सहिष्णुता की सच्ची कहानी - मोपला और कश्मीर - डॉ. निवेदिता चतुर्वेदी

आखिर दो दिन के अंतराल के बाद आमिर खान ने अपने बयान पर सफाई दी है, पर अभी भी वे इस बात पर डटे हुए हैं कि देश में असहिष्णुता का माहौल कायम है या बढ़ रहा है। अपनी सफाई में भी आमिर ने यह कह दिया है कि विरोध करने वाले लोगों ने मेरे बयान पर मोहर लगा दी। शायद आमिर का मानना है कि वे इस देश के बारे में कुछ भी कहने को स्वतंत्र हैं, किन्तु देश के लोगों को अधिकार नहीं कि कोई उनका विरोध भी करे । क्यों कि विरोध करने का और देश की स्थिति का ब्यौरा देने का जिम्मा केवल तथाकथित पुरस्कार लौटाने वाले साहित्यकारों को ही है।

जरा इस घटना पर भी गौर करें, भोपाल रेलवे स्टेशन पर भोला नाम से एक चाय-नाश्ते के ठेले का संचालन किया जाता है, इस पर एम.आई.एम. नेता असुद्दीन औबेसी के स्वागत के लिए कुछ लोगों ने पोस्टर चिपका दिए थे। ठेला संचालक को यह पोस्टर रास नहीं आए और उसने इन पोस्टर्स को फाड़ दिया, तब मुस्लिम सम्प्रदाय की एक भीड़ ने आकर उसकी जमकर पिटाई की। ठेला उसकी रोजी रोटी का साधन है और वह उसका मालिक है, लेकिन उस पर क्या चिपकाना है और क्या नहीं, इसका हक तक वह हिन्दू नहीं रखता है। 

यह घटना मध्यप्रदेश की राजधानी की है, जहां कि हिन्दू बहुसंख्यक हैं। फिर भी किसी नेता या समाज के ठेकेदार ने यह नहीं कहा कि यह एक वर्ग विशेष की ठसक के साथ जारी असहिष्णुता है। वस्तुतः असहिष्णुता के नाम पर पूरे देश में एक वर्ग विशेष के पक्ष में माहौल बनाया जा रहा है ।

पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम में बोडो जनजाति एक लम्बे समय से बांग्लादेशी घुसपैठियों के द्वारा हो रही हिंसा को झेल रहे हैं । 23 मार्च 2003 पुलामा नादीमार्ग जम्मू कश्मीर में एक साथ एक लाईन में खड़ा करके 24 कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया गया, जिसमें 11 पुरुष और 11 महिलाएं और 2 पांच साल से कम आयु के बच्चे थे और जो बच गए वो भय के साए में अपने आलीशान मकानों को छोड़कर चले गए। आज किसी को पता नहीं है कि वे कहां गए, उन कश्मीरी पंडितों से पूछो कि असहिष्णुता किसे कहते हैं ।

आज का दिन 26/11 कोई कैसे भूल सकता है, जब मुंबई में सैंकड़ों जानें गईं, तब भी देश में सहिष्णुता का माहौल था, फिर आज अचानक ऐसा क्या हो गया है कि बताया जा रहा है कि देश में असहिष्णुता का बोलबाला है। असल में रूस, ब्रिटेन, अमेरिका द्वारा सीरिया और अन्य आई.एस.आई.एस. के ठिकानों वाले देशों पर हो रही सैन्य कार्रवाही का यह दर्द सामने आ रहा है। बताना होगा कि ब्रिटिश शासनकाल में भी जब तुर्की के खलीफा के विरोध में ब्रिटेन ने सैन्य कार्रवाही की, तब इस देश के मुस्लिम वर्ग ने खलीफा की ताजपोशी के लिए इस पूरे देश को खिलाफत आंदोलन की आग में झोंक दिया था। जिससे न तो इस देश के मुसलमानों और न ही हिन्दुओं का कुछ लेना देना था।

इसकी विफलता के बाद मौलवियों ने भोली-भाली मुस्लिम जनता को यह कहकर भ्रमित किया कि भारत दारुल हरब अर्थात एक युद्धरत देश है और हमारी कुरान कहती है कि हमें इस देश में एक दिन भी नहीं टिकना चाहिए बल्कि हिजरत करनी चाहिए। गांधीजी के दाहिने हाथ मौहम्मद अली ने भारत को दारुल हरब कहा तो वहीं मौलाना अब्दुल वारी ने हिजरत के लिए फतवा जारी कर दिया और लगभग 20 हजार गरीब अनपढ़ मुसलिम जो अपने नेताओं पर अटूट विश्वास करते थे अपनी पैतृक सम्पत्ति छोड़कर अफगानिस्तान गए, लेकिन यह उनके लिए भयावह श्मशान की कालीरात साबित हुई। अफगानों ने समान धर्म के होने के बाबजूद उन सभी भारतीय मुसलमानों को सीमा पर ही रोककर लूट लिया और वापस भगा दिया। जब वह वापस लौटे तो वह असहाय और बेघरवार थे। मुसलमानों की इस दयनीय स्थिति का वर्णन जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक भारत एक खोज में भी किया है।

इस आंदोलन के ठप होने के बावजूद केरल के स्थानीय मुसलमान मोपलाओं के बीच यह प्रचारित किया गया कि खिलाफत आंदोलन सफल हो गया है और खिलाफत फिर से स्थापित हो गई है। अब समय आ गया है कि काफिरों को समाप्त करके दारुल इस्लाम की स्थापना कर दी जाए। इस प्रचार ने मोपला कट्टरपंथियों को भड़काया और जिहाद की घोषणा की। यहां हुए दंगों की भयावहता का अंदाजा इन आंकड़ों से लगाया जा सकता है कि इन दंगों में 2 हजार 266 लोग मारे गए, 1 हजार 615 घायल हुए, 5 हजार 688 बंदी बनाए गए और 38 हजार 656 ने आत्म-सर्मपण किया। अंग्रेजों से हारने के बाद कुंठित मोपलों ने हिन्दुओं पर अपना पूरा कहर बरसाया, क्यों कि उनके लिए हिन्दू भी काफिर थे। भारत सेवक समिति की जांच रिपोर्ट के अनुसार इसमें 1500 से अधिक हिन्दुओं को मार दिया गया। 20 हजार हिन्दुओं को बलात् मुसलमान बनाया गया तथा लगभग 3 करोड़ की सम्पत्ति लूटी गई। जिसकी वर्तमान कीमत खरबों रुपए है। हिन्दू महिलाओं के साथ जो दुर्व्यवहार किया गया, उसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं जिसका उल्लेख डॉ. ऐनी बेसेन्ट ने द फ्यूचर ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स में किया है।

पहले मोपला में ब्रिटिश महिलाओं पर अत्याचार किए गए और जब इसकी कार्रवाही में कई मुस्लिमों को फांसी दी गई तो इसका कहर हिन्दुओं पर टूटा, अहिंसा के पुजारी गांधी जी ने इसका समर्थन यह कहकर किया कि उन्होंने जो भी किया वह उनके धर्म के अनुसार है और यह उनके आक्रोश को प्रकट करने का रूप है। गांधीजी ने विदेशी वस्त्रों की होली न जलाकर अपने मुस्लिम भाईयों के कहने पर उन वस्त्रों को तुर्की भिजवाया । यहां इस घटना को उल्लेखित करने का आशय यह है कि आज यदि फिर से वही नीति अपनाई गई तो देश साम्प्रदायिकता की आग में जल उठेगा, जिसमें कि सबसे ज्यादा नुकसान हमेशा की तरह बहुसंख्यक होने के बाद भी हिन्दुओं का ही होगा। 

इस देश का बहुसंख्यक समाज यह मानता है कि पूजा पद्धति कोई भी हो, सभी ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग हैं। दूसरा यह कि वह अपने से ज्यादा दूसरे के विचार की कद्र करता है। यदि वह अपने विचार को ही सर्वोपरि मानता तो क्या कभी इस देश में हिन्दू के अलावा कोई दूसरा धर्म आ पाता ? इस गंगा-जमुना संस्कृति वाले देश में चेन से जिंदगी गुजारने वाले ए.सी. कमरों में बैठकर बयान दे रहे हैं कि देश असहिष्णुता की राह पर चल पड़ा है। यहां लोगों को केवल अपने संवाद के माध्यम से देश विरोधी ताकतों का विरोध करना भी असहिष्णुता नजर आ रहा है। 

क्या नेता, अभिनेता या साहित्यकार यह आश्वासन देंगे कि भारत में कभी मोपला नहीं दोहराया जाएगा, जहां 20 से 40 प्रतिशत मुस्लिमों की संख्या पहुंच गई है, वहां वे हिन्दू भाईयों को अपने कारण से असहिष्णुता से दो-चार नहीं होने देंगे? जबकि वर्तमान हकीकत यही है कि देश में पूवोत्तर से लेकर जहां भी मुस्लिमों की संख्या बढ़ी है, हर रोज हिन्दुओं को सरेआम पीटा जा रहा है। यदि वे विरोध के लिए सामुहिक प्रयास करते हैं या उनके लिए विश्व हिन्दू परिषद, हिन्दू जागरण मंच, हिन्दू मुन्नानी जैसे संगठन आवाज उठाते हैं तो तमाम मीडिया और नेता उन पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाने के लिए सबसे आगे खड़े रहते हैं। उनकी नजर में हिन्दू ही बदमाश है, और हिन्दू हित की बात करने वाले संगठन छोटी-छोटी घटनाओं को बेवजह बड़ा तूल देते हैं। 

साभार - हिन्दुस्थान समाचार / नवोत्थान लेखसेवा



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1 टिप्पणियाँ

  1. Naitik shiksha ,hindu dharm ki shiksha to khatam ho gayi.ab sirf akbar mahan physics chemestry or biology padhatey hain.unmain ye kahin nahin likha ki apradh ya balatkar nahin karna chahiye.to fir log karengey he.

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