महावीर प्रसाद जैन तथा पिछोर से कमलसिंह पडरिया जी को चुनाव मैदान में उतारा गया ! कोलारस से कामता प्रसाद बेमटे, पोहरी से दामोदर प्रसाद शर्मा तथा करैरा से राजमाता सिंधिया की कजिन सुषमा सिंह जी चुनाव लड़ीं ! मुझे इतनी ही तसल्ली थी, कि कमसेकम पांच में से तीन सीटों पर वे प्रत्यासी चुनाव लडे जिन्होंने सत्याग्रह करके स्वयं को गिरफ्तारी के लिए प्रस्तुत किया था ! उस माहौल में जनता पार्टी के पांचों प्रत्यासी विजई हुए ! उस समय मैं विद्यार्थी परिषद् का संगठन मंत्री व संघ का नगर बौद्धिक प्रमुख रहा !
मेरे जैसे सामान्य कार्यकर्ता के प्रति सबका ही सद्भाव था, अतः मुझे शिवपुरी नगर पालिका द्वारा बस स्टेंड के सामने एक दूकान किराये पर प्रदान की गई ! उस दूकान में मैंने पहले एक स्टेशनरी शॉप तथा बाद में “वातायन” के नाम से जनरल स्टोर का संचालन किया ! मीसाबंदियों को मध्यप्रदेश सरकार ने चार प्रतिशत व्याज दर से 25 - 25 हजार रुपये लोन दिया, उस पैसे से तथा कुछ स्वर्णाभूषण बेचकर पैतृक मकान का जीर्णोद्धार हो गया !
उस समय का सर्वाधिक रोचक संस्मरण है हमारी पहली मुम्बई यात्रा !
मीसाबंदी गुलाब चन्द्र जी शर्मा व ओमप्रकाश शर्मा ने मीसाबंदी लोन की मदद से संयुक्त रूप से एक ट्रक खरीदा ! वह ट्रक अक्सर सामान लेकर मुम्बई जाया करता था ! हम चार मित्रों ने तय किया कि क्यूं न हम भी मुम्बई घूम आयें ? गोपाल डंडौतिया, अशोक पांडे, गोकुल प्रसाद दुबे तथा मैं, साथ में दोनों ट्रक मालिक, गुलाब चन्द्र जी व ओमप्रकाश शर्मा गुरू ! होकर ट्रक पर सवार आखिर पहुँच ही गए मुम्बई !
हमारे पूर्व प्रचारक इंजीनियर उदय जी काकिर्डे उन दिनों डोम्बिबली की एक ट्रांसफार्मर कम्पनी में कार्यरत थे ! मैंने सोचा था कि हम लोग उनके यहाँ ही ठहरेंगे और घूमेंगे फिरेंगे ! किन्तु वहां पहुंचकर गोपाल जी बोले कि मुम्बई में इस प्रकार छः लोगों का किसी के घर जाकर ठहरना उचित नहीं ! यहाँ तो परिवार का रहना ही अत्यंत कठिन होता है, अतः हम लोग तो एकदम सामान्य जीवन का आनंद लेंगे ! फुटपाथ पर सोकर मुम्बई घूमेंगे ! गुलाब चन्द्र जी और ओमप्रकाश शर्मा ने तो अपने ट्रक के साथ ही रात गुजारी और अगले दिन ट्रक के साथ ही वापस हो गए ! जबकि हम लोगों ने पहली रात बोम्बे व्हीटी के सामने स्थित फिरोजशाह की मूर्ति के नीचे फुटपाथ पर सोकर गुजारी ! यह अलग बात है कि सुबह हम में से दो लोगों की चप्पल गायब मिली !
अब शुरू हुआ हम लोगों का मुम्बई भ्रमण ! पैदल घूमना शुरू किया, एक पार्क में माली पौधों को पानी दे रहा था ! हमने आग्रह किया कि वह लेजम की धार हम लोगों पर भी डाल दे ! एक साथ दोनों काम हो जायेंगे, पेड़ों को पानी भी लगता रहेगा और हमारा स्नान भी हो जाएगा ! भला आदमी था, मान गया और हमारा स्नान हो गया ! सुबह का नाश्ता हुआ बड़ा पाँव का ! मुम्बई का आम नाश्ता !
क्या मुम्बई पैदल घूमा जा सकता है ? नहीं ना ! हम भी थक गए ! सोचा कि चलो बसों से घूमते हैं ! किन्तु वहां भी अभ्यास की कमी आड़े आई ! हम चार लोग एक साथ चढ़ ही नहीं पाते थे ! कभी कोई छूट जाता तो कभी कोई ! जो बस में चढ़ जाते वे बस रुकवाने की गुहार लगाते तो जबाब मिलता कि अब तो अगले स्टॉप पर ही रुकेगी ! अन्य सहयात्री हम अनाड़ियों पर हंसते ! अगले स्टॉप पर उतरकर हम वापस लौटते और पीछे छूटा हुआ हमारा साथी हांफता हुआ आगे बढ़ता ! जहाँ मिलते वहां से फिर यही क्रम शुरू हो जाता ! भूख लगी तो सामने एक स्टॉल नजर आया - मुम्बई का मशहूर झुणका भाखर ! कभी खाया भी नहीं था, नाम भी नहीं सुना था ! चारों ने दो दो झुणका भाखर का आर्डर दनदना दिया ! सामने आई दो दो मोटी ज्वार की रूखी रोटी और उनपर रखा हुआ बेसन नुमा कोई बस्तु ! हममें से कोई भी उन दोनों रोटियों को उदरस्थ नहीं कर पाया ! तय किया कि भविष्य में कुछ भी खायेंगे तो पहले एक चखेगा उसके बाद ही आर्डर दिया करेंगे !
न ढंग से भोजन हुआ और फिजूल थक गए सो अलग ! अंत में थक हारकर तय किया कि अब हिम्मत नहीं है, चलो टेक्सी से ही घूमते हैं ! अब एक नई किल्लत सामने आई ! हम चार लोग और टेक्सी वाला तीन से अधिक लोगों को बैठाने को तैयार नहीं, अतः मरता क्या ना करता, दो टेक्सी की गईं !
उस दिन केवल दो स्थान ही जा पाए ! पहले गेट वे ऑफ़ इंडिया और बाद में जुहू बीच ! जुहू बीच पर हम लोग चाय पीने एक होटल में जा पहुंचे ! नाम आज भी स्मरण है “पाल्म बीच होटल” ! खुशनुमा गार्डन में रंगबिरंगे छातों के नीचे कुर्सियां लगी हुई थीं ! हम भी जा बिराजे और बेटर को चाय लाने का ऑर्डर दिया ! बेटर ने हम लोगों को ऊपर से नीचे तक देखा, और बोला एक टी सेट पचास रुपये का आयेगा ! दिन भर के परेशान हाल, पसीने से लथपथ आम जन से एक सजाधजा बेटर और क्या व्यवहार करेगा ? लेकिन गोपाल जी ने उसे घुड़की दी, चाय छोड़ जा पहले अपने मेनेजर को बुलाकर ला ! तुम्हारे होटल में क्या पहले कीमत बताई जाती है ? बेटर कितना ही सजाधजा क्यों न हो, था तो आखिर बेटर ही ! वह घबराकर माफ़ी माँगने लगा ! खैर हमने भी चाय पी, पी अर्थात बनाकर पी ! गर्म पानी, गर्म दूध, सुगर क्यूब अलग अलग आये, जिन्हें मिलाया और पीया !
यहाँ आकर मेरी हिम्मत जबाब दे गई और मैंने मित्रों से कहा, भैया ऐसी मुम्बई यात्रा तुम्हें ही मुबारक हो, मैं तो वापस जाऊँगा, बस एक मेहरबानी करो और मुझे रेलवे स्टेशन पर छोड़ दो ! जैसे तैसे शेष तीनों को इसके लिए तैयार किया और जुहू बीच पर ही नारियल पानी पीकर और भेलपुरी खाकर हम लोग स्टेशन पहुंचे ! और वहां से मैं ट्रेन में बिना रिजर्वेशन के मुम्बई से झांसी और फिर बस द्वारा झांसी से शिवपुरी आ धमका ! जान में जान आई !
बाद में मालूम हुआ कि शेष रहे तीनों मित्रों ने दो दिन और गुजारे, रेलवे प्लेटफोर्म पर सोये, गोकुल जी की जेब कटी ! अशोक पांडे का बेग छीनने की कोशिश हुई, पुलिस की घुड़कियाँ सही सो अलग, लेकिन मस्तमौलाओं को क्या अंतर पड़ता है ? घूमकर माने मुम्बई !
आज के गोपाल डंडौतिया, अशोक पांडे, गोकुल दुबे |
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मेरी राम कहानी
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