मनु स्मृति के विषय में यह प्रचारित किया गया है कि मनु स्मृति जातिवाद की पोषक है, उसमे नारी जाती को तुच्छ माना गया है ! जबकि वास्तविकता यह है कि मनु स्मृति में मध्यकाल में कुछ अज्ञानी व धूर्त लोगों ने साजिशन इस पवित्र ग्रन्थ में मिलावट कर इसे जातिवादी और नारी जाति के साथ भेदभाव करने वाला ग्रन्थ बनाने का षड़यंत्र रचा ! जब दोषी कोई और है तो मनु महर्षि पर आरोप क्योँ ?
कालान्तर में कुछ मूर्ख लोग वास्तविकता को जानते हुए भी इस बात को स्वीकार नहीं करते है ! JNU और देश के तमाम अन्य स्थानों पर मनु स्मृति को दहन करने जैसे कृत्यों से सस्ती लोकप्रियता पाने का प्रयत्न करते है !
वास्तव में मनु स्मृति है क्या ?
पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव और अपने ही ग्रंथों की सही सही जानकारी न लेने के कारण ही धूर्त व चालाक लोग हिन्दुओं को उन्ही के मिलावटी धार्मिक ग्रंथों का हवाला देकर हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने में लगे हुए है और अज्ञानता के चलते हिन्दू भी उसे सहर्ष स्वीकार करके पवित्र धार्मिक ग्रंथों पर अपवित्रता का ठप्पा थोप देते है व हमारे धार्मिक ग्रंथों को दुष्प्रचारित करने के षड़यंत्र में अपनी साझेदारी दे रहे है !
आज स्थिति यह है कि मनु स्मृति, वैदिक संस्कृति की सबसे विवादित पुस्तक बना दी गयी है ! पूरा का पूरा “दलित आन्दोलन” मनुवाद के विरोध पर ही खड़ा हुआ है ! गौर करने वाली बात है कि क्या महर्षि मनु की निंदा करने वाले इन लोगों ने कभी गंभीरता से मनु स्मृति को पढ़ा भी है ?
140 वर्ष पूर्व स्वामी दयानंद सरस्वती ने इस बात को प्रामाणिकता के साथ सिद्ध कर दिया था कि मनु स्मृति में मिलावट की गयी है ! वर्ण व्यवस्था आधारित मनु स्मृति को जातिवाद आधारित करने का षड़यंत्र रचा गया है ! जबकि सत्य यह है कि महर्षि मनु ने सृष्टि का प्रथम संविधान मनु स्मृति के रूप में बनाया !
मनु स्मृति पर कुछ लोग यह आरोप लगाते है कि महर्षि मनु ने जन्म के आधार पर जाती प्रथा का निर्माण किया, शूद्रों हेतु कठोर दंड का विधान व उच्च जाति विशेषकर ब्राह्मणों हेतु विशेष प्रावधानों का विधान किया !
मनु स्मृति उस काल की है जब जन्मना जाती व्यवस्था के विचार का भी कोई अस्तित्व नहीं था ! अतः मनुस्मृति जन्मना समाज व्यवस्था का कहीं पर भी समर्थन नहीं करती ! महर्षि मनु ने मनुष्य के गुण-कर्म-स्वभाव पर आधारित समाज व्यवस्था की रचना करके वेदों में परमात्मा द्वारा दिए गए आदेश का ही पालन किया है !
वर्ण व्यवस्था क्या है ?
वर्ण शब्द “वृज” धातु से बना है जिसका अर्थ है चयन करना सामान्यतः प्रयुक्त शब्द वरण भी यही अर्थ रखता है ! मनु स्मृति के प्रथम अध्याय में कहीं भी जाती शब्द नहीं मिलता अपितु वहां चार वर्णों की उत्पत्ति का वर्णन है अतः यह स्पष्ट है कि यदि जाती का इतना महत्त्व होता तो महर्षि मनु इसका उल्लेख अवश्य करते कि कौन सी जाती ब्राह्मणों से सम्बंधित है, कौन सी क्षत्रियों, कौन सी वैश्य और कौन सी शूद्रों से सम्बंधित है !
स्पष्ट है कि जो व्यक्ति जन्म से स्वयं को ब्राह्मण या उच्च कुल का मानता है उसके पास स्वयं को ब्राह्मण या उच्च जाती का मानने का कोई प्रमाण नहीं है ! ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं है कि सभ्यता के आरम्भ से ही आज उच्च जाती पर बने बैठे लोग तब भी उच्च जाती से थे ! इसी प्रकार जिन्हें जन्म से शूद्र माना जाता है क्या वह लोग भी कुछ पीढ़ियों पूर्व भी शूद्र ही थे ?
जाती व लिंग भेद केवल हिन्दू समाज की ही समस्याएं नहीं है किन्तु यह दोनों सांस्कृतिक समस्याएँ है ! लिंग भेद सदियों से वैश्विक समस्या रही और जातिभेद दक्षिण एशिया में पनपी, यह सभी धर्मों और समाजों की समस्या है ! हिंदुत्व ही सबसे प्राचीन संस्कृति और सभी धर्मों का आदिस्त्रोत है अतः इसी पर व्यवस्था को भ्रष्ट करने का आरोप लगाया जाता है ! इन दोनों कुप्रथाओं के चलते समाज दुर्बल होगा व विभिन्न सम्प्रदायों में बंटता रहेगा और देश कमजोर होता रहेगा !
भारत वर्ष पर लगातार पिछले हजार वर्षों से होते आ रहे आक्रमणों के लिए भी जातीय घमंड में चूर व उच्चता में जकड़े हुए लोगों द्वारा एक विशिष्ट वर्ग में जन्म न लेने वाले लोगों के प्रति सही व्यवहार नहीं करने का अधिकार व अनुमति देना, कुछ गलत लोगों द्वारा भ्रष्ट श्लोकों का हवाला देकर जातिप्रथा को उचित बतानेवाले लोग जो स्वयं की अनुकूलता व स्वार्थ के चलते यह भूल जाते है कि वह जो कुछ भी कह रहे है श्लोक उनके बिलकुल विपरीत है !
ऐसी दो शक्तियों के बीच चले संघर्ष ने भारत में विचले स्तर की राजनीति को जन्म दिया और यदि पिछले हजारों वर्षों से भारत पर हो रहे आक्रमणों के लिए भी इसे ही जिम्मेदार ठहराएं तो गलत नहीं होगा ! यही जातिप्रथा वर्ष १९४७ में हमारे देश के विभाजन का प्रमुख कारण रही !
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भगवान और स्वयं मे भेदभाव रखना पाप है मै आपके इस मतसे सहमत हुं धन्यवाद। सबसे बडा सकारात्मक सोच विचार यही है मै इससे भी सहमत हुं इसलिए आपका आभार। सर्व धर्मान्परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज। यानि कि भक्ति ही धर्म है। ..... उपदेश देकर गए अर्जुन को। सर्वधर्मान परित्यज्य मामेकम शरनम व्रज।
जवाब देंहटाएंचेतन जी धन्यवाद
हटाएंअच्छा लेख
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