प्रेरक संस्मरण - पूर्व सरसंघचालक श्री राजेन्द्र सिंह उपाख्य "रज्जू भैया"
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आलोक कुमार, सह प्रान्त संघचालक, दिल्ली
श्री देवेन्द्र स्वरुप जी व बृजकिशोर शर्मा जी द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘‘हमारे रज्जू भैया’’ के लोकार्पण कार्यक्रम में सुनाये गए संस्मरण -
1) बाईस वर्ष पूर्व का वह समय जब सरकार की उदासीनता व न्यायालय की देरी से उत्तेजित, भावप्रवण कारसेवकों ने अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर बने ढांचे को गिरा दिया था. परिणामस्वरूप, तत्कालीन सरकार ने तीन संगठनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद पर प्रतिबंध लगा दिया. उत्सुकतावश अगले ही दिन मैंने उससे संबंधित कानून का गम्भीरता और विस्तार से अध्ययन कर लिया. यह संयोग ही था कि प्रतिबंध के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल करने के लिए रज्जू भैया किसी वकील से सम्पर्क करना चाह रहे थे. सम्भवतः सबसे पहले मेरा फोन मिला होगा. मैं रज्जू भैया के पास गया. उन्होंने मुझसे कानून की विस्तार से जानकारी ली.
रज्जू भैया ने बताया कि शांतिभूषण जी ने इस मुकदमे को लड़ने की इच्छा व्यक्त की है. मैंने विनम्रता से कहा, ‘‘रज्जू भैया, सम्भवतः इस मुकदमे में ऐसा वकील होना चाहिये जिसकी बुद्धि व हृदय दोनों इस काम में हों.’’ रज्जू भैया ने कुछ क्षण सोचा व सिर हिला दिया.
हमारे सौभाग्य से, इस मुकदमे को लड़ने की जिम्मवारी वरिष्ठ अधिवक्ता व चांदनी चौक के संघचालक श्री रामफल बंसल व मुझे सौंपी गई. इस मुकदमे को लड़ने में हमें निरंतर उनका मार्गदर्शन मिला, इस आग्रह के साथ कि ‘आप लोग कानून के विशेषज्ञ हैं, जैसा ठीक लगे, वैसा ही करना.‘
श्री रज्जू भैया इस मुकदमे में संघ के गवाह भी थे. पत्रावली एक हज़ार से ज़्यादा पृष्ठों की थी. कहीं से भी जि़रह हो सकती थी. विशद तैयारी की आवश्यकता थी. उन्होंने कई बैठकों में इस गवाही की तैयारी की.
उन प्रश्नों में कुछ ऐसे प्रश्न भी थे जिनका उत्तर हमारे पास नहीं था, लेकिन रज्जू भैया ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं, सही जवाब मिल ही जायेंगे.’’ और अदालत में उन्होंने उन प्रश्नों का जिस सहजता से सही-सही जवाब दिया, वो उनके स्वाध्याय, तर्कशीलता और ज्ञान का स्पष्ट उदाहरण था. मुकदमे में संघ की विजय में यह गवाही बहुत महत्वपूर्ण थी.
निश्चित दिन अदालत में रज्जू भैया गवाही के लिये पधारे थे. उनके व्यक्तित्व की गरिमा का प्रभाव अदालत के अन्दर सभी पर स्पष्ट दिखाई पड़ा. रज्जू भैया से सरकारी वकील जि़रह कर रहे थे कि भोजनावकाश का समय हो गया. विपक्ष के वकील को तीन बजे अपने किसी नज़दीकी संबंधी की तेरहवीं में शामिल होना था. उसने मुकदमा अगले दिन रखने की प्रार्थना की. रज्जू भैया को रात की गाड़ी से बाहर जाना था, इसलिये उन्होंने अगले दिन आने में असमर्थता बताई. जज ने रास्ता निकाला, ‘‘हम भोजनावकाश स्थगित करते हैं, आज की यह पूरा करेंगे.
पर, फिर उन्होंने रज्जू भैया के माथे पर हल्की सी शिकन देखी और पूछा, ‘‘आप कुछ परेशान से दिख रहे हैं.’’ रज्जू भैया ने कहा, ‘‘मुझे डायबिटीज़ है और इसलिये मुझे ठीक वक्त पर खाना खाना होता है.’’ जज महोदय ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं पंद्रह मिनट के लिये उठता हूं. आप भोजन करें. पूरा होने पर खबर भिजवायें जिससे अदालत की कार्रवाई जारी रखी जा सके.’’ रज्जू भैया का लंच समय से पहले खत्म हो गया और अदालत की कार्रवाई जारी हो गई.
वकालत के अब तक के मेरे लम्बे कार्यकाल में, अदालती कार्रवाई के दौरान यह पहला अवसर था जब गवाह की असुविधा देखते, जज ने लंच में कार्रवाई जारी रखी और विपक्ष के वकील ने भी उस पर अपनी सहमति दे दी. यह था रज्जू भैया के व्यक्तित्व का प्रभामंडल.
2) एक दिन मैं अपने कार्यालय में था. मेरे पास एक फोन आया. मैंने सामान्य तौर पर उसे उठाया और कहा ,‘‘हां जी.’’ दूसरी ओर से उत्तर आया, ‘‘मैं रज्जू भैया बोल रहा हूं.’’ जबकि इतने बड़े व्यक्तित्व के संदर्भ में प्रक्रिया यह होती है कि कोई पहले फोन पर बताता है कि फलां मान्यवर आपसे बात करना चाहते हैं. या, यह कि वह बात करना चाहते हैं, आप उन्हें फोन कर लें.’’ वह रज्जू भैया थे, जिन्हें न प्रोटोकोल का अहसास था और न ही वह उसकी परवाह करते थे. एक आम स्वसंसेवक, एक सहज पुरुष.
3) एक और स्मृति है. बात उस समय की है जब मैं स्कूल की पढ़ाई के अंतिम वर्ष में था या शायद कॉलेज जाने लगा था. उन दिनों मैं गुरु जी की सेवा में नियुक्त था. श्री गुरु जी अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक के लिये दिल्ली पधारे थे. मैं उनका प्रबंधक था. एक दिन मैं गुरु जी के पास से लौट रहा था, रज्जू भैया उनके पास मिलने के लिये अन्दर जा रहे थे. उस समय तक मेरा उनसे कोई औपचारिक परिचय नहीं था. बावज़ूद इसके वह मुझे देख कर अपनत्व से मुस्कुराये, मेरे दाहिने बाजू को कंधे और कोहनी के बीच पकड़ा, फिर अपनी और हाथ से इशारा करते हुए कहा, ‘‘ऐसा स्वास्थ्य होना चाहिये.’’
स्वास्थ्य को महत्व देने वाले इन रज्जू भैया ने संघ के कार्यों में स्वयं को इतना डुबो दिया कि खुद का शरीर खोखला कर लिया. वह पर्किन्सन की बीमारी से ग्रस्त हो गये, उनकी अस्थियां इतनी जर्जर हो गई थीं कि मामूली चोट से चरमरा जातीं थीं. संघ कार्य के लिये अपने रक्त को भी पानी करने वाले पूज्य डॉक्टर जी के वह सच्चे वीरव्रती अनुयायी थे.
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प्रो. राजेन्द्र सिंह उपाख्य "रज्जू भैय्या"
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संस्मरण
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